Saturday, May 17, 2008

हिन्दी ब्लोग्स से कमाई का एक और उपाय

हिन्दी ब्लोग्स में एडसेंस विज्ञापनों को क्या हुआ?

पिछले एक-दो दिनों से मैं देख रहा हूँ कि हिन्दी ब्लोग्स में गूगल के सिर्फ सार्वजनिक सेवा विज्ञापन ही प्रकाशित हो रहे हैं। तो क्या अब गूगल ने हिन्दी ब्लोग्स में सिर्फ अपने सार्वजनिक सेवा विज्ञापन ही दिखाने की ठान ली है? एक तो हिन्दी ब्लोग्स के एडसेंस विज्ञापनों पर क्लिक करने वालों की संख्या ही नगण्य है। ले दे कर यदि कभी-कभार कुछ सेंट की कमाई हो भी जाती थी तो सार्वजनिक सेवा विज्ञापनों से वह भी बंद हो जायेगा।

या फिर गूगल चुपचाप अपने तकनीक में कोई बड़ा परिवर्तन कर रहा है ताकि हिन्दी ब्लोग्स में हिन्दी शब्दों अंग्रेजी अनुवाद वाले शब्दों के अनुरूप विज्ञापन प्रकाशित हो सकें। चूँकि गूगल का स्वभाव हमेशा लोगों को विस्मित कर (surprise) देने का रहा है, यही लग रहा है कि अवश्य ही गूगल अपने तकनीक में कोई बड़ा परिवर्तन कर रहा है।

हिन्दी ब्लोग्स से कमाई का एक और उपाय

हिन्दी ब्लोग्स से कमाई का एक और उपाय है अपने ब्लोग में एफिलियेट विज्ञापन प्रदर्शित करना। लोग आपके एफिलियेट विज्ञापन को क्लिक कर के विज्ञापनदाता से यदि उनके उत्पाद या सेवाएँ खरीदते हैं तो कमीशन के रूप में आपकी भी कमाई होती है। वैसे तो अमेजान, क्लिक बैंक, पेडॉटकाम को सबसे अच्छा एफिलियेट प्रोग्राम्स माना जाता है क्योंकि इनमें कमाई अधिक होती है। किन्तु ये सभी प्रोग्राम्स हिन्दी ब्लोग्स के लिये उपयुक्त नहीं है क्योंकि इन प्रोग्राम्स में भारतीय उत्पादों और सेवाओं का स्थान नहीं के बराबर है। हाँ, शादी.कॉम, मैत्री.कॉम जैसे मैट्रिमोनियल एफिलियेट्स प्रोग्राम्स से कुछ कमाई होने की उम्मीद की जा सकती है।

मैनें dgmpro.com के एफिलियेट प्रोग्राम्स को हिन्दी ब्लोग्स/वेबसाइट्स के लिये अधिक उपयुक्त पाया है क्योंकि वहाँ पर भारत देश के लिये एक अलग ही विभाग है जिसके अंतर्गत एयर बुकिंग, होटल बुकिंग, इन्डियन शॉपिंग आदि एफिलियेट्स प्रोग्राम्स हैं जो भारतीय पाठकों को अधिक आकर्षित करते है। यात्रा, मेकमाइट्रिप, एयरटेल, रेडिफ, सिफी आदि एफिलेट कार्यक्रम, जो भारतीयों में अधिक लोकप्रिय है, dgmpro के अंतर्गत आते है।

पिछले कुछ समय से मैं अपने हिन्दी ट्युटोरियल वेबसाइट में उपरोक्त इन एफिलियेट विज्ञापनों को प्रदर्शित कर रहा हूं और उनसे अधिक नहीं पर कुछ तो कमाई हो रही है।

आप भी यदि चाहे तो अपने ब्लोग्स में उपरोक्त एफिलियेट विज्ञापनों को प्रदर्शित करके कुछ लाभ उठा सकते है।

Friday, May 16, 2008

एक अचम्भा हमने देखा

किसी एक की चार-पाँच मिलकर खूब कुटाई करें, दे घूँसे पे घूँसा, दे लात पे लात कि सामने वाला अधमरा हो कर गिर जाये, तुर्रा यह कि बावजूद अधमरा होकर गिरे रहने के भी यदा कदा धुनाई जारी ही रहे कि इतने में हीं अधमरे आदमी के बदन में अचानक बला की ताकत आ जाये और चारों-पाँचो की ऐसी धुलाई करना शुरू कर दे कि वे लोग तौबा-तौबा करने लगें अचम्भा नहीं है और तो क्या है? भैया, आपके लिये भले न हो, हमारे लिये तो अचम्भा ही है। कहाँ से आ जाती है अधमरे के बदन में इतनी ताकत? क्या कोई देवता चढ़ जाता है? या फिर उस पर शैतान सवार हो जाता है? जी हाँ मैं WWE की बात कर रहा हूँ जिसके कि हमारे खली साहब भी आजकल बहुत बड़े हीरो हो रहे हैं।

अब वो क्या है भइ कि हम ठहरे पुराने आदमी। हमें तो ये लड़ाई ही समझ में नहीं आती। इस लड़ाई में तो लगता है कि अधमरा हो जाना एक फार्मूला है, वैसे ही जैसे कि हमारी पुरानी फिल्मों में दारासिंह किंग-कांग से पहले खूब मार खाये और बाद में खाये हुये मार को 10% मासिक की दर से ब्याज के साथ वापस करे। या फिर हीरो विलेन को मारने का तब तक खयाल ही न करे जब तक कि उसके नाक से खून न निकले और वह उस खून को अपने हाथ पोछ कर देख न ले। तो अधमरा हो जाने के बाद बदन में शैतान समाना हमारे ही बॉलीवुड फार्मूले की नकल है। हम भारतीयों की चीजों को एक दूसरा रूप दे देना तो सदियों से चलता चला आ रहा है। अब देखिये न, शताब्दियों पहले लोग हमारे अंकों को यहाँ से ले गये और बाद में उसे अंग्रेजी अंकों का रूप देकर हम लोगों को ही परोस दिया।

हाँ तो मैं लड़ाई की बात कर रहा था। अजीब लड़ाई है यह। कोई नियम नहीं, कोई कानून नहीं। हमारे यहाँ तो तलवार वाला तलवार वाले से और गदा वाला गदे वाले से ही लड़ा करता था। निहत्थे पर हाथ नहीं उठाया जाता था। किसी के मूर्छित हो जाने पर फिर वार नहीं किया जाता था। पर इस लड़ाई में तो सब जायज है। जैसी मर्जी आये मारो, बस कूटते रहो, धुनते रहो। देखने वालों को मजा आता है। वास्तव में मानव सदा से ही हिंसा प्रेमी रहा है, उसे हिंसा में सदा आनन्द आता रहा है, हिंसा करके या हिंसा देख कर मजा लेना उसका मूल स्वभाव है। खैर यह कोई बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात है इंसान के हिंसक स्वभाव का फायदा उठा कर कमाई करना।

हमें तो लगता है कि WWE के ये सारे लड़ाकू जयद्रथ के वंशज हैं। महाभारत की लड़ाई में एक योद्धा से अनेक योद्धा मिल कर युद्ध करने का नियम नहीं होने के बाद भी जयद्रथ ने और योद्धाओं को फुसला कर अपने साथ मिला लिया था और अभिमन्यु पर एक साथ सात-सात योद्धाओं ने युद्ध किया था। पर समझ में नहीं आया कि जयद्रथ के वंशज अमेरिका में जा कर कब बस गये।

कुछ भी हो, ये दानवों जैसे दिखने वाले लड़ाकुओं की लड़ाई खूब लोकप्रिय हो रहा है अपने देश में, खास कर युवा और किशोर वर्ग में। हमने बच्चों से कहा बेटा जरा डिस्कव्हरी चैनल लगाना तो वे कहते हैं नहीं जी हम तो WWE देखेंगे, अभी तो 'खली' आने वाला है। अब आज के जमाने में बच्चों के आगे बड़ों की चलती ही कहाँ है? सो हम चुपचाप वहाँ से खिसक लिये अपने कम्प्यूटर के कीबोर्ड में खिटिर पिटिर करने लगे। नतीजे के रूप में जो आया उसे अब आप पढ़ रहे हैं और पढ़ कर पछता रहे हैं कि आखिर इस लेख का तात्पर्य क्या है? अब हम क्या और क्यों लिख रहे हैं हमें ही नहीं पता तो आपको क्या बतायें! हाँ आप लोग तो विद्वजन हैं, इसलिये कुछ न कुछ तात्पर्य निकाल ही लेंगे। यदि कोई तात्पर्य निकल जाये तो हमें भी बताना न भूलियेगा।

Wednesday, May 14, 2008

आज ही देखें 1 अगस्त 2008 का खग्रास चन्द्रग्रहण अपने PC पर!

अब आप ब्रह्माण्ड की किसी भी घटना को कभी भी अपने PC पर देख सकते हैं। और यह सब सम्भव हुआ है माइक्रोसॉफ्ट के नवीनतम सॉफ्टवेयर 'विश्वव्यापी दूरबीन' (Worldwide Telescope) की वजह से, जिसे आम लोगों के लिये अब जारी कर दिया गया है। 'विश्वव्यापी दूरबीन' (Worldwide Telescope) डाउनलोड करने के लिये यहाँ क्लिक करें!

'विश्वव्यापी दूरबीन' (Worldwide Telescope) की सहायता से अब आप किसी भी ग्रह, नक्षत्र, खगोलीय पिण्ड को अपने PC पर किसी भी कोण से देख सकते हैं।


(शनि का चित्र)

अन्तरिक्ष में पृथ्वी ऐसी दिखाई देती है:


केवल इतना ही नहीं बल्कि 1 अगस्त 2008 का खग्रास चन्द्रग्रहण को ग्रहण के आरम्भ से अन्त तक आप अभी ही अपने PC पर देख सकते हैं। उस चन्द्रग्रहण के एक दृश्य का स्क्रीनशॉट देखें:


'विश्वव्यापी दूरबीन' (Worldwide Telescope) डाउनलोड करने के लिये यहाँ क्लिक करें!

भूल सुधार

श्री सुशील कुमार जी को धन्यवाद जिन्होंने मेरी भूल की जानकारी दी। वास्तव में मैं यह बताना भूल गया था कि सॉफ्टवेयर बिल्कुल मुफ्त है।

Tuesday, May 13, 2008

बेताल की ब्लोग कथा

हमेशा की तरह बेताल ने कहानी शुरू की, "सुन विक्रम! कालान्तर में जम्बूद्वीप का नाम भारतवर्ष हो गया। 400 वर्षों तक विदेशियों की गुलामी करने के बाद अंततः भारत स्वतंत्र हुआ और विकास के रास्ते पर चल पड़ा। वहाँ कम्प्यूटर, इंटरनेट आदि के साथ ब्लोग भी पहुँच गया। सन् 2003 में अल्प सुविधा होने के बावजूद भी हिन्दी के कुछ दिग्गजों ने अथक परिश्रम करके हिन्दी के ब्लोग बना लिये। पहले तो उनके ब्लोग को कोई नही जानता था किन्तु धीरे-धीरे लोगों को हिन्दी ब्लोग की जानकारी होती गई और हिन्दी ब्लोगिंग का विकास होना शुरू हो गया। परंतु विकास की गति कछुए की चाल जैसी ही थी। सन् 2003 से 2008 तक हिन्दी ब्लोगिंग रेंगना सीखने वाले बच्चे की तरह डगमगाता गिरता उठता आगे बढता रहा। सन् 2007 के अंत में हिन्दी ब्लोगिंग की गति अत्यंत तीव्र हो गई क्योंकि इन्टरनेट जगत की ख्यातिनाम कंपनियाँ, जिन्हें हिन्दी से कभी कोई सरोकार नहीं रहा था, अचानक हिन्दी पर मेहरबान हो गई और उन्होंने करोड़ो अरबो खर्च करके हिन्दी के सॉफ्टवेयर बनवाये। इन सॉफ्टवेयर्स का फायदा हिन्दी ब्लोगर्स को भी मुफ्त में मिलने लगा और द्रुत गति से हिन्दी ब्लोग्स की संख्या में वृद्धि होने लगी। हिन्दी ब्लोग्स का भविष्य शानदार नजर आने लगा।"

इतनी कथा सुनाकर बेताल ने विक्रम से पूछा, "बता विक्रम जिन कंपनियों को हिन्दी से कभी कोई सरोकार नहीं था वे अचानक हिन्दी पर इतनी मेहरबान क्यों हो गईं?"

विक्रम ने उत्तर दिया, "जब तक भारत में इंटरनेट का उपयुक्त विकास नहीं हुआ था तब तक इन कंपनियों को भारत के 54 करोड़ हिन्दी बोलने वालों से किसी भी प्रकार के व्यापार की उम्मीद नहीं थी किन्तु भारत में ब्राडबैंड, डीसीएल आदि के आने पर इन कंपनियों को भारत में व्यापार करने का और मोटा लाभ कमाने का पूरा-पूरा अवसर दिखाई देने लगा। ग्राहक को प्रभावित करने के लिये उनकी भाषा का ही प्रयोग करना अधिक लाभदायी समझकर इन कंपनियों ने हिन्दी के सॉफ्टवेयर्स बनवायें। उन्हें हिन्दी या हिन्दी ब्लोगर्स से न तो पहले कभी सरोकार था और न बाद में ही हुआ। वे तो व्यापारी है और अपने व्यापार को बढाने के लिये ही उन्होंने हिन्दी को आगे बढाया। खैर उनका उद्देश्य चाहे जो भी हो हिन्दी और हिन्दी ब्लोग्स का भला तो हो ही गया, यदि वे हिन्दी को आगे न बढ़ाते तो हिन्दी को आगे बढ़ने में दसों साल लग जाते क्योंकि इस देश की सरकार तो हिन्दी को कछुआ चाल से ही आगे बढ़ाती।"

विक्रम के उत्तर देते ही बेताल वापस पेड़ पर जाकर लटक गया।

Sunday, May 11, 2008

हिन्दी ब्लोग्स के पाठकों की संख्या कैसे बढ़ायें

ऐसा नहीं है कि हिन्दी के पाठक नहीं हैं। अवश्य हैं और पर्याप्त से अधिक संख्या में हैं। किन्तु उन्हें हिन्दी ब्लोग्स के विषय में जानकारी नहीं है। अतः सबसे पहले हमें हिन्दी पाठकों को हिन्दी ब्लोग्स के विषय में अवगत कराना होगा।

अब तक तो आप सभी लोगों को विदित हो ही गया होगा कि 'उड़न तश्तरी' जी ने एक अभियान छेड़ा है। मैं तो कहूँगा कि यह अभियान नहीं बल्कि एक महायज्ञ है। इस महायज्ञ को पूर्णाहुति तक लाने लिये आइये हम सभी श्री समीर लाल जी के साथ एक जुट हो कर युद्धस्तर का प्रयास करें।

इस बात में तो किसी प्रकार के सन्देह की गुंजाइश ही नहीं है कि हिन्दी ब्लोग्स के पाठकों की संख्या बहुत ही कम या नहीं के बराबर ही है। हम ही लिखते हैं और हम ही एक दूसरे के ब्लोग्स को पढ़ते तथा उन पर टिप्पणी भी करते हैं। किन्तु अब हमें अपने सिवा अन्य पाठकों की संख्या बढ़ानी ही होगी।

समीर लाल जी की टिप्पणी से प्रेरित हो कर मैंने अपने एक परिचित को तो 'ब्लागिया' बना ही दिया। 'नौसिखिया' नाम रखा है उन्होंने अपने ब्लोग का। वे धमतरी के रहने वाले हैं और रायपुर में कार्यरत हैं। जानना चाहेंगे कि अपने ब्लोग में पहला पोस्ट करने के तत्काल बाद उन्होंने क्या किया? उन्होंने तुरन्त फोन उठाया और धमतरी के अपने 8-10 मित्रों से अपने ब्लोग को देखने और पढ़ने का आग्रह किया। उनके मित्र जब उनके ब्लोग को देखेंगे तो अवश्य ही उन्हें अन्य हिन्दी ब्लोग्स के विषय में जानने की उत्सुकता तो होगी ही और धीरे-धीरे वे हम सब लोगों के ब्लोग्स जान ही लेंगे। इस प्रकार से कम से कम एक हिन्दी ब्लोगर और 8-10 हिन्दी पाठकों की संख्या तो बढ़ ही गई। ऐसे पाठकों की जो कि'अन्य पाठक' की श्रेणी में आयेंगे अर्थात् स्वयं ब्लोगर नहीं हैं।

तो मेरा अनुरोध है कि आप भी श्री समीर लाल जी का कहना मान कर कम से कम अपने एक परिचित को अवश्य ही हिन्दी ब्लोगर बनायें। वास्तव में यह हिन्दी की बहुत बड़ी सेवा होगी।