Saturday, June 7, 2008

वेब में प्रोफेशनल की परिभाषाएँ

द्विवेदी जी के ब्लॉग की प्रविष्टियों ने "प्रोफेशनल" होने के प्रति जिज्ञासा को प्रबल कर दिया और यह जानने की उत्सुकता हुई कि इस विषय में वेब क्या कहता है। वेब में किसी विषय की परिभाषाओं को जानने के लिये गूगल सर्च इंजिन एक बहुत अच्छा साधन है। मैंने गूगल सर्च इंजिन में define:professional टाइप कर के खोजा तो निम्न परिणाम मिले (मैंने यथासम्भव हिन्दी अनुवाद भी कर दिया है):

Definitions of professional on the Web:
[वेब में प्रोफेशनल की परिभाषाएँ:]

* engaged in a profession or engaging in as a profession or means of livelihood; "the professional man or woman possesses distinctive qualifications ...
* a person engaged in one of the learned professions
* an athlete who plays for pay
* engaged in by members of a profession; "professional occupations include medicine and the law and teaching"
* master: an authority qualified to teach apprentices

[किसी प्रोफेशन मे लगना या लगे रहना या आजीविका प्राप्ति का साधन; "प्रोफेशनल पुरुष या महिला के पास विशेष योग्यताएँ होती हैं ...
एक व्यक्ति जो किसी दक्ष प्रोफेशन में लगा हो।
एक खिलाड़ी जो भुगतान हेतु खेलता है।
किसी प्रोफेशन के सदस्य के रूप में लगना; "प्रोफेशनल कारोबार में चिकित्सा, विधि और शिक्षण सम्मिलित हैं।
महारथी (master): नौसिखियों को सिखाने के लिये एक योग्य अधिकारी]
wordnet.princeton.edu/perl/webwn

* A professional can be either a person in a profession (certain types of skilled work requiring formal training / education) or in sports (a sportsman / sportwoman doing sports for payment). Sometimes it is also used to indicate a special level of quality of goods or tools.

[प्रोफेशनल एक व्यक्ति होता है जो या तो किसी प्रोफेशन (कोई कुशलतापूर्वक किया जाने वाला कार्य जिसके लिये औपचारिक प्रशिक्षण/शिक्षण की आवश्यकता होती है) में लगा होता है या फिर (एक खिलाड़ी पुरुष या महिला, जो कि भुगतान के लिये खेले, के द्वारा खेले गये) खेलों में लगा होता है।]
en.wikipedia.org/wiki/Professional

* A player who receives payment for teaching or playing in tournaments. Usually shortened to Pro.

[एक खिलाड़ी जो खेल प्रतियोगिताओं (tournaments) में खेलने या शिक्षण देने के लिये भुगतान प्राप्त करता है। सामान्यतः छोटे रूप में प्रो कहलाता है।]
www.worldgolf.com/wglibrary/reference/dictionary/ppage.html

* Occupations that require knowledge in a field of science or learning typically acquired through education or training pertinent to the specialized field, as distinguished from general education. ...

[कारोबार जिसके लिये विज्ञान के क्षेत्र में ज्ञान या शिक्षण अथवा प्रशिक्षण के द्वारा उपयुक्त विशिष्ट क्षेत्र में विशेष अध्ययन की आवश्यकता होती है, जो कि सामान्य शिक्षा से हट कर होती है ...]
www.opm.gov/feddata/demograp/PartThree.doc

* work which requires the application of theories, principles and methods typically acquired through completion of a baccalaureate degree or higher or comparable experience; requires the consistent exercise of discretion and judgement in the research, analysis, interpretation and application of ...

[ऐसा कार्य जिसके लिये स्नातक उपाधि या उच्चतर या समकक्ष अनुभव के समाप्ति के पश्चात् विशेष रूप से अर्जित किये गये सिद्धांतों, नियमों तथा विधियों के अनुप्रयोग की आवश्यकता होती है; शोध, विश्लेषण, कर्म की व्याख्या आदि के लिये विवेकाधिकार और निर्णय के दृढ़ अभ्यास की आवश्यकता होती है।]
www.state.wv.us/ADMIN/PERSONNEL/clascomp/Docs/define.htm

* (pro·fes·sion·al) (pro-fesh´ə-nəl) 1. pertaining to one's profession or occupation. 2. one who is a specialist in a particular field or occupation.

[1. अपने प्रोफेशन या कारोबार से सम्बन्धित होना। 2. ऐसा व्यक्ति जिसे किसी विशेष क्षेत्र या कारोबार में विशिष्टता प्राप्त हो।]
www.mercksource.com/pp/us/cns/cns_hl_dorlands.jspzQzpgzEzzSzppdocszSzuszSzcommonzSzdorlandszSzdorlandzSzdmd_p_35zPzhtm

* A person who practices an occupation involving high standards of intellectual knowledge after successfully completing the required education and training.

[ऐसा व्यक्ति जो उपयुक्त शिक्षण और प्रशिक्षण की सफलता के पश्चात् उच्च मानदण्डों वाले बौद्धिक ज्ञान का अभ्यास करता है।]
www.faststart.state.ri.us/bfs_glossary.html

उपरोक्त परिभाषाओं से इतना तो स्पष्ट है कि प्रोफेशनल होने के लिये विशिष्ट शिक्षण, प्रशिक्षण तथा अभ्यास की आवश्यकता होती है।

कुछ परिभाषाओं में प्रोफेशन का भुगतान से सम्बन्ध भी बताया गया है। मेरा भी यही मानना है कि न केवल "प्रोफेशन" का बल्कि उसके साथ "बिजनेस" और "सर्व्हिस" शब्दों का भी सीधा सम्बन्ध भुगतान या कमाई से होता है। क्यों हम अपने बच्चों को सफल व्यापारी बनाना चाहते हैं? ताकि उन्हें प्रतिफल के रूप में उपयुक्त आजीविका, मान-सम्मान और नाम प्राप्त हो। क्यों हम अपने बच्चों को चिकित्सा या विधि आदि की उच्च शिक्षा दिलवाते हैं? ताकि वे सफल प्रोफेशनल बनें और उन्हें प्रतिफल के रूप में उपयुक्त आजीविका, मान-सम्मान और नाम प्राप्त हो। क्यों हम अपने बच्चों को इंजीनियरिंग, कम्प्यूटर साइंस आदि की उच्च शिक्षा दिलवाते हैं? ताकि उन्हें उच्च पदों वाली नौकरियाँ मिलें और प्रतिफल के रूप में उपयुक्त आजीविका, मान-सम्मान और नाम प्राप्त हो।

हमारी प्रथम आवश्यकता "आजीविका" है और आजीविका कमाई से चलती है। आजीविका के बाद दूसरी आवश्यकता उस आजीविका की सुरक्षा होती है। आज के खर्च चलाने लायक कमाई कर लेने के बाद आदमी कल की आजीविका को भी सुरक्षित देखना चाहता है। इसीलिये वह आजीविका का स्थाई साधन (सरकारी या अच्छे संस्थान में नौकरी, जमा-जमाया बिजनेस या प्रोफेशन आदि) पाने का प्रयास करता है। मान-सम्मान, नाम कमाना आदि इसके बाद ही आता है। यदि अन्य साधनों से हमारी कमाई इतनी न हो कि हम कम्प्यूटर, इंटरनेट आदि का खर्च न उठा पायें तो लाख योग्यताएँ होने के बावजूद भी हम चिट्ठाकारी नहीं कर सकते।

यदि हम अपना पसीना बहा कर कमाये गये रकम को चिट्ठाकारी के लिये खर्च करते हैं, अन्य महत्वपूर्ण कार्यों से समय निकाल कर उस समय को चिट्ठाकारी के लिये देते हैं तो उसके प्रतिफल के रूप में हमें अवश्य ही कमाई की कामना भी होनी चाहिये, तभी चिट्ठाकारी प्रोफेशनल हो पायेगी अन्यथा वह केवल शौकिया ही बनी रहेगी।

Friday, June 6, 2008

अभी बहुत समय लगेगा हिन्दी चिट्ठाकार को प्रोफेशनल बनने में

"चिट्ठाकारी तो अभी शौकिया ही रहेगी"

उपरोक्त वाक्यांश श्री दिनेशराय द्विवेदी जी के पोस्ट 'चिट्ठाकारों के लिए सबसे जरुरी क्या है?' में श्री नीरज रोहिल्ला द्वारा की गई टिप्पणी का अंश है। यह वाक्यांश एक बहुत बड़े सत्य को उद्घाटित करता है। वास्तव में हिन्दी चिट्ठाकारी 'शौकिया' है और अभी बहुत दिनों तक 'शौकिया' ही रहेगी क्योंकि हिन्दी चिट्ठाकार केवल अपने लिये (या अपने जैसे चिट्ठाकारों के) लिये लिखता है न कि पाठकों के लिये। और इसीलिये हिन्दी चिट्ठों के पाठक भी आम लोग नहीं बल्कि सिर्फ हिन्दी चिट्ठाकार ही होते हैं। गौर करने वाली बात यह है कि वकील का मुवक्किल वकील ही नहीं होता, डॉक्टर का मरीज डॉक्टर ही नहीं होता किन्तु हिन्दी चिट्ठाकार का पाठक हिन्दी चिट्ठाकार ही होता है।

ऐसे बहुत कम वकील मिलेंगे जो केवल शौक के लिये वकालत करते हैं, ऐसे बहुत कम डॉक्टर मिलेंगे जो केवल शौक के लिये डॉक्टरी करते हैं पर ऐसे बहुत से चिट्ठाकार मिलेंगे जो केवल शौक के लिये चिट्ठाकारी करते हैं। 'वकालत' एक प्रोफेशन है, 'डॉक्टरी' एक प्रोफेशन है, 'अंग्रेजी और अन्य भाषा में चिट्ठाकारी' भी एक प्रोफेशन है क्योंकि इनसे अनेकों लोगों की आजीविका चलती है किन्तु हिन्दी चिट्ठाकार की आजीविका 'हिन्दी चिट्ठाकारी' से नहीं चलती इसलिये 'हिन्दी चिट्ठाकारी' प्रोफेशन नहीं है। हिन्दी चिट्ठाकार 'चिट्ठाकारी' को अपने आय का साधन नहीं समझता। भले ही वह यह समझता है कि चिट्ठाकारी से कुछ कमाई भी हो जाये तो अच्छा है किन्तु वह चिट्ठाकारी को केवल कमाई का साधन ही नहीं समझता, क्योंकि चिट्ठाकारी उसका शौक है प्रोफेशन नहीं। हिन्दी चिट्ठाकार की यह सोच आनन-फानन में तुरन्त बदल जाने वाली नहीं है इसलिये अभी हिन्दी चिट्ठाकार को प्रोफेशनल बनने में बहुत समय लगेगा।

Thursday, June 5, 2008

गैस-डीजल-पेट्रोल

और भी मँहगी हो गईं गैस-डीजल-पेट्रोल।
खर्च बढ़ी दस फीसदी अकल हो गई गोल॥
अकल हो गई गोल कुछ भी समझ न आये।
सभी रहे हैं सोच कैसे जायें क्या खायें?
साइकिल ले लें आज से खायें छोटे कौर।
भूलें सपना कार का मँहगाई बढ़ गई और॥

Sunday, June 1, 2008

आत्माओं से बातचीत

बात सन् 1967 की है। मेरे पूज्य पिताजी को कहीं से आत्माओं से बातचीत (planchette) करने की विधि का पता चला। मैंने हायर सेकेंडरी (ग्यारहवी कक्षा) की परीक्षा दी थी और गर्मी की छुट्टियाँ मना रहा था। पिताजी ने अपनी स्कूल टीचर की नौकरी किसी कारणवश छोड़ दी थी अतः उनकी भी छुट्टियाँ ही थीं। एक दिन दोपहर को आत्माओं से बातचीत करने का प्रयोग करने का निश्चय किया गया। पिताजी ने एक कार्ड बोर्ड पर प्लेंचेट चार्ट बनाया। कमरे के एक फर्श को गंगाजल छिड़क कर पवित्र किया और उस पर प्लेंचेट चार्ट रख दिया। अगरबत्ती जला कर पूजा करने के बाद प्लेंचेट के बीचोबीच तांबे की एक ढिबरी रखी और उस पर मैं, पिताजी और मेरी दादी माँ ने तर्जनी उंगली रख दिया। मेरी माँ तथा अन्य भाई-बहन दर्शक के रूप में कमरे में बैठे थे। सभी मौन थे और वातावरण एकदम शांत था। पिताजी ने मन ही मन आत्मा का आह्वान करना शुरू किया। कुछ ही देर में हम सभी आश्चर्यचकित रह गये क्योंकि ढिबरी प्लेंचेट चार्ट पर घूम रही थी।
Planchette Chart

पिताजी ने कहा, "क्या पवित्र आत्मा आ चुकी है?" और जवाब में ढिबरी yes लिखे हुये गोले पर पहुँची और फिर वापस अपने नियत स्थान पर आ गई। उसके बाद पिताजी ने लगभग एक-डेढ़ घंटे तक आत्मा से अनेकों प्रश्न पूछे। जवाब में ढिबरी एक के बाद एक अंग्रेजी के अक्षरों तक जाती और एक शब्द बन जाने के बाद अपने नियत स्थान पर वापस आ जाती। इस प्रकार शब्द और वाक्य बनते जाते थे तथा प्रश्नों के उत्तर मिलते जाते थे। आत्मा से मिले प्रश्नों के कुछ उत्तर सही लगे थे किन्तु प्रायः उत्तर गलत थे।

प्रयोग समाप्त करने के बाद परिवार के सभी सदस्यों में चर्चा होती रही और सभी का मत यह बना कि आत्मा आई तो थी किन्तु प्रश्नों के उत्तर संतोषजनक नहीं थे। शायद सही के बजाय कोई गलत आत्मा आ गई थी। अब तो हमें प्लेंचेट करने की एक लत सी लग गई। दोपहर के भोजन के बाद रोज प्लेंचेट करना हमारी दिनचर्या का एक अंग बन गया। यद्यपि संतोषजनक उत्तर नहीं मिलते थे किन्तु हमें गर्मी की दोपहर में समय बिताने तथा मनोरंजन का एक नया साधन मिल गया था।

इस प्रकार रोज प्लेंचेट करते लगभग एक माह बीत गया। रोज की तरह एक दिन प्लेंचेट करने के लिये हमने ढिबरी पर अपनी उंगलियाँ रखी ही थीं कि बिना किसी आह्वान के ढिबरी चार्ट पर घूमने लगी, शब्द और वाक्य बनने लग गये। चार्ट पर ढिबरी की गति इतनी तेज थी कि हमारी उंगलियाँ ढिबरी पर टिक नहीं पा रही थीं, कभी किसी की उंगली ढिबरी से अलग हो जाती थी तो कभी किसी की। जिसकी उंगली ढिबरी से अलग हो जाती थी वह फिर से अपनी उंगली शीघ्रतापूर्वक उस पर रख देता था। इस प्रकार से निम्न संदेश हमें प्राप्त हुआः

'मैं गोकुल प्रसाद अवधिया (मेरे दादा जी) हूँ। यह बताने के लिये कि तुम लोग इस प्रयोग को करना बंद कर दो, मैं अपनी मर्जी से आया हूँ। इस प्रयोग के करते रहने से कभी भी कुछ अशुभ और अनिष्ट होने की आशंका है।'

हम लोग स्तब्ध रह गये। कुछ क्षणों के बाद जब हम संयत हुये तो पिताजी ने कहा, "ठीक है, अब से हम इस प्रयोग को नहीं किया करेंगे। पर यहाँ से जाने के पहले क्या आप हमारे प्रश्नों के उत्तर देने की कृपा करेंगे?"

उत्तर 'हाँ' में था।

उस रोज के अनेकों प्रश्न और उत्तर मुझे आज भी याद हैं जो नीचे दिये जा रहे हैं:

'मृत्यु के बाद तो मोह समाप्त हो जाता है फिर आप क्यों हमें संदेश देने आये हैं?' (पिताजी का प्रश्न था)

"मोह समाप्त हो तो जाता है किन्तु पूर्ण रूप से नहीं, जब तक मोक्ष न मिल जाये मोह का कुछ न कुछ अंश बना रहता है।"

'क्या सात लोक या आसमान होते हैं?'

"हाँ"

'आप किस लोक में हैं?'

"5वाँ"

'क्या मैं पास होउंगा?' (मेरा प्रश्न था)

"हाँ"

'किस डिवीजन में?'

"सेकण्ड डिवीजन में"

'मुझे तो फर्स्ट डिवीजन की उम्मीद है?'

"सेकण्ड डिवीजन"

(जब परीक्षा परिणाम आया तो मुझे 58.8% मिले थे।)

'मेरे प्राविडेंट फंड का पैसा मिलेगा?'(पिताजी का प्रश्न था)

"हाँ, किन्तु केवल तुम्हारा अंशदान मिलेगा, म्युनिस्पाल्टी का अंशदान नहीं मिलेगा।"

'कब मिलेगा?'

"21 जून 1967 को"

(सच मे ही 21 जून 1967 को पिताजी के प्राविडेंट फंड के अपने अंशदान का ही भुगतान हुआ था। मुझे आज भी याद है कि उसी दिन मेरे लिये पिताजी ने उन्हीं पैसों में से फिलिप्स कंपनी का रेडियो खरीदा था और घर में रेडियो को फिट करने के बाद मैने विविध भारती का मनचाहे गीत कार्यक्रम लगाया था तथा उसमें फिल्म "राजा और रंक" का "रंग बसंती..." गीत प्रसारित हो रहा था।)

और भी प्रश्न पूछे गये थे जो कि विशेष उल्लेखनीय नहीं है।

उस दिन के बाद से पिताजी ने न तो फिर कभी प्लेंचेट का प्रयोग किया और न ही हमें करने दिया।

इस पोस्ट से मेरा आशय अलौकिक शक्तियों का प्रचार-प्रसार नहीं है। एक घटना जो मेरे साथ बीती थी याद आ गई और मैने पोस्ट कर दिया। वैसे प्लेंचेट के प्रयोग को परामनोविज्ञान मान्यता देती है।