Thursday, December 25, 2008

हमें गलतफहमी (misunderstanding) से बचना है

ज्ञानदत्त जी के पोस्ट "वर्तमान पीढ़ी और ऊब" के प्रतिक्रियास्वरूप लिखे गये कुछ पोस्ट मैने पढ़े (ज्ञानदत्त जी से प्रेरित, नयी पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी, ये फासला क्यों?, मानसिक हलचल की हलचले) इन्हें पढ़ कर लग रहा है कि हमारे बीच कुछ गलफहमियाँ सी उत्पन्न हो गई है। इससे पहले कि गलफहमी और बढ़े उसे खत्म कर देने में ही भलाई है।

मैं समझता हूँ कि ज्ञानदत्त जी का विरोध ऊब से था, कि नई पीढ़ी से। हाँ उन्होंने ऊब को वर्तमान पीढ़ी के साथ सीधा जोड़ दिया यह मेरी समझ में ठीक नहीं हुआ (ज्ञानदत्त जी कृपया अन्यथा लें) ऊब तो पुरानी पीढ़ी में भी थी। मैं स्वयं जब दसवीं कक्षा में था तो कोर्स में शामिल चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' जी की विख्यात कहानी "उसने कहा था" को पहली बार पढ़ कर ऊब गया था क्योंकि उसे पहली बार पढ़कर मैं समझ नहीं सका था। उस ऊब के कारण उस कहानी को फिर से पढ़ने की इच्छा ही नहीं हो रही थी। पर हर साल परीक्षा में उस कहानी से कम से कम एक प्रश्न अवश्य ही आता था, मुझे उस कहानी को समझने के लिये बार बार पढ़ना ही पड़ा। आज "उसने कहा था" मेरी प्रिय कहानियों में से एक है। हाँ तो मैं कह रहा था कि ऊब सिर्फ वर्तमान पीढ़ी में ही नहीं है, पुरानी पीढ़ी में भी थी। किन्तु आज हर काम के लिये शार्टकट अपनाने, जैसे कि पाठ्यपुस्तक के पाठ पढ़ कर परीक्षा गाइड पर निर्भर रहने, का चलन बढ़ गया है। यह ऊब के बढ़ जाने के परिणामस्वरूप ही है।

यह भी सही है कि ऊब जाना एक स्वाभाविक क्रिया है जिससे कोई भी नहीं बच सकता चाहे वह वर्तमान पीढ़ी का हो या पुरानी पीढ़ी का। किन्तु ऊब के कारण हम शार्टकट रास्ते अपना कर यदि उब को सहने और ऊब से लड़ने का प्रयास करें तो क्या यह अधिक अच्छा नहीं होगा?

और फिर पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच कुछ कुछ दूरी याने कि जनरेशन गैप तो सदा से ही चलती आई है। जब हमारी पीढ़ी युवा थी अर्थात् उन दिनों की नई पीढ़ी थी तो हमें भी अपनी पुरानी पीढ़ी दकियानूस लगा करती थी। ईश्वर ने मनुष्य का स्वभाव ही ऐसा बनाया है कि यह दूरी कभी भी मिट नहीं पायेगी। पुरानी पीढ़ी सदा ही अतीत में जीती है और अतीत को वर्तमान से अच्छा समझती है और यह भी स्वाभाविक है कि वर्तमान पीढ़ी वर्तमान को अतीत से अच्छा समझती है। दोनों पीढ़ियों में "कुत्ते बिल्ली का बैर" था, है और हमेशा रहेगा।

तो हम यदि हम पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी की बात को भूलकर ज्ञानदत्त जी के पोस्ट को पढ़ें तो सारी गलफहमियाँ अपने आप दूर हो जायेंगी।

Tuesday, December 23, 2008

मेरे ब्लॉग की पाठक संख्या क्यों कम है?

और किसी के मन में यह प्रश्न उठे या न उठे पर मेरे मन में तो प्रायः ही यह प्रश्न उठता है कि मेरे ब्लॉग की पाठक संख्या क्यों कम है?

मैं यह समझता हूँ कि यह सिर्फ आपकी लिखी सामग्री है (content) जो कि पाठकों को खींच कर आपके ब्लॉग में लाती है। अंग्रेजी की उक्ति हैः

'Content is king.'

अर्थात् यदि हिन्दी में कहें तो "सामग्री ही साम्राज्ञी है।"

तो जब भी आप अपने ब्लॉग की सामग्री लिखें तो यह सोच कर न लिखें कि कुछ न कुछ तो लिखना है क्योंकि ऐसी सामग्री को कोई भी पाठक पढ़ना पसंद नहीं करता। फिर ऐसे लेखन का क्या फायदा जिसे कि कोई पढ़े ही नहीं। यह तो वही बात हुई कि जंगल में मोर नाचा किसी ना देखा। तो लिखते समय हमेशा अपनी सामग्री की उत्कृष्टता ध्यान रखें।

पाठक क्या चाहता है?

अपने लेख को लोकप्रिय बनाने के लिये यह जानना बहुत जरूरी है कि पाठक क्या चाहता है। यदि पाठक को उसके पसंद की सामग्री मिलेगी तो वह उसे अवश्य ही पढ़ेगा। तो आखिर पाठक क्या चाहता है? वास्तव में पाठक संतुष्टि चाहता है। वह चाहता है कि उसे घिसी पिटी चीज पढ़ने को न मिले। उसने जो कुछ भी पढ़ा है उससे उसे कुछ नई जानकारी मिली है, उसके ज्ञान में कुछ वृद्धि हुई है।

तो ऐसे लेख पढ़ कर जिससे पाठक को कुछ भी प्राप्त नहीं होता, उसे क्षोभ होता है और जिस ब्लॉग में उसे ऐसी सामग्री पढ़ने को मिली है उस ब्लॉग से वह कन्नी काट लेता है। इसके विपरीत यदि उसे किसी ब्लॉग की सामग्री को पढ़कर कुछ नयापन मिले, उसे संतुष्टि हो तो वह उस ब्लॉग का चाहने वाला बन जाता है।

रोज रोज आखिर नई जानकारी लायें कहाँ से?

यह यक्षप्रश्न है कि आखिर रोज हम अपनी सामग्री में कहाँ से नयापन लायें? सच्चाई भी यही है कि हम हमेशा नई जानकारी नहीं प्राप्त कर सकते। पर हाँ किसी पुरानी जानकारी को ऐसी शैली में प्रस्तुत कर सकते हैं कि उसमें नयापन झलकने लगे। प्रायः सभी सफल लेखक यही करते हैं और इस प्रकार के प्रस्तुतीकरण को पाठक भी पसंद करते हैं।

लिखना शुरू करने के पहले
  • जानने का प्रयास करें कि पाठकों की रुचि क्या है। कोशिश करें कि आपका लेखन उनकी रुचि के अनुरूप हो न कि आपकी अपनी रुचि के।

  • जिन ब्लॉगर्स के ब्लॉग अधिक पढ़े जाते हैं उन्हें पढ़ें और विश्लेषण करें कि उनकी सामग्री में क्या विशेषताएँ हैं जिनके कारण लोग उन्हें पढ़ते हैं। इस प्रकार आपको स्वयं के लेखन की कमजोरियों का पता चलेगा। और यह कहने की आवश्यकता ही नहीं है कि अपनी कमजोरी जान लेने पर उन्हें दूर करने का प्रयत्न करना है।

  • उन विषयों पर लिखने के लिये कभी भी न सोचें जिन पर आप अधिकार नहीं रखते। इधर उधर से एकत्रित की गई सामग्री कभी भी किसी को प्रभावित नहीं करती बल्कि कई बार लेखक की स्थिति को हास्यास्पद बना देती है।

  • जो कुछ भी आप लिखना चाहते हैं उसके लिये तरतीबवार पॉइंट्स बना लीजिये ताकि लिखते समय कुछ छूट न जाये।

  • लिखने के पहले स्वयं में पूर्ण आत्मविश्वास बना लें तभी लिखना शुरू करें।
लिख लेने के बाद

अपने लेख को आनन फानन में प्रकाशित न करें। पहले उसे कम से कम एक बार पढ़ें, दो बार पढ़ें तो और भी अच्छा है। विचारों के प्रवाह में लिखते समय प्रायः हिज्जे, व्याकरण और वाक्य विन्यास की गलतियाँ हो जाती हैं और इन गलतियों का पाठक के ऊपर विपरीत प्रभाव पड़ता है। प्रकाशन के पूर्व एक बार पढ़ लेने से हमें अपनी गलतियों की जानकारी हो जाती है और हम उसे सुधार सकते हैं।

पाठक के रुचि के प्रतिकूल सामग्री हो तो?

कभी कभी ऐसा भी हो जाता है कि हम पाठकों को ऐसी सामग्री देना चाहते हैं जिनके विषय में हम जानते हैं कि यह उनके लिये हितकारी है किन्तु उनकी रुचि के अनुरूप नहीं है। ऐसी स्थिति में आप अपने लेख को इस चतुराई से (tactfully) लिखें कि पाठक को वह सुरुचिपूर्ण लगे। मतलब यह कि कड़वी दवा के ऊपर शक्कर की परत।

पाठक संख्या बढ़ाने के लिये क्या करें?

सबसे अहम् बात तो यह है कि लोग जानें कि आपका ब्लॉग अपडेट हो गया है। ब्लोवाणी, चिट्ठाजगत, नारद जैसे हमारे हिन्दी एग्रीगेटर्स आपकी इस समस्या को बहुत हद तक हल कर देते हैं पर अभी भी बहुत से लोग हैं जो कि इन हिन्दी एग्रीगेटर्स के विषय में नहीं जानते अतः ब्लॉग अपडेट के के तत्काल बाद ही उसे पिंग करें। पिंग करने के लिये आप pingoat.com, pingomatic.com जैसी मुफ्त सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं। पिंग होने पर आपके ब्लॉग का अपडेशन विश्व के सभी बड़े ब्लॉग डायरेक्टरियों में स्वतः ही शामिल हो जाता है।

digg.com, technorati.com जैसे सोशल बुकमार्किंग साइट्स का (मुफ्त) सदस्य बनें का और अपने फेव्हरिट्स में अपने ब्लॉग को जोड़ दें। इस प्रकार जो लोग इन साइट्स के कई लाख सदस्यों पता चल जाता है कि आपका ब्लॉग अपडेट हो चुका है।

(विशेषकर technorati.com का क्योंकि वह हिन्दी को सपोर्ट करता है। यदि digg.com का प्रयोग करना है तो रोमन हिन्दी का प्रयोग करें।)

अपने लेख को कृति निर्देशिका में भी डाल दें और स्रोत बक्से में लिखें कि

".....(आपका नाम) हिन्दी के प्रति समर्पित लेखक हैं। उनके अन्य लेखों को पढ़ने के लिये आपका ब्लॉग में अवश्य पधारें।

इस प्रकार आपके ब्लोग के विषय में वहाँ आने वाले लोगों को जानकारी मिलेगी तथा आपके ब्लोग का इनबाउंड लिंक बढ़ेगा और सबसे बड़ी बात तो यह होगी कि इन्टरनेट के हिन्दी सामग्री में इजाफा होगा।