Thursday, August 27, 2009

हिन्दी ब्लोग्स में हिज्जों और व्याकरण की गलतियाँ

यह खुशी की बात है कि हिन्दी ब्लोग्स की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। नित नये नये लोग हिन्दी ब्लोगर्स बनते जा रहे हैं। पर जब कभी भी हिन्दी ब्लोग्स में "हम मुर्ख हैं", "बातें कि जाये" आदि पढ़ता हूँ तो मन क्षोभ से भर उठता है। अंग्रेजी के ब्लोग्स तथा वेबसाइट्स में इस बात का पूरा पूरा ध्यान दिया जाता है कि हिज्जों और व्याकरण की गलतियाँ न रह जायें और इसीलिए वहाँ पर ढूँढने से भी गलतियाँ नहीं मिलती।

यह सही है कि सभी हिन्दी ब्लोगर्स की मुख्य भाषा हिन्दी नहीं है इसलिए हिज्जों और व्याकरण की गलतियाँ होनी तो स्वाभाविक ही है। मगर कई बार उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे हिन्दीभाषी क्षेत्र के ब्लोग्स में भी हिज्जे और व्याकरण की गलतियाँ मिलती हैं। इसका मुख्य कारण सिर्फ यही लगता है कि हम हिन्दीभाषी ब्लोगर्स अपनी प्रविष्टियाँ आनन फानन में बिना जाँचे ही प्रकाशित कर देते हैं। यदि हम अपनी प्रविष्टियाँ प्रकाशित करने के पहले एक बार उसे पढ़ लें तो इस प्रकार की गलतियाँ हो ही नहीं सकती।

हिन्दी को इंटरनेट की प्रमुख भाषाओं में से एक बनाने के लिए हमें उसकी गुणवत्ता पर पूरा पूरा ध्यान रखना ही होगा। इसके लिए हम सभी हिन्दी ब्लोगर्स को संकल्प लेना होगा कि अपनी प्रविष्टि प्रकाशित करने के पूर्व हम सुनिश्चित हो जाएँ कि कहीं कोई हिज्जे या व्याकरण की गलती तो नहीं रह गई है।

13 comments:

अविनाश वाचस्पति said...

अवधिया जी एक अच्‍छी समस्‍या की ओर आपने ध्‍यान दिलाया है पर जहां तक अपने अनुभव से मैं समझा हूं कि इसके मूल में रोमन हिज्‍जों के जरिए हिन्‍दी टाईप करना है और बड़ी व छोटी इ व ई की मात्रा लगाने के लिए अंग्रेजी में आई अक्षर को टाईप कर दिया जाता है जबकि इसके स्‍थान पर बड़ी ई की मात्रा लाने के लिए डबल ई टाइप करने से यह समस्‍या नहीं होगी।

रोमन के जरिए यूनीकोड में हिन्‍दी टाईप करने वाले मित्र इसका ध्‍यान रखेंगे तो हिन्‍दी के लाभ के साथ सबका भला भी होगा।
जय हिन्‍दी। जय हिन्‍दुस्‍तान। मेरी भाषा महान।

ओशो परमानंद said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

सही है, मुझे भी पढ़ने में बड़ा अटपटा लगता है… आशा है कि ब्लॉगर बन्धु इस पर ध्यान देंगे…

Dr. Shreesh K. Pathak said...

समस्या निश्चित ही गंभीर है , कारण भी आप खूब समझ रहे हैं ,,,,लोगों का आनन -फानन में रहना भी आप समझ रहे हैं , सहिष्णुता जरुरी है और यदि चाहते है कि हिंदी ब्लोगेर्स बढ़ते रहे तो प्रोत्साहन करते रहिये ...और झिड़की मीठी दिया करिए ....कृपा करके इसकी इंग्लिश से बार -बार तुलना करके केवल इंग्लिश को मापदंड मत बनाइये , वैसे भाषा बैर भाव तो नहीं सिखाती..संवाद सेतु और सम्बन्ध सेतु बनती रही है .

Unknown said...

श्रीष जी,

आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद!

मेरा मंतव्य अंग्रेजी को मापदंड बनाने का जरा भी नहीं है पर इस बात को तो नकारा नहीं जा सकता कि वहाँ पर गलतियों के लिए सजगता है। स्वयं सजग होने के लिए अपनी तुलना तो किसी सजग से ही करना पड़ेगा और इसीलिए मैंने यह तुलना की है, यह तुलना हिन्दी की उन्नति के लिए है न कि हिन्दी को हीन दर्शाने के लिए।

अनुनाद सिंह said...

अवधिया जी,
वर्तनी की गलतियों से कहीं व्याकरण की गलतियाँ अधिक खटकने वाली होती हैं। हिन्दी व्याकरण के अनुसार ही शब्दों का वहुबचन बनाना चाहिये - इस हिसाब से आपका "ब्लोग्स' लिखना भी ठीक नहीं है। इसके स्थान पर 'ब्लागों' लिखते तो अधिक अच्छा रहता।

विजय गौड़ said...

कोशिश रहेगी कि आगे से ठीक हो, वाकई लापरवाही तो हो ही जाती है अपन से भी।

Anil Pusadkar said...

भाषा का सत्यानाश अख़बार सबसे ज्यादा कर रहे हैं,ब्लाग्स भी धीरे-धीरे उसी श्रेणी मे आ रहे हैं।इस बात का खयाल सभी को रखना चाहिये।आभार आपका एक अच्छी पोस्ट के लिये।

वीनस केसरी said...

अविनाश जी कि बात से सहमत हूँ, मेरी भी कोशिश रहती है गलती ना हो
वीनस केसरी

RC Mishra said...

आपने मात्रा की गलतियों का उदाहरण दिया है, वैसे इस पोस्ट की आखिरी टिप्पणी मे व्याकरण की भी २ गलतियाँ उपलब्ध है :)

संजय बेंगाणी said...

भूल से हुई गलती माफ है, केवल वर्तनी दोष के डर से लिखना गलत है. मगर उस ओर सावधान न रहना माफी योग्य नहीं.


वर्तनी जाँचक की अन-उपलब्धता भी एक कारण है. हर कोई पण्डित नहीं हो सकता.

आपने सही लिखा है.

संजय बेंगाणी said...

केवल वर्तनी दोष के डर से "न" लिखना गलत है.

Anonymous said...

हमने तो कान पकड़ लिए हैं ऐसी गलतियों की ओर इशारा भी ना करने के लिए :-)

एक से बढ़कर एक जवाब दिए जाते हैं:

भावना देखिए, भाषा मत देखिए
लिख तो रहे हैं ना…
ये सब ट्रांसलिटरेशन के कारण होता है…
हम तो ऐसे ही लिखेंगे क्या करोगे
हमने तो ऐसा ही सीखा है लिखना
अब क्या डिक्शनरी देख देख कर लिखें
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में भाषा विज्ञान का बंधन क्यों
उसने भी तो ऐसा ही लिखा है उसको क्यों नहीं बोलते

मिश्रा जी की चुटकी भी अच्छी है। बेंगाणी जी (मशीनी) वर्तनी जांचक की अन-उपलब्धता बताते हैं जबकि (मानवीय) वर्तनी के अनुसार इसे अनुपलब्धता होना था।

(बेंगाणी जी अन्यथा ना लें, मेरा मंतव्य मात्र एक ध्यानाकर्षण था)