Monday, May 11, 2009

देवनागरी लिपि - पूर्णतः वैज्ञानिक लिपि

शायद आपको पता होगा कि हमारी हिन्दी की वर्णमाला, वास्तव में देवनागरी वर्णमाला, पूर्णतः वैज्ञानिक है। वर्ण या अक्षर ध्वनि को प्रदर्शित करने वाले संकेत होते हैं और देवनागरी वर्णमाला को पूर्णतः ध्वनि की उत्पत्ति के आधार पर ही बनाया गया है। मनुष्य ध्वनि उत्पन्न करने के लिये अर्थात् बोलने के लिये कंठ से होठों तक के तंत्र का प्रयोग करता है और देवनागरी वर्णमाला में इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है कि एक ही प्रकार से उत्पन्न होने वाली ध्वनियों का विशेष वर्ग हो।

कंठ से निकलने वाली ध्वनियों को स्वर कहा जाता है और उन ध्वनियों को जिनके उच्चारण के लिये उनके साथ स्वरों का मेल होना आवश्यक होता है व्यंजन कहा जाता है। देवनागरी के स्वर अ, आ इ, ई, उ, ऊ ए, ऐ, ओ, औ, अं तथा अः सीधे कंठ से उत्पन्न होते हैं तथा इनके बोलने में अन्य स्वर तंत्र जैसे कि जीभ, तालू, मूर्धा, होठ आदि का कहीं प्रयोग नहीं होता। इन 12 स्वरों के अतिरिक्त देवनागरी के चार और स्वर ऋ, ॠ, ऌ तथा ॡ हैं जो कि सीधे कंठ से उत्पन्न नहीं होते किन्तु माने स्वर ही जाते हैं। इनमें से अंतिम तीन स्वरों का प्रयोग केवल संस्कृत में ही होता है, इनका प्रयोग हिन्दी में बिल्कुल ही नहीं होता। अन्य लिपियों में भी सीधे कंठ से निकलने वाली ध्वनियों को स्वर (vowel) कहा जाता है जैसे कि अंग्रेजी में a e io u स्वर (vowel) हैं।

शेष 36 व्यंजन हैं जिन्हें कि उनकी उत्पत्ति के आधार पर आठ वर्गों में बाँटा गया है जो कि नीचे दर्शाये जा रहे हैं

क ख ग घ ङ (क वर्ग)
च छ ज झ ञ (ख वर्ग)
त थ द ध न (त वर्ग)
ट ठ ड ढ ण (ट वर्ग)
प फ ब भ म (प वर्ग)
य र ल व
स श ष ह
क्ष त्र ज्ञ

एक वर्ग के वर्णो के उच्चारण करने पर हर बार ध्वनि तंत्रों की एक ही जैसी क्रिया होती है जैसे कि प वर्ग के वर्णों को बोलने में दोनों होठ आपस में जुड़ कर अलग होंगे।

यहाँ पर यह भी बता देना उचित है कि ड़ तथा ढ़ की गणना देवनागरी के 52 अक्षरों में नहीं होती बल्कि ये संयुक्ताक्षर कहलाते हैं।

देवनागरी लिपि का पूर्णतः वैज्ञानिक आधार पर होने के ही कारण माना जाता है कि यह कम्प्यूटर के लिये सर्वथा उपयुक्त लिपि है किन्तु अक्षरों के अनेकों प्रकार से मेल होने की जटिलता के कारण इस लिपि में कैरेक्टर्स की संख्या का निर्धारण न हो पाने के कारण इसका कम्प्यूटर की भाषा में सही सही प्रयोग हो पाना अभी तक सम्भव नहीं हो सका है।

Sunday, May 10, 2009

हम तो बेवकूफ हैं जो हर रोज माँ का चरणस्पर्श करते हैं

सोचा कि चलो थोड़ा ब्लोगवाणी को भी झाँक लें। अरे यहाँ तो आज माँ ही माँ हैं। मैं तो ठहरा पुराना आदमी जिसे कि किस दिन कौन सा डे है पता ही नहीं रहता। ब्लोगवाणी में झाँकने से पता चला कि आज मदर्स डे है।

सोचने लगा कि हम तो बेवकूफ हैं जो हर रोज माँ का चरणस्पर्श करके उसके प्रति अपना सम्मान व्यक्त करते हैं (आज वे इस संसार में नहीं है तो भी प्रतिदिन उन्हें याद करके मन ही मन में उन्हें प्रणाम कर लिया करते हैं)। आज के लोग अधिक बुद्धिमान हैं जिन्होंने माँ का सम्मान करने के लिये साल में एक दिन तय कर लिया है। मदर्स डे के दिन माँ का खूब सम्मान कर लो फिर बाकी दिन उन्हें देखने की भी क्या जरूरत है?

जमाना बदल गया है पर अफसोस है कि हम जमाने के साथ नहीं बदल सके।