Saturday, September 12, 2009

हिन्दी ब्लोगिंग को योजनाबद्ध तरीके से प्रचारतंत्र बनाया जा रहा है

आजकल हिन्दी ब्लोग्स में ऐसी ऐसी टिप्पणियाँ आ रही हैं जिन्हें टिप्पणी न कह कर लोगों की भावना को ठेस पहुँचाने और अपने विचारों को थोपने का प्रयास कहना अधिक उचित होगा। इन टिप्पणियों के अन्त में कुछ लिंक होते हैं जो कि विज्ञापन का कार्य करते हैं। इन लम्बी लम्बी टिप्पणियों का मात्र उद्देश्य है जिस ब्लोग में टिप्पणी की गई है उसके ब्लोगर के विचारों को येन-केन-प्रकारेण गलत सिद्ध करना और उसकी भावनाओं को ठेस पहुँचाना, अपने विचारों को थोपने की भरपूर कोशिश करना और अपने अनुरूप साइट्स का विज्ञापन करना। एक दो ऐसी टिप्पणियाँ आप इन ब्लोग्स में देख सकते हैं

http://panditastro.blogspot.com/2009/09/blog-post.html

http://induslady.blogspot.com/2009/09/blog-post_09.html

इन्हें ज्योतिष, पुनर्जन्म, हिन्दू जैसे शब्दविशेष दिखे नहीं कि पहुँच गए वहाँ अपनी दूकान लगाने के लिए। भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाली इनकी टिप्पणियों में प्रभाव उत्पन्न करने के लिए बड़े बड़े नामों, जैसे कि मैक्समूलर, राधाकृष्णन, चाणक्य, और भी बहुत से, का उल्लेख किया जाता है। इनका उद्देश्य है कि भावनाओं को ठेस पहुँचा कर हममें कुंठा उत्पन्न करें और धीरे धीरे हमारी ये कुंठा हीन भावना में बदल जाए। बहुत बड़ी साजिश है ये।

हिन्दी ब्लोगिंग स्वस्थ विचार विमर्श का माध्यम है और हम इसे दुष्प्रचारतंत्र कदापि नहीं बनने देंगे। हमारा ब्लोग हमारा घर है और प्रेमपूर्वक वहाँ आने वाले का हम स्वागत करेंगे, अतिथि बना कर सिर-आँखों पर बिठायेंगे पर हमारे घर में गंदगी फैलाने की नीयत से आने वाले को हम भीतर घुसने ही नहीं देंगे। प्रचार और विज्ञापन ही करना है तो अपने घर से करो, अपने ब्लोग से करो, हम वहाँ जाकर रोकने वाले नहीं हैं। पर अपने प्रचार और विज्ञापन के लिए तुम हमारे घरों का प्रयोग नहीं कर सकते।

हम लोग तो सीधे-सरल या सही अर्थों में 'परबुधिया' आदमी हैं, दूसरों की बुद्धि के अनुसार चलने वाले। जो जैसा कहता है मान लेते हैं। किसी ने कह दिया कि तुम्हारे देश का नाम आर्यावर्त या भारतवर्ष नहीं है बल्कि हिन्दोस्तान (हिन्दुस्तान) या इंडिया है और हमने मान लिया। किसी ने कह दिया कि तुम सनातन धर्मी नहीं हिन्दू धर्मी हो और हमने मान लिया। अब कोई और कह रहा है कि हिन्दू कोई धर्म नहीं है बल्कि एक शब्द है, एक क्षेत्रविशेष में निवास करने वालों को हिन्दू कहा जाता है और हम उसे भी मान लेंगे। हमारी इसी सरलता का हमेशा फायदा उठाया जाता रहा है।

हिन्दी ब्लोगिंग एक मनोहर वाटिका है, यहाँ उल्लुओं को प्रवेश देकर हम इसे उजड़ने नहीं देंगे। हिन्दी ब्लोगिंग एक स्वच्छ सरोवर है, हम गंदी मछलियों को इसे गंदा करने का अधिकार बिल्कुल नहीं देंगे।

इन विषैली टिप्पणियों को अपने ब्लोग में आने से रोकने के लिए हमारे पास टिप्पणी मॉडरेशन नाम का बहुत अच्छा साधन है और हम सभी अब इस साधन का प्रयोग करेंगे। आज से पहले मैं इस साधन का प्रयोग नहीं करता था पर अब मैंने टिप्पणी मॉडरेशन को सक्षम कर दिया है। क्यों झेलें हम किसी की गलत टिप्पणी को।

आप लोगों से भी अनुरोध है कि अपने ब्लोग में टिप्पणी मॉडरेशन सक्षम कर लें। वैसे तो सभी ब्लोगर बन्धु जानते ही होंगे कि टिप्पणी मॉडरेशन को कैसे सक्षम किया जाता है फिर भी हो सकता है कि कुछ लोगों को इसका ज्ञान न हो। तो समझ लीजिए कि इसे कैसे किया जाता है। बहुत सरल काम है यह। सबसे पहले आप अपने ब्लोगर खाते में लागिन करें और सेटिंग्स को क्लिक कर दें।

अब आपक कमेंट्स सेक्शन को क्लिक करें

अब नीचे स्क्रोल करके कमेंट मॉडरेशन में always को चेक कर दें।

हो गया आपका कार्य सम्पन्न।

(फिलहाल एडसेंस के विषय में मैं एक प्रयोग कर रहा हूँ याने कि अपने लड़के के नाम से एक नया एडसेंस खाता खोलने जा रहा हूँ। इस प्रयोग में सफल हो जाने के बाद मैं एडसेंस विषयक श्रृंखला की अगली कड़ी लिखूँगा ताकि आपको बता सकूँ कि मेरे लड़के के नाम से खाता कैसे खुला और खाता खुल जाने के बाद क्या और कैसे करना है।)

Friday, September 11, 2009

गूगल एडसेंस से कमाई - विज्ञापनों पर क्लिकयाने कौन आयेगा?

कल गूगल एडसेंस से कमाई से सम्बन्धित मेरे पोस्ट में घोस्ट बस्टर जी अपनी टिप्पणी में लिखते हैं:

दूसरे चलिये मान भी लिया कि किसी जुगाड़-तुगाड़ से कबाड़ भी लिये विज्ञापन, तो उनपर क्लिकयाने कौन आयेगा? यहां तो सभी ब्लॉगर ही हैं, पाठक नहीं. और जब सभी दुकानों पर एक ही माल मिले तो दूसरे की दुकान से कौन खरीदेगा? अपनी घ्रर की दुकान से ही खरीदेगा ना.
यह वास्तव में लाख रुपये का प्रश्न है। देखा जाए तो अपना ब्लोग बन जाने के बाद दो बड़ी समस्याएँ आती हैं पहला रोज रोज क्या पोस्ट करें और दूसरा अपने ब्लोग के लिए व्हिजिटर्स कहाँ से पायें। क्योंकि दूसरी समस्या के लिए प्रश्न आ चुका है इसलिए मैं दूसरी समस्या पर पहले चर्चा करता हूँ।

हम लोगों में से शायद ही कोई ऐसा हो जो कि कभी भी किसी अंग्रेजी ब्लोग में न गया हो याने कि हम सभी कभी न कभी किसी न किसी अंग्रेजी ब्लोग में जा चुके हैं। अब अंग्रेजी ब्लोग्स के लिए हमारे पास कोई एग्रीगेटर तो है नहीं जो देखा कि आज किसने क्या लिखा है और पहुँच गए अपनी मनपसंद ब्लॉग में। तो जरा सोचिए कि हम किसी ब्लोग में कैसे जाते हैं? सीधा सा उत्तर है कि हम कुछ सर्च करते हैं और सर्च रिजल्ट में बताए गये ब्लोग या वेबसाइट में पहुँच जाते हैं। सही कह रहा हूँ ना? यह हो सकता है कि आप किसी और तरीके से किसी अंग्रेजी ब्लोग में गए हों पर अधिकतर लोग किस ब्लोग या वेबसाइट में सर्च करके ही जाते हैं।

तो अपना अंग्रेजी ब्लोग बना लेने के बाद हमें कुछ ऐसा करना होगा कि हमारा अंग्रेजी ब्लोग सर्च इंजिन में इंडेक्स हो जाए याने कि दिखने लगे और न सिर्फ दिखने लगे बल्कि पहले पेज में दिखने लगे। सर्च इंजिन में अपने ब्लोग को इंडेक्सिंग कराने के लिए हमें कुछ पापड़ बेलने होते हैं जिसे कि S.E.O. (Search Engine Optimazation) कहा जाता है। यदि सही तरह से S.E.O. किया जाए तो आपका ब्लोग या वेबसाइट अवश्य ही सर्च इंजिन के पहले पेज में दिखाई देने लगेगा। उदाहरण के लिए आप गूगल सर्च के सर्च बॉक्स में hindi website लिख कर सर्च कर देख सकते हैं, नीचे स्क्रीनशॉट देखें:

और आपको यह बताने में प्रसन्नता के साथ साथ गर्व का भी अनुभव होता है कि उपरोक्त परिणाम में पहला वेबसाइट मेरा ही हिन्दी वेबसाइट है। तो यदि यह काम मैं कर सकता हूँ तो आप क्यों नहीं कर सकते? आप भी जरूर कर सकते हैं। बस जरूरत है तो लगन और मेहनत की। यदि कोई कठिनाई आती है तो आपकी सहायता के लिए मैं तो हाजिर हूँ ही।

यदि आप लोग और अधिक रुचि दिखायेंगे तो इस विषय में मैं आगे पोस्ट लिखना जारी रखूँगा।

Thursday, September 10, 2009

चलिए मैं बताता हूँ तरीका गूगल एडसेंस से कुछ कमाई करने का

हिन्दी ब्लोग्स में तो फिलहाल गूगल एडसेंस के विज्ञापन नहीं आ रहे हैं। यद्यपि गूगल हिन्दी ब्लोग्स में विज्ञापन लाने के लिए जोरों से प्रयास में लगा हुआ है फिर भी अभी कहा नहीं जा सकता कि हिन्दी ब्लोग्स में एडसेंस विज्ञापन आने में कितना समय लग जायेगा। तो फिर एडसेंस से कमाई करने के लिए क्या किया जाए?

करना यह है कि अपना एक अंग्रेजी ब्लोग बनाना है। अब आप या तो इतना पढ़ते ही मेरे इस ब्लोग को तत्काल बंद कर देंगे या फिर कहेंगे कि भाई, हमें तो जान पर आती है अंग्रेजी के लेख लिखने में या हम तो अंग्रेजी में लेख लिख ही नहीं सकते या हमें तो अंग्रेजी आती ही नहीं।

देखिये, मैं आपको अपने अंग्रेजी ब्लोग के लिए अंग्रेजी लेख लिखने के लिए नहीं कह रहा हूँ पर आप एक दो लाइन तो अंग्रेजी लिख ही सकते हैं, एक शीर्षक तो बना ही सकते हैं। अंग्रेजी लिखने के नाम से बस आपको इतना ही करना है। बाकी काम आपके चित्र, व्हीडियो आदि के संग्रह कर देंगे। याने कि आपको अपने संग्रह के किसी चित्र, या व्हीडियो के लिए अंग्रेजी में एक फबता सा शीर्षक देना है और अपने ब्लोग में उस चित्र या व्हीडियो को पोस्ट कर देना है। हो सके तो चित्र से मेल खाता एकाध अंग्रेजी का वाक्य भी जोड़ दें, यह सोने में सुगन्ध का काम करेगा। आप चाहें तो आपके मोबाइल में आने वाले अच्छे अच्छे एसएमएस को भी अपने अंग्रेजी ब्लोग में पोस्ट कर सकते हैं।

उदाहरण के लिए मेरे इस अंग्रेजी ब्लोग को देख लें http://indianfunnystuff.blogspot.com/

मेरे उपरोक्त ब्लोग को देख लेने के बाद यदि आपको लगता है कि आप भी इस प्रकार का अंग्रेजी ब्लोग बना सकते हैं तो आइये आगे बढ़ें।

सबसे पहले तो आप अपने ब्लोगर खाते में लागिन कीजिए। वैसे तो आपको एक नया ब्लोग बनाना है पर उसके पहले आप सुनिश्चित कर लें कि आपके ब्लोगर खाते की डिफॉल्ट भाषा अंग्रेजी ही है क्योंकि यदि यह हिन्दी होगी तो आपको एडसेंस विज्ञापन नहीं मिलेंगे। इसके लिए आप ब्लोगर खाते के डैशबोर्ड को एकदम नीचे तक स्क्रोल करें। वहाँ आपको लेंग्वेज आप्शन दिखाई देगा। उसे क्लिक करने पर आपको निम्न स्क्रीन नजर आयेगा।

वहाँ यदि पहले से ही अंग्रेजी है तब तो कोई बात नहीं है और यदि वहाँ हिन्दी है तो उसे बदल कर अंग्रेजी कर लें। निश्चिंत रहिए, इससे आपके हिन्दी ब्लोग में कोई भी फर्क नहीं पड़ने वाला है।

इतना करने के बाद अब आप एक नया ब्लोग बना लें जो कि आपका अंग्रेजी ब्लोग होगा।

अपने इस नये अंग्रेजी ब्लोग में कुछ भी पोस्ट करने के पहले आप सेटिंग्स में जाइये और उसके बेसिक सेक्शन को क्लिक करके नीचे तक स्क्रोल करें। वहाँ आपको "इनेबल ट्रांसिलिटेरेशन" आप्शन दिखाई देगा। आप इसे अक्षम अर्थात् डिसएबल कर दीजिए। यदि यह सक्षम रहेगा तो आपके अंग्रेजी में टाइप करने पर वह उसको हिन्दी करता चला जायेगा।

अब आपको अपने इस नये अंग्रेजी ब्लोग में पोस्टिंग करना है। तो अपने संग्रह से ताबड़तोड़ आठ दस चित्र, व्हीडियो आदि चुन लीजिए और एक के बाद एक एक पोस्ट करते जाइए। पहले दिन कम से कम दस पोस्ट कर सकें तो बहुत ही बेहतर होगा। बाद में एक हफ्ते तक रोजाना तीन से पाँच पोस्ट करें। शुरू शुरू के इन पोस्ट (लगभग 30-40 पोस्ट) में आप चित्र या व्हीडियो के गुणवत्ता पर कुछ भी ध्यान दें क्योंकि ये पोस्ट ब्लोग महासागर के गर्त में चले जाने वाले हैं और इन्हें सिवाय आपके कोई भी सजीव प्राणी देखने वाला नहीं है। हाँ इन पोस्ट्स को सर्च इंजिन्स अवश्य देखेंगे और आपके ब्लोग की सर्च इंजन्स में इंडेक्सिंग होना शुरू हो जायेगा। चित्र और व्हीडियो आप फ्लिकर और यूट्यूब साइट्स से भी ले सकते हैं। आप चाहें तो कोई अच्छा सा मुफ्त टेम्प्लेट ढूंढ कर अपने ब्लोग को सजा सँवार भी सकते हैं।

चलिए आपका अंग्रेजी ब्लोग तो बन गया अब एडसेंस की चर्चा करते हैं। अपने इस ब्लोग में एडसेंस के विज्ञापन लाने के लिए अब आप अपने ब्लोगर खाते के मोनेटाइज़ याने कि धनार्जन को क्लिक करें और वहाँ जो भी जानकारी मांगा जाए देते जाइये। यदि आपका पहले से ही एडसेंस खाता है तो आपके ब्लोग में विज्ञापन आने शुरू हो जायेंगे और यदि आपका एडसेंस खाता नहीं है तो गूगल आपका खाता खोलने में खुद ही भिड़ जायेगा।

आज इस चर्चा को यहीं विराम देते हैं। यदि आप लोगों को अंग्रेजी ब्लोग का आइडिया पसंद आयेगा तो आगे की चर्चा कल करेंगे।

Wednesday, September 9, 2009

आप भी मजा लीजिए इस मजेदार ट्रिक का

ये ट्रिक खालिस मजा लेने के लिए है। यद्यपि ये ट्रिक बहुत पुरानी है पर जो लोग इसे नहीं जानते उन्हें यह रोचक लगेगा।

सबसे पहले तो गूगल इमेज सर्च http://images.google.com/ में जाइये।



अब सर्चबॉक्स में कुछ भी, जैसे कि taj mahal, लिखकर सर्च करें।


अब नीचे दिए गये कूट को कॉपी (Ctrl + C) करके सर्च वाले पेज के एड्रेस बार (जहाँ पर www.... लिखा जाता है) में पेस्ट (Ctrl + V) करके एंटर बटन दबा दें और देखिए तस्वीरों का तमाशा!

javascript:R=0; x1=.1; y1=.05; x2=.25; y2=.24; x3=1.6; y3=.24; x4=300; y4=200; x5=300; y5=200; DI= document.images; DIL=DI.length; function A(){for(i=0; i<DIL; i++){DIS=DI[ i ].style; DIS.position='absolute'; DIS.left=Math.sin(R*x1+i*x2+x3)*x4+x5; DIS.top=Math.cos(R*y1+i*y2+y3)*y4+y5}R++}setInterval('A()',5 ); void(0)



चलते
चलते

वीर रस के वयोवृद्ध कवि की तबीयत एकाएक खराब हो गई। हालत एकदम गम्भीर। डॉक्टरों, वैद्यों, हकीमों सभी ने जवाब दे दिया। सभी का कहना था कि कब कवि महोदय के प्राण पखेरू उड़ जायें कहा नहीं जा सकता। लोगों ने डॉक्टरों, वैद्यों, हकीमों से प्रार्थना की किसी तरह से इन्हें एक घंटे तक बचा लीजिए ताकि इनका पुत्र, जिन्हें कि सूचना दी जा चुकी है और जिन्हें घर आने में लगभग एक घंटा लग सकता है, इनका अन्तिम दर्शन कर सके। पर सभी ने यही कहा कि यह असम्भव है, कवि महोदय अधिक से अधिक आधे घंटे के मेहमान हैं। तभी उपस्थित लोगों में से एक व्यक्ति ने कहा, "मैं एक मनोचिकित्सक हूँ और मैं इन्हें इनके पुत्र के आने तक जीवित रखने की गारण्टी लेता हूँ। आप सभी मुझे इनके कमरे में अकेला छोड़ दें। कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दें और तभी खोलें जब इनका पुत्र आ जाए।"

लोगों ने मनोचिकित्सक के कहे अनुसार ही किया। अब कवि महोदय के कमरे में मनोचिकित्सक ने बेहोश कवि के कान में धीरे धीरे कहना शुरू किया, "मैं आपकी कविता सुनने के लिए आपके पास आया हूँ। वही कविता जो आपने दिल्ली के लाल किले के मंच में सुनाया था। आप की कविताएँ तो मुर्दों में जान फूँक देती हैं। क्या कविताएँ लिखते हैं आप! मुझे कविता सुनाए बगैर आप मर नहीं सकते....." मनोचिकित्सक इन वाक्यों को बार बार कवि के कान के पास दुहराने लगा। बहुत ही जल्दी प्रभाव देखने को मिल गया और कवि महोदय ने नेत्र खोल दिए, कमजोर स्वर में कहा, "मैं कैसे कविता सुना सकता हूँ? मुझमें तो उतनी शक्ति ही नहीं है।" मनोवैज्ञानिक ने कहा, "आप फिक्र मत कीजिए, मैं आपमे शक्ति का संचार करूँगा़, आपकी कविताओं के प्रति मेरा प्रेम का भाव आपको शक्ति देगा, आपकी कविताएँ स्वयं आप को शक्तिमान बनायेंगी, आप कविता सुनाना शुरू तो करें।" इस पर कवि महोदय में और भी शक्ति का संचार हो गया और उन्होंने कहा, "अच्छा, जरा टेबल से उठाकर मेरी डायरी दो।"

कवि महोदय ने कविताएँ सुनाना चालू कर दिया। ज्यों ज्यों कविताएँ सुनाते जाते थे त्यों त्यों जोश बढ़ते जाता था। उनकी आवाज बाहर लोगों को भी सुनाई देने लगी मगर कविपुत्र के आने तक वे लोग भीतर नहीं जा सकते थे। खैर, एक घंटा व्यतीत हो गया और कवि के पुत्र आ पहुँचे। अपने पिता की आवाज सुनकर आश्चर्य से उसने कहा, "तुम लोगों ने तो सूचना दी थी कि मेरे पिता अपनी अन्तिम अवस्था में हैं पर उनकी तो कविता सुनाने की आवाज सुनाई दे रही है।" लोगों ने उसे बताया कि एक मनोवैज्ञानिक ने उन्हें बचाकर रखा हुआ है, जल्दी से चल कर अपने पिता के अन्तिम दर्शन कर लो।

कमरे का दरवाजा खोला गया। दरवाजा खुलने पर लोगों ने देखाः

कवि महोदय अपने शैय्या के ऊपर रौद्ररूप लेकर खड़े हुए बुलंद आवाज में वीर रस की कविताएँ पढ़े जा रहे हैं और नीचे जमीन पर मनोवैज्ञानिक की लाश पड़ी हुई है।

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खोपड़ी खपाएँ
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Tuesday, September 8, 2009

कुत्ते से क्या बदला लेना कुत्ते ने गर काटा


विचित्र प्राणी होता है कुत्ता। ऊपर वाले ने विशेष तौर पर रचा है इसे, इंसान याने कि मनुष्य के सहायक के रूप में। कुत्ते वहीं पाये जाते हैं जहाँ इंसान रहते हैं। जंगली कुत्ते नहीं पाये जाते क्योंकि कुत्ता इंसान के बिना रह ही नहीं सकता।

कुत्ता एक वफादार प्राणी होता है। एक बार टुकड़ा डाल दो और यह आपका वफादार बन जाता है। बाद में कभी टुकड़ा नहीं भी डालोगे तो भी यह जीवनपर्यन्त आपका वफादार बना रहता है। वैसे तो टुकड़ा पाकर वफादार बनने की प्रवृति इंसान में भी पाई जाती है पर जब तक टुकड़ा डालते रहो तभी तक इंसान वफादार रहता है। टुकड़ा डालना बंद और इंसान का गुर्राना शुरू।

इंसान अपने इस सहायक का भरपूर फायदा उठाता है। प्रायः इन्सान सत्ता प्राप्त करने के लिए कुत्तों की पूरी पूरी सहायता लेता है और यदा-कदा सत्ता को बनाए रखने के लिए खुद ही कुत्ता बन जाता है। कभी कभी मन में सवाल उठने लगता है कि क्या सत्ता और कुत्ता एक दूसरे के पूरक हैं? खैर हों तो क्या और न हों तो क्या! हमें क्या लेना देना है। हमें तो सत्ता मिलने से रही।

अक्सर लोग भ्रष्ट नेता और अफसरों को कुत्ता कह देते हैं। पर जरा सोचिये कि ऐसे लोगों को किसने अधिकार दे दिया इस तरह से कुत्तों का अपमान करने का? कभी किसी कुत्ते ने इन पर मानहानि का दावा कर दिया तो लेने के देने पड़ जायेंगे।

वैसे तो कुत्ता इंसान को काटता नहीं, वह अच्छी तरह से समझता है कि जब भौंकने से ही काम चल जाता है तो फिर काटा क्यों जाए। पर परिस्थितिवश यदि कभी कुत्ता इंसान को काट दे तो इंसान उसे उलटे काट कर बदला भी नहीं ले सकता। इसीलिए एक फिल्मी गीत में कहा गया है "कुत्ते से क्या बदला लेना कुत्ते ने गर काटा, कुत्ते को गर तुमने काटा क्या थूका क्या चाटा"

कुत्तों में इंसान नहीं पाये जाते पर इंसानों में कुत्ते अवश्य पाये जाते हैं। अब इस बात का और अधिक खुलासा क्या करना कि कहाँ और कैसे पाये जाते हैं। हमरे सुधी पाठक स्वयं समझदार हैं।

कुत्ता योनि एक महान योनि है। इसकी महानता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि जब धर्म को अपना रूप बदलने की नौबत आई थी तो उन्होंने कुत्ते के रूप को ही सर्वथा उचित समझा था। जब से धर्म ने कुत्ते का रूप धारण किया था तब से आज तक कुछ कुत्ते स्वयं धर्म नहीं तो कम से कम धर्म का मर्मज्ञ तो अवश्य ही समझते हैं। एक बार हमने कुत्तों के धर्मगुरु को टुकड़ा डाल दिया था। बस वह हमारा वफादार बन गया और कुत्तों ने जो बातें आज तक किसी को नहीं बताई थीं उन्हें भी हमें बता दिया। उसने हमें बताया कि कुत्तों में भी कुत्ताचार्य होते हैं जो अलग अलग सूत्रों की व्याख्या अपने अपने हिसाब से करते हैं। कुत्तों के धर्मग्रंथ श्वानस्मृतिरान में एक सूत्र है - "स्वा-भौं मी-भौं सर्व-भौं स्य-भौं" कुत्ताचार्य लोग इस सूत्र का अपने अपने हिसाब से अर्थ लगाते हैं ठीक 'हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता' की तरह। कुछ कुत्ताचार्य के अनुसार इसका अर्थ है "स्वामी ही सर्वस्य है" और कुछ के अनुसार "स्वामी ही सर्वस्य नहीं है"। खैर छोड़िये धर्म की बात को। जब कुत्तों की बात चल रही है तो उसे ही जारी रखा जाये।

वैसे तो कुत्तों के बहुत से प्रकार हैं पर मुख्य प्रकार दो ही हैं विदेशी नस्ल का कुत्ता और देसी कुत्ता। भारत में विदेशी नस्ल के कुत्तों को चाव से पाला जाता है, इंसान को दो रोटी मिले मिले पर विदेशी कुत्तों को मँहगे बिस्किट्स जरूर मिलते हैं। देसी कुत्तों को प्रायः आवारा छोड़ दिया जाता है और ये घूरों में से अपना भोजन खोज कर अपना जीवनयापन करते हैं। हम भारतीयों की यह महान परम्परा रही है कि हम विदेशी चीजों को सम्मान की दृष्टि से देखते हैं और देसी चीजों को हेय समझते हैं। चाहे कुत्ता हो या भाषा विदेशी ही श्रेष्ठ समझा जाता है।

और अन्त में सिर्फ इतना बता कर इस पोस्ट को समाप्त करते हैं किः

एक बार हमने ससुराल में अपने साले से कहा, "यार, म्युनिसिपालिटी वालों से कह कर तुम अपनी गली के इन कुत्तों को मरवा क्यों नहीं देते?" तो उसने पूछा, "वो क्यों जीजाजी?" हमने उसे बताया, "अरे भइ, जब भी मैं तुम्हारे यहाँ आता हूँ तो ये कुत्ते मुझे देखते ही भौंकने लगते हैं।" इस पर साले महोदय ने कहा, "होता है जीजाजी होता है, जब भी कोई दूसरे गली का इस गली में आता है..........।"

Monday, September 7, 2009

क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को दो लात

सबेरे की चाय पीने के बाद कम्प्यूटर चालू करके एक दो टिप्पणी की ही थी कि मित्र महोदय आ पहुँचे। कानों में इयरफोन ठुँसा हुआ था। चेहरे पर मग्नता के भाव और मुंडी हिलती हुई। शायद संगीत का आनन्द ले रहे थे।

मैंने उनके स्वागत में कहा, "आओ, आओ! बैठो।"

"क्याऽऽऽ?" वो इतने जोर से बोले जैसे मैं बहरा हूँ।

मैंने भी जोर से चिल्ला कर कहा, "अरे बैठो भाई।"

कुर्सी पर बैठकर मुंडी डुलाते वे हुए मुझसे भी ज्यादा जोर से बोले, "और सुनाओ क्या हाल है?"

उनकी आवाज से मेरे कान झन्ना गए। आपने भी अवश्य ही कई बार अनुभव किया होगा कि यदि किसी के कानों में इयरफोन ठुँसा हो तो वह सामने वाले से कैसे ऊँची आवाज में बात करता है।

मैंने उनके कानों से इयरफोन खींच कर निकाल दिया और कहा, "इतने जोर से चिल्लाकर क्यों बोल रहे हो? क्या मैं बहरा हूँ?"

"मैं कहाँ चिल्ला रहा हूँ?"

"अरे चिल्ला रहे थे यार तुम। इयरफोन लगा कर खुद तो बहरे बन गए थे पर समझने के लिये मुझे बहरा समझ रहे थे।"

"हे हे हे हे, चलो मैं बहरा बन गया था तो तुम तो अन्धे नहीं थे ना?"

"अबे क्या बोल रहा है? मैं भला क्यों अन्धा होने लगा?"

"भइ बहरे के साथ अन्धे का होना जरूरी है इसीलिए तो कहावत बनी है 'अंधरा पादे बहरा जोहारे', है कि नहीं?"

मैं कुछ कहता उससे पहले ही वो फिर बोल उठे, "अच्छा एक बात बता यार, कहावत के अनुसार बहरे के साथ अंधा होना चाहिए और वो दोस्ती वाली कहानी के अनुसार अन्धे के साथ लंगड़ा होना चाहिये। ये आखिर बहरे के साथ बहरा, अन्धे के साथ अन्धा या लंगड़े के साथ लंगड़ा क्यों नहीं होता?"

अब आप ही बताइये कि मैं इस प्रश्न का उन्हें क्या जवाब दूँ? मैंने भी कह दिया, "इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि ऐसा होने पर न तो कोई कहावत बन सकती है और न ही कोई कहानी।"

वो बोले, "यार, कह तो रहे हो सही, मगर गलत है।"

"अबे जब सही कह रहा हूँ तो गलत कैसे होगा?"

"ये सब बड़े लोगों की बाते हैं, तू नहीं समझेगा। खैर, ये बता कि बच्चों का क्या हाल है?"

"ठीक ही होंगे।" मैंने जवाब दिया।

"होंगे? होंगे से क्या मतलब? क्या तेरी उनसे मुलाकात नहीं होती?"

"होती है भइ, हर दो-तीन दिन में आते हैं हमारे पास। जब भी उन्हें कभी मोबाइल रिचार्ज और टॉपअप कराने, गाड़ी में पेट्रोल डलाने और उसकी सर्व्हिसिंग कराने, दोस्तों को पार्टी देने जैसे कामों के लिए रुपयों की जरूरत पड़ती है तो याद आ जाती है हमारी। चल छोड़, ये छोटे लोगों की बाते हैं, इसे तू नहीं समझेगा।"

"अच्छा भाभी जी कैसी हैं?"

"वो भी अच्छी हैं, भाई क्यों अच्छी नहीं होंगी? आज से तीस-पैतीस साल पहले जैसी अच्छी हुआ करती थीं उतनी अच्छी तो अब नहीं हैं पर फिर भी अच्छी ही हैं।" मैंने कहा।

अचानक मुझे कुछ याद आया और वो कुछ और बोलें उसके पहले ही मैंने कहा, "सुना है कि मेरे बारे में तू लोगों से कहता फिरता है कि 'लिखता क्या है, अपने आपको ब्लोगर शो करता है'।"

"तो क्या गलत कहता हूँ मैं? तू खुद ही बता तू कोई ब्लोगर है? सींग कटा के बछड़ों में शामिल हो जाने से भला क्या कोई ब्लोगर हो जाता है? क्या ये सच नहीं है कि तू अपने लिखे कूड़े को जबरन नेट में डाल रहा है! अबे सच का सामना कर! बोल हाँ।"

थोड़ी शर्मिंदगी के साथ मैं बोला, "यार बहुत कोशिश करता हूँ कि कुछ अच्छा लिख पाऊँ, अब अच्छा लिख ही नहीं पाता तो मैं क्या करूँ?"

"चल बेटा मैं तुझे बताता हूँ कि तू अच्छा क्यों नहीं लिख सकता। तू भी क्या याद करेगा! तू अच्छा इसलिए नहीं लिख पाता क्योंकि तू अतीत में जीता है, पुरानी बातों को अच्छा बताने की कोशिश में पुरानी घिसी-पिटी बातें ही लिखता है। तुझे पता नहीं है कि पुरानी बातों को कोई भी पसंद नहीं करता। लिखना है तो कुछ नई लिख जैसे कि मैं लिखता हूँ।"

"अच्छा बता तूने ऐसा क्या लिखा है जिसमें नयापन है?"

"मैंने लिखा है 'क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को दो लात', बोल है ना नई चीज?"

"क्या नया है इसमें? तू तो पुराना दोहा बता रहा है और वो भी गलत। सही है - 'क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात'।"

अब वे हत्थे से उखड़ गए और बोले, "बस यहीं पर तो मात खाता है तू। समझ तो सकता नहीं और शो करता है कि बहुत अकलमंद है। अगर मैंने चार चरण का दोहा लिखा होता तो वो पुरानी चीज होती पर मैंने तो दो चरण का दोहा लिखा है जो कि बिल्कुल नई चीज है।"

"पर तेरी इस नई चीज का मतलब क्या हुआ?"

"इसका मतलब है कि यदि पॉवरफुल याने कि बड़ा आदमी गलती करे तो उसे क्षमा कर देना चाहिए और छोटा आदमी गलती करे तो उसे दो लात मारना चाहिए। समझे? आज जो हो रहा है वह लिख, आज यही हो रहा है। अडवानी और जसवन्त के मामले में क्या हुआ बोल?"

हमें इतना ज्ञान देकर वे चले गये और हम अपना पोस्ट लिखने बैठ गये।