Saturday, October 24, 2009

लगती थीं जो उर्वशी-मेनका ... बन गईं वो ही रणचण्डिका ...

शादी की थी हमने क्योंकि
लगती थी वो उर्वशी-मेनका,
पर पाया कुछ काल बाद ही
बन गईं वो ही रणचण्डिका।

फूलों से कोमल लगती थी
वो सुशील, सलज्ज, किशोरी,
क्यों बन गई कठोर वज्र सी
मेरे सपनों की वो गोरी।

सोचा था घर को सुखमय करने
गीता और रामायण पढ़ेगी,
पता नहीं था घर में मेरे
वो बाला महाभारत करेगी।

पर उसके हर काम के पीछे
मैं ही केन्द्रित रहता हूँ,
इसीलिए तो भक्त हूँ उसका
नखरे उसके सहता हूँ।

उससे ही तो घर है मेरा
उससे ही है घर की लाली,
मैं ही तो सब कुछ हूँ उसका
वो है मेरी घरवाली।

चलते-चलते

वो स्साला जी.के. अवधिया दारू पीना नहीं छोड़ रहा है

भाई जहाँ पत्नी साथ निभाती है वहीं मित्र भी साथ निभाता है। हमारा भी एक मित्र हमारा साथ आज तक निभा रहा है। आज वो भिलाई में हैं और हम रायपुर में। पर कभी हम दोनों एक साथ भिलाई में रहते थे। रोज एक साथ बार जाते थे और मौज मनाते थे। फिर हमारा ट्रांसफर हो गया और हमको भिलाई छोड़ना पड़ा और वो आज तक भिलाई में हैं।

हमारे भिलाई छोड़ देने के बाद भी दोस्ती निभाने के लिए वो रोज बार जाते रहे। बार वाले जानते थे कि वे दो पैग एक साथ मंगाते थे एक अपने लिए और एक मेरे लिए। फिर एक बार अपने पैग से तो दूसरी बार मेरे पैग से घूँट लगाते थे।

कुछ साल पहले एक दिन वेटर ने मामूल के अनुसार जब उनके लिए दो पैग लगाया तो उन्होंने कहा, "एक पैग वापस ले जाओ।"

आश्चर्य से वेटर ने पूछा, "क्यों साहब?"

मित्र ने बताया, "यार मैंने आज से दारू पीना छोड़ दिया है पर मेरे बार बार कहने के बाद भी वो स्साला जी.के. अवधिया दारू पीना नहीं छोड़ रहा है।"

और दोस्ती निभाने के लिए आज भी वो बार जाकर हमारा पैग पीते हैं।

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"संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण का अगला पोस्टः

राम का वनवास - अयोध्याकाण्ड (5)

Friday, October 23, 2009

थोड़ी सी कमाई तो आप नेट में सर्च करके भी कर सकते हैं

यह कमाई नाममात्र की है, बिल्कुल थोड़ी सी, याने कि साल छः महीने में मात्र £20 की। अब कमाई तो कमाई ही होती है, भले ही नाममात्र की हो! तो मैं आपको यह बता रहा था कि थोड़ी सी कमाई तो आप नेट में सर्च करके भी कर सकते हैं। नेट में सर्च तो हम लोग प्रायः हम लोग रोज ही किया करते हैं पर यदि सर्च करने के साथ ही साथ कुछ कमाई भी हो जाए तो फिर बात ही क्या है!

यू.के. की होमपेजेस फ्रेंड्स कंपनी सर्च करने के लिए भी सर्च करने वाले को भुगतान करती है। यह कंपनी सर्च करने के लिए याहू सर्च इंजिन का प्रयोग करती है। इस कंपनी का सदस्य बन कर आप भी साल में £20 से £50 तक की कमाई कर सकते हैं। सदस्य बनने के लिए इस लिंक या नीचे के बैनर को क्लिक करें।




भुगतान £20 कमाई होने पर ही किया जाता है और राशि सीधे आपके बैंक खाते में या पेपल खाते में जमा होती है।

निम्न देशों में यह सेवा उपलब्ध नहीं हैः

United Kingdom, France, Germany, Italy, Spain, Australia, Thailand, Singapore, Indonesia, Philippines, Vietnam, Malaysia

ध्यान रखें

इस पोस्ट के सारे लिंक मेरे रेफरल लिंक्स हैं याने कि आपके सदस्य बनने पर आपकी कमाई के साथ मेरी भी कुछ कमाई हो जायेगी।

अब तक मेरी कमाई £20 नहीं पहुँचने के कारण मुझे अब तक कुछ भी भुगतान नहीं हुआ है।

यद्यपि मेरी जानकारी के अनुसार यह रेपुटेड कंपनी है और याहू जैसे विख्यात पोर्टल से जुड़ी है, फिर भी स्मरण रखना आवश्यक है कि कहा नहीं जा सकता कि नेट में कौन कब दगा दे जायेगा।

कल के खोपड़ी खपाऊ प्रश्न का उत्तरः

कल का प्रश्न थाः

आप अकेले किसी रास्ते से एक अनजान मंजिल तक जा रहे हैं। आपको बताया जाता है कि आगे जा कर यह रास्ता दो भागों मे बँट जायेगा जिसमें से एक तो आपको अपनी मंजिल तक पहुँचा सकता है और दूसरा मौत के मुँह में। याने कि एक सही रास्ता है और एक गलत। आपको यह भी बताया जाता है कि जहाँ पर रास्ता दो भागों में विभक्त होता है वहाँ पर दो आदमी दिखाई देंगे जिनमें से एक हमेशा सच बोलता है और दूसरा झूठ। सही रास्ता जानने के लिए आप उन दोनों में से किसी एक से सिर्फ एक प्रश्न पूछ सकते हैं (ध्यान रखें कि आप जिससे प्रश्न करेंगे उसके विषय में नहीं जानते कि वह सच बोलने वाला है या झूठ)।

तो क्या प्रश्न करेंगे आप?

जनाब कैरानवी जी ने कल मेरे पोस्ट प्रकाशित होने के कुछ देर बाद ही मुझे सही उत्तर मेल कर के सही उत्तर भेज दिया था जो इस प्रकार हैः

चलते चलते का जवाब इधर दे रहा हूं, कि उधर देता तो पोस्ट आपका मजा खराब होजाता, शायद

वह सवाल यूं था कि दो दरवाजों पर दो पहरेदार खडे हैं एक सच्‍चा एक झूठा आपको नहीं पता कि उनमें कौनसा सच्‍चा कौन कौन सा झूठा है,
उनसे आपको एक सवाल करना है जिससे सी दरवाजे का आपको पता लग जाये,
सवाल एक पहरेदार से किजियेः ''पहरेदार भाई यह बताओ अगर में दूसरे पहरेदार से पूछूं कि मुझे किस दरवाजे से जाना है तो वह क्‍या कहेगा''
उसका जो भी जवाब हो उससे उलटे यानी दूसरे दरवाजे में आप जा सकते हैं,
क्‍यूंकि अगर वह झूठा है तो वह जानता है कि दूसरा सच्‍चा है वह सच दरवाजा बता देगा, इस लिये वह गलत दरवाजा बतायेगा
क्‍यंकि अगर वह सच्‍चा है तो वह जानता है दूसरा झूठा है इस लिये वह गलत दरवाज बतायेगा तो यह गलत दरवाजा ही बतायेगा

इन सब से यह अर्थ निकलता है कि जो आप उपरोक्‍त से सवाल करेंगे जिस दरवाजे में जाने को कहा जाये उसमें ना जाकर दूसरे दरवाजे में जाया जाये,

बाद में आशीष श्रीवास्तव जी ने भी सही जवाब दियाः

हम पुछेँगे कि यदि मै दूसरे व्यक्ति से पुछूँ की मौत का रास्ता कौनसा है तो वह कौनसा रास्ता बतायेगा? जो भी रास्ता बताया जायेगा उसके उल्टे रास्ते पर चल देँगे!
सच बोलने वाला जो रास्ता बातायेगा वह गलत होगा क्योँकि वह सच बोल रहा है| सत्यवादी असत्यवादी का उतर वैसे ही बतायेगा जो गलत होगा|
झूठ बोलने वाला जो रास्ता बतायेगा वह गलत होगा क्योँकि वह झूठ बोल रहा है| असत्यवादी सत्यवादी के उत्तर को उल्टा कर के बतायेगा जो गलत ही होगा|

जी हाँ, दोनों व्यक्तियों में से किसी भी एक से आपका प्रश्न यही होगा कि 'दूसरे व्यक्ति से सही रास्ता पूछने पर वह किस रास्ते को बताएगा?'

आपके प्रश्न के उत्तर में बताया जाने वाला रास्ता गलत रास्ता ही होगा। आप उस रास्ते को छोड़ कर दूसरे रास्ते में जा सकते हैं।

व्यख्याः

यदि आपने सच बोलने वाले व्यक्ति से प्रश्न किया है तो वह जानता है कि दूसरा व्यक्ति झूठ बोलता है और गलत रास्ते को ही बतायेगा, इसलिए वह भी आपको गलत रास्ते को ही बतायेगा।

और यदि आपने झूठ बोलने वाले व्यक्ति से प्रश्न किया है तो वह जानता है कि दूसरा व्यक्ति सच बोलता है और सही रास्ता बतायेगा किन्तु अपने झूठ बोलने की आदत के कारण उसके बताये जाने वाले रास्ते को न बता कर दूसरे याने कि गलत रास्ते को बतायेगा।

चलते-चलते


नई शादी के बाद और शादी के एक वर्ष बाद ... पति पत्नी संवाद ...

नई शादी के बादः

पतिः देर किस बात की है।

पत्नीः क्या तुम चाहते हो मैं चली जाऊँ?

पतिः नहीं, ऐसा तो मैं सोच भी नहीं सकता।

पत्नीः क्या तुम मुझे प्यार करते हो?

पतिः अवश्य! एक नहीं अनेकों बार!!

पत्नीः क्या तुमने मुझे कभी धोखा दिया है?

पतिः कभी नहीं! ये तो तुम अच्छी तरह से जानती हो, फिर क्यों पूछ रही हो?

पत्नीः अब क्या तुम मेरा मुख चूमोगे?

पतिः इसके लिये तो मैं तो कोई भी अवसर नहीं छोड़ने वाला।

पत्नीः क्या तुम मुझे मारोगे?

पतिः मुझे क्या पागल कुत्ते ने काटा है जो मैं ऐसा करूँगा?

पत्नीः क्या तुम मुझ पर विश्वास करते हो?

पतिः हाँ!

पत्नीः ओ डार्लिंग!!!

शादी के एक वर्ष के बाद के लिये कृपया नीचे से ऊपर पढ़ें।

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"संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" का अगला पोस्टः

कैकेयी कोपभवन में - अयोध्याकाण्ड (3)

Thursday, October 22, 2009

आप एक साथ दो दो कृष्ण कैसे हैं?...ये पूछा गया था मेरे इंटरव्ह्यू में ...

आप एक साथ दो दो कृष्ण कैसे हैं?

जी हाँ, यही प्रश्न किया गया था मुझसे मेरे इंटरव्ह्यू में। मैंने क्या उत्तर दिया था यह भी बताता हूँ पर मेरा ये साक्षात्कार थोड़ा सा रोचक था इसलिए सिलसिलेवार बताने में मजा आयेगा। बात सन् 1972 की है। मैं उस समय एम।एससी. (फिजिक्स) फायनल ईयर में था। एक मित्र के कहने से भारतीय स्टेट बैंक का रिटन टेस्ट दे दिया था और उसमें पास भी हो गया था।

अब साक्षात्कार देने लिए पहुँचा था मैं। मेरे ही साथ अध्ययनरत एक सहपाठी भी आया था उस साक्षात्कार में। उसे साक्षात्कार के लिए मुझसे पहले बुलाया गया।

उसके साक्षात्कार कक्ष से बाहर निकलने पर मैंने उससे पूछा, "यार दिलीप, क्या पूछा तेरे से वहाँ पर?"

उसने कहा, "नाम वाम पूछने के बाद पूछा कि अभी क्या करते हो और मेरे यह बताने पर कि फिजिक्स के एम.एससी. फायनल ईयर में पढ़ रहा हूँ उन्होंने झट से पूछ लिया 'बताओ इस्केप व्हेलासिटी क्या होता है?' भाई इस्केप व्हेलासिटी तो नवीं-दसवीं कक्षा में पढ़े थे इसलिए याद कहाँ से आता पर जैसे तैसे याद आ ही गया।"

साहब, पहली बार इंटरव्ह्यू देने के नाम से एक तो मैं पहले से ही नर्वस सा था और अब जब पता चला कि प्रश्न पूछने वाला फिजिक्स भी जानता है तो नवीं दसवीं में पढ़े बेसिक बातों को याद करने लगा जैसे कि 'आर्किमीडीज का सिद्धान्त क्या है', उसने "यूरेका यूरेका" क्यों कहा था आदि आदि इत्यादि।

खैर, मेरा भी नंबर आ गया और दरवाजे पर पहुँच कर मैंने 'मे आई कमिन सर' कह कर अन्दर आने की इजाजत मांगी। प्रेमपूर्ण जवाब मिला, "आइये, आइये, बैठिये।"

मेरे बैठ जाने पर पूछा गया, "क्या नाम है आपका?"

"जी, गोपाल कृष्ण अवधिया।"

"अरे भाई गोपाल तो कृष्ण ही होता है और कृष्ण तो खैर कृष्ण हैं हीं। तो आप एक साथ दो दो कृष्ण कैसे हैं?"

बिना एक सेकंड सोचे भी मैंने उत्तर दिया, "सर मैं दो कृष्ण नहीं, एक ही कृष्ण हूँ। मेरे नाम में कृष्ण संज्ञा है और गोपाल उस संज्ञा की विशेषता बताने वाला विशेषण याने कि गौओं का पालन करने वाला कृष्ण।"

मेरा उत्तर शायद उन्हे बहुत पसंद आया और फिर मुझसे कोई भी प्रश्न नहीं पूछा गया।

बाद में मुझे वह नौकरी मिल गई थी याने कि मेरा पहला इंटरव्हियु आखरी इंटरव्हियु भी बन गया।

आज ये बात वैसे ही याद आ गई तो शेयर कर दिया आप लोगों के साथ।

चलते-चलते

एक खोपड़ी खपाऊ प्रश्नः

आप अकेले किसी रास्ते से एक अनजान मंजिल तक जा रहे हैं। आपको बताया जाता है कि आगे जा कर यह रास्ता दो भागों मे बँट जायेगा जिसमें से एक तो आपको अपनी मंजिल तक पहुँचा सकता है और दूसरा मौत के मुँह में। याने कि एक सही रास्ता है और एक गलत। आपको यह भी बताया जाता है कि जहाँ पर रास्ता दो भागों में विभक्त होता है वहाँ पर दो आदमी दिखाई देंगे जिनमें से एक हमेशा सच बोलता है और दूसरा झूठ। सही रास्ता जानने के लिए आप उन दोनों में से किसी एक से सिर्फ एक प्रश्न पूछ सकते हैं (ध्यान रखें कि आप जिससे प्रश्न करेंगे उसके विषय में नहीं जानते कि वह सच बोलने वाला है या झूठ)।

तो क्या प्रश्न करेंगे आप?

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"संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" का अगला पोस्टः

राम के राजतिलक की घोषणा - अयोध्याकाण्ड (1)

Wednesday, October 21, 2009

अब जरूरत है सर्च इंजिन्स से पाठक लाने की

हिन्दी ब्लोगिंग में दिनोंदिन निखार आते जा रहा है, ब्लोग पोस्ट्स की गुणवत्ता भी दिन-ब-दिन बढ़ते जा रही है। किन्तु अधिकतर पाठक और टिप्पणीकर्ता अभी भी हम ब्लोगर्स ही हैं। ब्लोग्स में लोग कहाँ से आ रहे हैं यह जानने के लिए मैं स्टेट काउंटर का प्रयोग करता हूँ (स्नैपशॉट देखें)

पेज 1
पेज 2
विश्लेषण करने पर मुझे तो यही पता चलता है कि अधिकतर लोग एग्रीगेटर्स से ही आते हैं। इस बात में तो दो मत नहीं हो सकता कि एग्रीगेटर्स फिलहाल हम ब्लोगर्स के बीच में ही लोकप्रिय है, नेट में आने वाले सामान्य लोगों में से अधिकतर लोगों को अभी भी एग्रीगेटर्स के बारे में जानकारी नहीं है। इसका मतलब यही हुआ कि मेरे ब्लोग में अधिकतर अन्य ब्लोगर्स ही आते हैं।

वैसे दूसरा पेज बताता है कि आठ-दस लोग गूगल सर्च, गूगल इमेजेस से भी मेरे ब्लोग में आये हुए हैं और यही वो लोग हैं जो कि कुछ खोजते खोजते मेरे ब्लोग में आए। यह बहुत अच्छी बात है कि हम ब्लोगर्स एक दूसरे के पोस्ट को पढ़ें किन्तु बाहरी पाठकों का हिन्दी ब्लोग्स में आना बहुत जरूरी है नहीं तो फिर वही मिसल हो जायेगी कि "जंगल में मोर नाचा किसने देखा"।

तो अब अब जरूरत है सर्च इंजिन्स से पाठक लाने की। मैं समझता हूँ कि सभी ब्लोगर बन्धु इस बात पर ध्यान देंगे और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए भगीरथ प्रयास में जुट जायेंगे।

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"संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" का नया पोस्ट

परशुराम जी का आगमन - बालकाण्ड (23)

Tuesday, October 20, 2009

क्या आपका फायरफॉक्स ब्राउसर बहुत धीमा है? ... गति ऐसे तेज कर सकते हैं ...

यदि आपका फायरफॉक्स ब्राउसर बहुत धीमी गति से ब्राउसिंग करता है तो उसकी गति निम्न तरीके से बढ़ा सकते हैं

फायरफॉक्स ब्राउसर को खोलें।

एड्रेस बार में about:config टाइप करके एंटर बटन दबा दें।

सामान्यतः आपका ब्राउसर एक बार में एक ही वेबपेज को रिक्वेस्ट करता है किन्तु पाइपलाइनिंग को सक्षम कर देने से यह एक ही समय में एक से अधिक वेबपेजेस को एक साथ रिक्वेस्ट करने लगता है और आपके ब्राउसिंग की गति तेज हो जाती है।

तो पाइपलाइनिंग को सक्षम करने के लिएः

स्क्रोल डाउन करके "network.http.pipelining" तक जाएँ (सूची अल्फाबेट के अनुसार है इसलिए खोजने में अधिक समय नहीं लगेगा)। इस पर डबल क्लिक करके इसके मान अर्थात् व्हेल्यु को "true" कर दें।

इसके बाद और स्क्रोल डाउन करके "network.http.proxy.pipelining" तक जाएँ इसके मान को भी "true" कर दें।

अब थोड़ा ऊपर स्क्रोल करके "network.http.pipelining.maxrequests" में जाएँ और इसके मान को 30 कर दें। याने कि अब आपका ब्राउसर एक ही समय में अधिक से अधिक 30 वेबपेजेस को रिक्वेस्ट करने लगेगा।

और अब एक आखरी काम। खुले हए ब्राउसर में किसी भी खाली जगह पर राइट क्लिक करें और नया (New) -> पूर्णांक (Integer) को सलेक्ट करें। खुलने वाले नाम के बॉक्स में nglayout.initialpaint.delay टाइप करें। एंटर बटन दबाएँ और नये खुलने वाले बॉक्स में मान "0" टाइप कर दें।

उम्मीद है कि ऐसा करने के बाद आपके फायरफॉक्स ब्राउसर की गति अवश्य ही बढ़ जायेगी।

अन्त में यह बताना मैं उचित समझता हूँ कि मैं नेट ब्राउसिंग का न तो कोई विशेषज्ञ हूँ न ही कोई बहुत बड़ा जानकार। हाँ यदि कुछ काम की बात मुझे मिल जाती है और उससे मुझे कुछ फायदा हो जाता है तो आप सभी के साथ शेयर कर दिया करता हूँ।


चलते-चलते

हमारे देश भारतवर्ष ने एक रॉकेट बनाया जो कि एक व्यक्ति को मंगल ग्रह तक ले जाये और वहाँ चित्र भेजने के बाद व्यक्ति को वापस पृथ्वी में ले आये। रॉकेट बन जाने के बाद अन्तिम जाँच में पता चला कि त्रुटि हो गई है और यह रॉकेट चित्र आदि भेजने के बाद वापस आते समय नष्ट हो जायेगा। याने कि उसमें सवार व्यक्ति मंगल ग्रह तक जा तो पायेगा पर वापस नहीं आ पायेगा।

रॉकेट को भेजना जरूरी था इसलिए ऐसे लोगों को बुलाया गया जो नियत राशि लेकर रॉकेट में जाने के इच्छुक हों। तीन लोग आए एक सरदार जी, एक बनिया और एक सिन्धी भाई।

सरदार जी ने कहा वे दस खरब रुपये ले कर रॉकेट में जाने के लिए तैयार हैं। जब साक्षात्कार मण्डली ने उनसे पूछा कि वे दस खरब रुपयों का क्या करेंगे तो उन्होंने जवाब दिया कि भाई मैं तो रहूँगा नहीं पर इन रुपयों से मेरे आने वाली पीढ़ियों की सुख सुविधा का सामान तो हो जायेगा।

बनिया ने बीस खरब रुपयों की मांग की। उन्होंने भी पूछने पर बताया कि दस खरब रुपयों से दान धर्म का कार्य, जैसे कि अनाथालय, धर्मशाला, पाठशाला, मन्दिर आदि का निर्माण, कर के वे अपना परलोक सुधारेंगे और बाकी दस खरब रुपये अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए छोड़ जायेंगे।

सिन्धी भाई ने तीस खरब रुपयों की मांग की। जब उनसे पूछा गया कि वे तीस खरब का क्या करेंगे तो उन्होंने कहा कि दस खरब रुपया तो वे सेलेक्शन कमेटी को दे देंगे ताकि उनका ही टेंडर पास हो और दस खरब रुपये सरदार जी को देकर उन्हें रॉकेट में भेज देंगे बाकी दस खरब रुपये उनका मुनाफा रहेगा।

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शादी ब्याह में वर और कन्या पक्ष की वंशावली बताने का रिवाज होता है। श्री रामचन्द्र जी के विवाह में भी गुरु वशिष्ठ जी ने राम की वंशावली का वर्णन किया था। आप भी जानना चाहेंगे श्री राम की वंशावली के विषय में। तो इसके लिए पढ़िए ना

"संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" का आज का पोस्ट:

विवाह पूर्व की औपचारिकताएँ - बालकाण्ड (21)

इक्ष्वाकु वंश के गुरु वशिष्ठ जी ने श्री राम की वंशावली का वर्णन किया जो इस प्रकार हैः


"आदि रूप ब्रह्मा जी से मरीचि का जन्म हुआ। मरीचि के पुत्र कश्यप हुये। कश्यप के विवस्वान और विवस्वान के वैवस्वतमनु हुये। वैवस्वतमनु के पुत्र इक्ष्वाकु हुये। इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुल की स्थापना की। इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुये। कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था। विकुक्षि के पुत्र बाण और बाण के पुत्र अनरण्य हुये। अनरण्य से पृथु और पृथु और पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ ...

Monday, October 19, 2009

बेवकूफों के लिये यहाँ कोई जगह नहीं है

एक आदमी मर गया। यमदूत लेने के लिये नहीं आये। उसकी आत्मा बेचारी भटक रही थी। भटकते भटकते आत्मा एक ऐसे स्थान पर पहुँची जहाँ पर दो बड़े बड़े दरवाजे थे। एक पर लिखा था स्वर्ग और दूसरे पर नर्क। उसने स्वर्ग वाला दरवाजा खटखटाया।

द्वारपाल ने दरवाजा खोल कर पूछा, "क्या चाहते हो?"

आत्मा ने कहा, "भीतर आना है।"

द्वारपाल ने फिर पूछा, "शादी की थी तुमने?"

"हाँ की थी।"

"तो भीतर आ जाओ भाई, नर्क तो तुम पहले ही भोग चुके हो।"

कहकर द्वारपाल ने उसे भीतर जाने दिया। पीछे एक और आत्मा खड़ी थी और पूरी वार्तालाप सुन रही थी।

पहली आत्मा के भीतर जाने पर दूसरी आत्मा ने द्वारपाल से कहा, "मैंने दो शादी की थी।"

"बाजू के दरवाजे में जाओ, बेवकूफों के लिये यहाँ कोई जगह नहीं है।" कहकर द्वारपाल ने दरवाजा बंद कर दिया।

मेरा मस्तिष्क और हृदय मेरा मन्दिर है ...

"न ही मन्दिरों की कोई आवश्यकता है और न ही क्लिष्ट दर्शन की। मेरा मस्तिष्क और हृदय मेरा मन्दिर है और दया मेरा दर्शन है।"

दलाई लामा

Sunday, October 18, 2009

बड़ों को अपना चरणस्पर्श कराने का कोई शौक नहीं होता

बड़ों के चरणस्पर्श की प्रथा तो दिनोंदिन लुप्तप्राय होती जा रही है फिर भी दिवाली, दशहरा आदि त्यौहारों में परिवार के छोटे सदस्यों द्वारा अपने बड़ों के चरणस्पर्श की परिपाटी अभी भी मरी नहीं है। किन्तु ऐसा लगता है कि कुछ समय के बाद यह परिपाटी भी खत्म हो जायेगी। कल ही की बात है कि हमारे परिवार में लक्ष्मीपूजन हुआ। अब परिवार में सबसे बड़े हम ही हैं इसलिए हर साल लक्ष्मीपूजा होते ही परिवार के सभी सदस्य हमारा चरणस्पर्श करते हैं। कल भी सभी ने ऐसा ही किया किन्तु हमारे लघुभ्राता, जो कि हमसे मात्र पाँच साल छोटे हैं, सिर्फ देखते रहे, वे हमारे पास नहीं आए। थोड़ा सा अटपटा हमें भी लगा किन्तु यह सोच कर कि अभी चारेक दिन पहले उसकी हमारी छोटी सी झड़प हो गई थी उसका रंज रह गया होगा उसे, हमने कुछ भी नहीं कहा। बच्चे फटाके चलाने में मस्त हो गए और बड़े उनकी आतिशबाजी देखने में।

पन्द्रह बीस मिनट के बाद न जाने छोटे भाई साहब को क्या लगा कि हमारे पास आये और चरणस्पर्श कर लिया और हमने भी पूर्ण स्नेह के साथ उसे अपना आशीर्वाद दे दिया। शायद बरसों से उसके भीतर बैठे संस्कार ने उसे धिक्कारा हो या फिर उन्हें लगा हो कि बड़ों के आशीर्वाद का शायद कोई प्रभाव होता हो या न होता हो पर उससे कुछ नुकसान भी तो नहीं होता।

यहाँ पर हमारा यह अभिप्राय यह बताना नहीं है कि इस घटना से हमारे अहं को कहीं चोट पहुँचा है क्योंकि हम जानते हैं कि बड़ों को अपना चरणस्पर्श कराने का कोई शौक नहीं होता। और छोटे उनका मान करें या न करें, उनके मन में छोटों के प्रति स्नेह ही रहता है। हाँ, यह दुःख जरूर होता है कि धीरे धीरे भारतीय संस्कार खत्म होते जा रहे हैं।