Saturday, December 26, 2009

विज्ञापन दिखाकर कमाई करवाने वाली साइट्स कितनी विश्वसनीय?

इंटरनेट के प्रसार बढ़ने के साथ ही साथ विज्ञापनदाता कम्पनियों का ध्यान इंटरनेट के द्वारा विज्ञापन करने पर अधिक जाते जा रहा है। अब सवाल यह उठता है कि किसके पास इतना समय है कि नेट में विज्ञापन देखते फिरे? इसके लिये विज्ञापन एजेंसियों ने तोड़ यह निकाला कि लोगों को विज्ञापन देखने के एवज में पैसे दिये जायें। इस प्रकार से कम से कम कुछ प्रतिशत लोग नेट पर इसी बहाने विज्ञापनों को देखेंगे। इसलिये आजकल “पेड-विज्ञापन” देखो वाली साईटें आ रही हैं।

अंग्रेजी में ऐसी साइटों की भरमार है और हम ऐसी अनेक साइट्स के सदस्य भी बने किन्तु विज्ञापन देखने का भुगतान हमें आज तक नहीं मिला और हारकर हमने उधर झाँकना बंद कर दिया।

अब इसी तरह की एक भारतीय साइट भी आई है जिसका नाम है व्हियूबेस्टएड्स। जब हमें इसके विषय में पता चला तो पहले तो हम पुरानी धोखाधड़ियों को याद करके इसके सदस्य बनने के लिये हिचकिचाये किन्तु यह सोच कर कि चलो यह पहली भारतीय साइट है, इसे भी आजमा लिया जाये, हम लगभग पच्चीस दिन पहले इसके मेम्बर बन गये। हमने देखा कि इस कंपनी को होंडा, गोदरेज, फिलिप्स, बीएसएनएल आदि जैसी भारत की कई रेपुटेड कंपनियों के विज्ञापन मिल रहे हैं। इससे हमें तसल्ली मिली कि यह साइट धोखा देने वाली नहीं है। इन लगभग पच्चीस दिनों में विज्ञापन देख कर हमने लगभग पाँच सौ से कुछ अधिक रुपयों की कमाई की है और इंतजार है बारह सौ रुपये होने की ताकि हमें हमारा पहला भुगतान मिल सके।

आप भी इस साइट के मेम्बर हैं तो बहुत ही अच्छा है पर यदि आप अभी तक इस साइट का मुफ्त सदस्य नहीं बने हैं तो हम तो कहेंगे कि तड़ फड़ इस साइट का मुफ्त सदस्य बन ही जाइये! एक बार आजमाने में आखिर हर्ज ही क्या है? बस इस पोस्ट के किसी भी लिंक को क्लिक करिये पहुँच जायेंगे आप सदस्यता वाले पेज पर!

क्या है इसका फण्डा?

फ़ण्डा सीधा-सादा है, कि आपको इस वेबसाईट का सदस्य रजिस्टर होना है (बिल्कुल मुफ्त), आपको एक कन्फ़र्मेशन मेल भेजा जायेगा तथा आपका खाता खुल जायेगा (बिलकुल मुफ़्त)। यदि आपके मेलबॉक्स में कन्फर्मेशन मेल न दिखे तो स्पाम को अवश्य चेक करें। फ़िर आपको प्रतिदिन सिर्फ़ 5-6 विज्ञापन तथा 2-3 समाचार देखना है (जो कि अधिक से अधिक 5-8 मिनट का काम है), जिसके बाद आपके खाते में कुछ अंक जमा कर दिये जायेंगे, कुछ निश्चित अंकों के होने पर एक निश्चित रकम बढ़ती जायेगी, और जैसे ही आपके खाते में 1200/- रुपये की रकम एकत्रित हो जायेगी, आपसे बैंक अकाउंट नम्बर तथा पहचान पत्र (ड्रायविंग लायसेंस, पेन कार्ड आदि) लेकर “आपके नाम से” चेक बनाया जायेगा।

इस वेबसाईट द्वारा एक व्यक्ति का (घर के पते और मेल आईडी अनुसार) एक ही रजिस्ट्रेशन किया जायेगा।

जब रजिस्ट्रेशन हो जायेगा और आपका प्रोफ़ाइल पूरा अपडेट हो जायेगा तब View Ads पर क्लिक करके आपको एक-एक विज्ञापन देखना है, क्लिक करने पर एक नई विण्डो खुलेगी, जिसमें कुछ सेकण्डों का समय चलता हुआ दिखेगा, उतने सेकण्ड पश्चात जब आपके खाते में अंकों के जमा होने की सूचना झलकेगी तब वह विण्डो बन्द करके नया विज्ञापन खोल लें। ऐसा दिन में एक खाते से एक बार ही किया जा सकेगा, तथा यह कुल मिलाकर सिर्फ़ 5-7 मिनट का काम है। जब आप सारे विज्ञापन और समाचार देख लें तब फ़िर अगले दिन ही आप लॉग-इन करें। सावधानी यह रखनी है कि जब तक वह विज्ञापन पूरा खत्म न हो जाये और अंक जमा होने की सूचना न आ जाये, तब तक विज्ञापन वाली विण्डो बन्द नहीं करना है, तथा एक बार में एक ही विज्ञापन की विण्डो खोलना है, एक साथ सारे विज्ञापनों की विण्डो खोलने पर आपका अकाउंट फ़्रीज़ होने की सम्भावना है। मेरे खयाल में हम लोग नेट पर जितना समय बिताते हैं उसमें से 5-7 मिनट तो आसानी से इस काम के लिये निकाले जा सकते हैं, और जब कोई शुल्क नहीं लग रहा है तब इस पर रजिस्ट्रेशन करने में क्या बुराई है। अर्थात नुकसान तो कुछ है नहीं, “यदि” हुआ तो फ़ायदा अवश्य हो सकता है।

तो एक बार फिर बता दें कि आपको करना क्या है -

1) यहाँ अर्थात् व्हियूबेस्टएड्स पर क्लिक करके साइट पर पहुँचें।

2) ई-मेल आईडी भरकर रजिस्टर करवायें।

3) आपके मेल बाक्स में एक मेल आयेगी, उस लिंक पर क्लिक करके कन्फ़रमेशन करें। यदि आपके मेलबॉक्स में कन्फर्मेशन मेल न दिखे तो स्पाम को अवश्य चेक करें।

4) अपना सही-सही प्रोफ़ाइल पूरा भरें, ताकि यदि पैसा (चेक) मिले तो आप तक ठीक पहुँचे।

5) बस, विज्ञापन देखिये और खाते में अंक और पैसा जुड़ते देखिये (दिन में सिर्फ एक बार)

6) आप चाहें तो अपने मित्रों को अपनी लिंक फ़ारवर्ड करके उन्हें अपनी डाउनलिंक में सदस्य बनने के लिये प्रोत्साहित कर सकते हैं ताकि कुछ अंक आपके खाते में भी जुड़ें (हालांकि ऐसा कोई बन्धन नहीं है)…

यदि आपके मेलबॉक्स में कन्फर्मेशन मेल न दिखे तो स्पाम को अवश्य चेक करें।

तो सदस्य बनने के लिये क्लिक करें - व्हियूबेस्टएड्स

चलते-चलते

जब हम घर पहुँचे तो हाँफ रहे थे। श्रीमती जी ने हमें हाँफते देख कर पूछा, "क्या बात है? आप हाँफ क्यों रहे हो?"

"पाँच रुपये बचाया मैंने! आटो के पीछे दौड़ते-दौड़ते आया हूँ।" हमने बताया।

श्रीमती जी ने हमें हमारी मूर्खता बताते हुए हिकारत भरे स्वर में कहा, "अरे! बचाना ही था तो पचास रुपये बचाये होते। टैक्सी के पीछे दौड़ कर आना था।"

Friday, December 25, 2009

अपने एक ब्लोग के पोस्ट को अपने किसी दूसरे ब्लोग में ऐसे ले जा सकते हैं

कई बार हम अपने एक ब्लोग के पोस्टों को अपने किसी दूसरे ब्लोग में ले जाना चाहते हैं। यह काम कोई अधिक मुश्किल नहीं है। सिर्फ आप जिस ब्लोग के पोस्ट को दूसरे ब्लोग में ले जाना है उसे अपने कम्प्यूटर में निर्यात (एक्पोर्ट) कर दीजिये और फिर उसे अपने दूसरे ब्लोग में आयात कर लीजिये। जिन आयतित पोस्टों को प्रकाशित करना है उन्हें प्रकाशित कर दीजिये और शेष को चाहें तो डीलिट कर सकते हैं।

मेरे दो ब्लोग हैं पहला "धान के देश में" और दूसरा "भारतीय सिनेमा"। अब मान लीजिये कि मैं "भारतीय सिनेमा" के पोस्ट को "धान के देश में" में ले जाना चाहता हूँ।

इसके लिये मुझे पहले "भारतीय सिनेमा" के सेटिंग्स|मूलभूत (सेटिंग्स|बेसिक) में जाना होगा और ब्लॉग निर्यात करें को क्लिक करना होगा।

क्लिक करने पर नीचे जैसा विन्डो खुलेगाः

अब ब्लॉग डाउनलोड करें को क्लिक कर दें और .xml को अपने कम्प्यूटर में सेव्ह कर लें।

अब मेरा "भारतीय सिनेमा" ब्लोग .xml के रूप में मेरे कम्प्यूटर में आ चुका है जिसे कि मेरे "धान के देश में" ब्लोग में ले जाना है।

इसके लिये मुझे अब अपने "धान के देश में" के सेटिंग्स|मूलभूत (सेटिंग्स|बेसिक) में जाना होगा और ब्लॉग आयात करें को क्लिक करना होगा।


अब नये खुलने वाले विन्डो में अपने कम्प्यूटर से ब्राउस करके .xml को लाना है और वर्ड व्हेरिफिकेशन करके ब्लॉग आयात करें को क्लिक कर देना है। ध्यान रखें कि "सभी प्रकाशित पोस्ट को स्वतः प्रकाशित करें" वाला बक्सा खाली रखना है।

बस अब क्या है? सारे पोस्ट आयात हो गये। इनमें से जिन पोस्टों को प्रकाशित करना है उन्हें चयन करके प्रकाशित कर दीजिये और उसके बाद शेष को डीलिट कर दीजिये। आप अपने पहले ब्लोग के संदेश सम्पादित करें में जाकर दूसरे ब्लोग में गये पोस्टों को डीलिट भी कर सकते हैं।

यदि कोई शंका हो तो मुझे gkawadhiya@gmail.com में ईमेल करके या 09753350202 नंबर पर कॉल करके पूछ सकते हैं।

Thursday, December 24, 2009

मर जाने के बाद आदमी की कद्र बढ़ जाती है

कितनी ही बार देखने को मिलता है कि जब तक आदमी जीवित रहता है, उसे कोई पूछने वाला नहीं होगा किन्तु उसके मर जाने के बाद अचानक उसकी कद्र बढ़ जाती है। हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार एवं उपन्यासकार प्रेमचन्द जी जीवन भर गरीबी झेलते रहे किन्तु उनकी मृत्यु के बाद उनकी रचनाओं ने उनकी सन्तान को धनकुबेर बना दिया क्योंकि प्रेमचन्द जी की रचनाओं के प्रकाशन का एकाधिकार केवल उनकी प्रकाशन संस्का "हंस प्रकाशन" के पास ही था। उल्लेखनीय है कि सन् 1930 में प्रेमचंद जी ने हंस प्रकाशन आरम्भ करके "हंस" पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया था जिसकी आर्थिक व्यवस्था के लिये उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ता था। किन्तु सन् में उनके स्वर्गवास हो जाने के बाद उसी हंस प्रकाशन ने जोरदार कमाई करना शुरू कर दिया।

अक्सर दिवंगत प्रतिभाएँ दूसरों की कमाई का साधन बन जाती हैं। दिवंगत फिल्म संगीतकारों, गीतकारों और कलाकारों के ट्रीटीज बना कर गुलशन कुमार के टी. सीरीज ने खूब कमाई की।

कमाल अमरोही की प्रसिद्ध फिल्म पाकीज़ा सन् 1972 में रिलीज़ हुई थी। पाकीज़ा में मीना कुमारी ने लाजवाब अभिनय किया था। फिल्म को टाकीजों में दिखाया गया पर लोगों ने उसे पसंद नहीं किया और हफ्ते भर में ही उतर गई। कुछ ही दिनों के बाद मीना कुमारी का स्वर्गवास हो गया। उनकी मृत्यु के पश्चात पाकीज़ा का प्रदर्शन फिर से एक बार टाकीजों मे किया गया। इस बार उसी फिल्म को लोगों ने खूब पसंद किया और उसे आशातीत सफलता मिली। मीना कुमारी की बात चली है तो याद आया कि गुलजार की फिल्म मेरे अपने, जिसमें मीना कुमारी की यादगार भूमिका थी, पूरी बन चुकी थी पर फिल्म की डबिंग के पहले ही मीना कुमारी का स्वर्गवास हो गया। फिल्म में मीना कुमारी की आवाज की डबिंग उसके डुप्लीकेट से कराई गई।

पाकीज़ा के जैसे ही प्रख्यात गीतकार शैलेन्द्र की फिल्म तीसरी कसम (1966) के साथ भी हुआ। तीसरी कसम फ्लॉप हो गई। इस बात का शैलेन्द्र को इतना सदमा लगा कि उनका स्वर्गवास ही हो गया। शैलेन्द्र के स्वर्गवास के बाद तीसरी कसम का पुनः प्रदर्शन हुआ और इस बार फिल्म को सफलता मिली। शैलेन्द्र अपनी सफलता स्वयं नहीं देख पाये।

कितना अच्छा हो यदि लोगों को उनके जीवन में ही उनकी प्रतिभा का प्रतिदान मिल पाये!

Wednesday, December 23, 2009

अंतरजाल (Internet) या इन्द्रजाल (Conjuration)?

टिम बर्नर ली ने अगस्त, 1991 में वर्ल्ड वाइड वेब अर्थात् इंटरनेट का आविष्कार करते समय स्वयं भी नहीं सोचा रहा होगा कि उनका यह आविष्कार आगामी कुछ ही वर्षों में समस्त विश्व में अपना जादू जगा देगा। यद्यपि इंटरनेट की खोज साठ के दशक में ही हो चुका था किन्तु उसका प्रयोग मात्र सैन्य सूचनाओं के आदान प्रदान के लिये ही किया जा रहा था। इंटरनेट का व्यावसायिक प्रयोग 1991 में वर्ल्ड वाइड वेब के आविष्कार हो जाने के बाद ही सम्भव हो पाया।

आपको किसी भी प्रकार की जानकारी की जरूरत हो, बस इंटरनेट को खंगालिये और आपको आपकी वांछित जानकारी अवश्य ही मिल जायेगी। यदि आपके पास इंटरनेट से जुड़ा एक कम्प्यूटर है तो समझ लीजिये कि सारा संसार आपके पहुँच में है। चाहे आपको कहीं संदेश भेजना हो (ईमेल), चाहे अपना कुछ खाली समय बिताने के लिये गपशप करना हो (चैटिंग), चाहे शापिंग करनी हो या अपना कुछ सामान बेचना हो, बात की बात में इंटरनेट आपकी चाहत को पूरा कर देगा। आज आप कोई भी काम अपने घर बैठे ही आनलाइन कर सकते हैं।

आज इंटरनेट ने पूरी दुनिया को अपने आप में समेट लिया है। रेल फ्लाइट्स और होटल्स की बुकिंग नेट से हो रहे हैं, शादियाँ नेट के द्वारा तय की जा रही हैं, मिनटों के भीतर शेयर्स का लेनदेन इंटरनेट के जरिये हो रहा है, शापिंग आनलाइन किया जा रहा है, कहने का तात्पर्य हर काम आनलाइन हो रहा है। हमारा देश भारत भी अब इस आनलाइन की दौड़ में शामिल हो चुका है और तेजी के साथ अन्य देशों को पीछे छोड़ता जा रहा है। आज देश के 75 लाख लोग अधिकांशतः आनलाइन रहते हैं। जहाँ अधिकतर लोग मात्र एक दो घंटे के लिये आनलाइन होते हैं वहीं प्रतिदिन चार पाँच घंटे तक आनलाइन रहने वाले लोगों की संख्या भी अच्छी खासी है, ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो कि दिन दिन भर आनलाइन बने रहते हैं।

व्यापार का तो यह इतना सशक्त माध्यम बन गया है कि आप सप्ताह के सातों दिन, चौबीसों घंटे कुछ भी वस्तु खरीदी बिक्री कर सकते हैं। भारत की बड़ी बड़ी कंपनियाँ अब इंटरनेट के द्वारा व्यापार करना शुरू कर चुकी हैं। बैंकों, बीमा कम्पनियों, ट्रैव्हल एजेंसियों, वैवाहिक साइट्स आदि के विज्ञापन अब इंटरनेट में धड़ल्ले के साथ दिखाई पड़ने लगे हैं क्योंकि इन विज्ञापनों से विज्ञापनदाताओं के व्यापार में आशातीत वृद्धि हो रही है। किन्तु इंटरनेट मार्केटिंग से धन कैसे बनाया जाये के मामले में भारत अभी भी बहुत पीछे है और इसी कारण से अब तक छोटी कंपनियाँ तथा व्यक्तिगत रूप से व्यापार करने वाले व्यापारीगण नेट मार्केटिंग में कम ही दिखाई देते हैं किन्तु लोग धीरे धीरे अब इस गुर को भी जानने लगे हैं। वह दिन अब दूर नहीं है जब कि छोटी कम्पनियाँ और व्यक्तिगत रूप से व्यापार करने वाले व्यापारी नेट से भरपूर मुनाफा कमाते नजर आयेंगे।

(यह लेख मेरे एक अन्य ब्लोग "इंटरनेट भारत" से)

Tuesday, December 22, 2009

धान के देश में का यह नया हेडर ललित शर्मा जी के ग्राफिक्स का कमाल है!

धान की बालियों के साथ छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परम्पराओं की झलक दिखाता हुआ मेरे ब्लोग का यह नया हेडर ललित शर्मा जी का कमाल है। ललित जी का कोटिशः धन्यवाद कि मेरे एक बार अनुरोध करने पर उन्होंने मुझे इतना अच्छा और सुन्दर हेडर बनाकर दे दिया।

मैं सोचा करता था कि काश मेरे ब्लोग के लिये भी एक धाँसू हेडर होता! किन्तु ग्राफिक्स में जीरो होने के कारण मैं कोई हेडर बना नहीं सकता था इसलिये मन मसोस कर रह जाता था। किन्तु कुछ ही दिनों पहले ललित जी से मेरी निकटता हो गई तो मेरा यह सपना उनके सौजन्य से साकार हो गया।

रायपुर में रहने के बावजूद भी बहुत दिनों तक मेरा सम्पर्क छत्तीसगढ़ के ब्लोगर बन्धुओं से नहीं हुआ था क्योंकि मैं थोड़ा रिजर्व टाइप का आदमी हूँ। जानता तो छत्तीसगढ़ के सभी ब्लोगर्स को था और उनसे सम्पर्क करने की इच्छा भी थी पर अपने आलसीपन के कारण उन लोगों से न तो कभी मिल पाया और न ही कभी उनसे फोन या मोबाइल से ही सम्पर्क कर पाया। फिर एक रोज मैंने "अमीर धरती गरीब लोग" वाले 'अनिल पुसदकर' जी को अपना मोबाइल नंबर मेल कर दिया। उन्होंने मुझे रिंग किया तो मैं सुखद आश्चर्य से अभिभूत हो गया। यह पहला सम्पर्क था मेरा छत्तीसगढ़ के किसी ब्लोगर से। बाद में अनिल जी व्यक्तिगत रूप से मुझसे मिलने भी आये। अनिल जी मस्त मौला इंसान हैं, फिकिर नॉट वाले। किन्तु किसी के भी सुख-दुख में साथ देने के लिये वे सबसे आगे रहते हैं। दोस्तो की समस्या कैसी भी हो वे हल निकाल ही लेते हैं। अनिल जी के लेखन के विषय में तो आप सभी जानते ही हैं कि उनके पोस्ट कितने अधिक प्रभावशाली रहते हैं! बहुत ही अच्छा लगा मुझे उनसे मिल कर।

फिर एक दिन मेरे पास ललित जी का मेल आया जिसमें उन्होंने मुझे अपना मोबाइल नंबर दिया था। जी हाँ, मैं "ललितडाटकॉम" वाले ललित शर्मा जी की बात कर रहा हूँ। ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि आप उन्हें जानते न हों, बहुत ही कम समय में उन्होंने हिन्दी ब्लोग जगत में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। मैंने फौरन मोबाइल द्वारा उनसे सम्पर्क किया। हम दोनों को ही बड़ी खुशी हुई आपस में बातें करके। दो-तीन दिनों बाद ही उन्होंने अभनपुर से रायपुर आकर मुझसे मुलाकात की। मात्र बीस मिनट के उस मुलाकात में हम दोनों के बीच अन्तरंग सम्बन्ध बन गया। कुछ दिनों के बाद हमारी फिर मुलाकात हुई जो कि लगभग तीन घंटे से भी अधिक देर तक की रही। उस रोज मुझे ललित जी की बहुमुखी प्रतिभा के विषय में जानने का अवसर मिला। लेखन और पत्रकारिता के अलावा समाजसेवा से भी जुड़े हए हैं वे। ग्राफिक्स में तो कमाल हासिल है उन्हें। बस अपने लिये एक हेडर बनाने के लिये कह दिया जिसका परिणाम आप मेरे इस ब्लोग के हेडर के रूप में देख रहे हैं।

इस बीच एक रोज मैं फिर खुशी से झूम उठा जब मेरे मोबाइल में एक कॉल आई और मैंने सुना कि "अवधिया जी हैं क्या, मैं बी.एस. पाबला बोल रहा हूँ भिलाई से।" पाबला जी से अब तक बातें ही हुई हैं किन्तु जल्दी ही व्यक्तिगत मुलाकात भी हो जायेगी। और कल फिर मैं सुखद आश्चर्य से भर उठा जब कि "आरंभ" वाले 'संजीव तिवारी' जी एकाएक मेरे पास आ पहुँचे। लगभग दो घंटे तक बातें चलती रहीं हमारे बीच। बहुत ही सीधा और सरल व्यक्तित्व है तिवारी जी का।

अब तो मुझे विश्वास हो गया है कि निकट भविष्य में ही छत्तीसगढ़ कें सभी ब्लोगर बन्धुओं से व्यक्तिगत मुलाकात अवश्य ही होगी।

चलते-चलते

ग्राफिक्स में जीरो हैं तो क्या, किसी दूसरे का कोई अच्छा ग्राफिक्स दिखा तो सकते हैं आप लोगों कोः

Monday, December 21, 2009

हिन्दी ब्लोगर्स का दरवाजा खटखटाने वाली है लक्ष्मी जी

वो दिन अब दूर नहीं है जब लक्ष्मी माता हिन्दी ब्लोगर्स का दरवाजा खटखटाते नजर आयेंगी। गूगल का पहले 'हैबातों में दम?' प्रतियोगिता आयोजित करना और बाद में "हिन्दी बुलेटिन बोर्ड" बनाना इस बात का संकेत है कि गूगल अब हिन्दी को नेट में तेजी के साथ बढ़ाना चाहता है। यद्यपि हिन्दी को नेट में आगे लाने के पीछे गूगल की मंशा भारत में अपने व्यवसाय को फैलाना है किन्तु इस बात में भी दो मत नहीं हो सकता कि गूगल के इस कार्य से हिन्दी का बहुत भला होने वाला है।

वास्तव में देखा जाये तो नेट में आगे बढ़ने के लिये हिन्दी को बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ रहा है। और इसके लिये एक नहीं अनेक कारण हैं जिनमें से कुछ मुख्य कारण ये हैं

सबसे बड़ा कारण है लिखने के मामले में हिन्दी का कुछ जटिल होना। एक ही शब्द को एक से अधिक प्रकार से लिखा जाता है जैसे कि कोई "विंध्याचल" लिखता है तो कोई उसी को "विन्ध्याचल" लिखता है।

हिन्दी शब्द सूची (वोकाबुलारी) का विशाल डेटाबेस न होना। हिन्दी शब्दों का डेटाबेस जितना अधिक बढ़ेगा उतने अधिक समानार्थी शब्दों का नेट में प्रयोग होने लगेगा। उदाहरण के लिये कोशिश, प्रयास, प्रयत्न, चेष्टा आदि समानार्थी शब्द हैं। इंटरनेट में भाषाओं के लिये जो सॉफ्टवेयर बनते हैं वे बहुत ही जटिल होते हैं। ये सॉफ्टवेयर न केवल हमारे लेखों को पढ़ते हैं बल्कि उसे समझने और दूसरी भाषाओं मे अनुवाद करने का भी कार्य करते हैं। सही डेटाबेस उपलब्ध नहीं होने के कारण ये सॉफ्टवेयर सही काम नहीं कर पाते। यही कारण है कि गूगल ट्रांसलेट के द्वारा किया गया अनुवाद गलत और यहाँ तक कि हास्यास्पद भी हो जाता है। यदि हम He is a kind man. वाक्य का गूगल ट्रांसलेट से अनुवाद करें तो वह "वह एक तरह का आदमी है." बताता है। इसका स्पष्ट कारण है कि उसके डेटाबेस में अंग्रेजी के kind शब्द के लिये हिन्दी में "तरह" के साथ ही साथ "प्रकार", "दयालु", "कृपालु" आदि शब्द नहीं हैं, यदि होता तो अवश्य ही अनुवाद सही याने कि "वह एक दयालु आदमी है." होता। गूगल अपने अनुवादक में “contribute better translation” कह कर हम से इसके लिये सहायता भी माँगता है (नीचे चित्र देखें) किन्तु हम ही उसे सहयोग नहीं दे पाते।

हिन्दी शब्दों के हिज्जों में गलतियों का बहुतायत से पाया जाना जैसे कि 'कोशिश' को 'कोशीश', 'पुरी' को 'पूरी' लिखना आदि। कोशिश को कोशीश लिखने पर भी पढ़ने वाला एक बार समझ लेता है कि हिज्जे की गलती हो सकती है क्योंकि हिन्दी में कोशीश शब्द नहीं होता किन्तु पुरी को पूरी लिखने से भ्रम की स्थिति बन जाती है क्योंकि हिन्दी में ये दोनों अलग अलग शब्द हैं।

खैर ये तो हिन्दी की कुछ कठिनाइयाँ हैं। अब आते हैं "लक्ष्मी जी" वाली बात पर! लक्ष्मी जी हमारे पास तभी आयेंगी जब हमारे पास पाठकों का एक विशाल समूह होगा और पाठकों का विशाल समूह तब होगा जबः

  • हम हिन्दी में अच्छे, जानकारीपूर्ण, पाठकों को पसंद आने वाले, जहाँ तक हो सके हिज्जों की गलतियों से रहितसामग्री लिखेंगे।
  • "हिन्दी बुलेटिन बोर्ड" में अपने विचारों को रखेंगे। इसमें आप अपने ब्लोग का लिंक देक अपने ब्लोग कोलोकप्रिय भी बना सकते हैं।
तो मित्रों, अब हमें ठान लेना है कि हिन्दी को नेट में आगे बढ़ाने के लिये हम गूगल का जी जान से सहयोग करेंगे ताकि लक्ष्मी जी की हमपर जल्दी से जल्दी कृपा हो।

Sunday, December 20, 2009

मैं पोस्ट लिखता नहीं पोस्ट बन जाती है

यदि आपका ब्लोग है तो उसे अपडेट करना भी जरूरी है और अपडेट करना है तो नई पोस्ट तो लिखनी ही है। तो प्रश्न यह उठता है कि आखिर रोज रोज लिखा क्या जाये?

पर इसके लिये चिन्ता में घुलने की कोई जरूरत नहीं है। माता सरस्वती बहुत ही दयालु देवी हैं। सुझा ही देती हैं कुछ ना कुछ लिखने के लिये। अब कल सुबह हमारा शहर धुंध से बुरी तरह से घिर गया। उस दृश्य को देखते ही सूझ गया हमें "जब हम हर्बल सिगरेट पीते थे ... कुछ यादें बचपन की ..." लिखने के लिये। ललित भाई की चौबे जी से मुलाकात हुई तो उन्हें चौबे जी और इरफ़ान भाई (कार्टूनिस्ट) में समानता नजर आई और बन गईं एक नहीं दो दो पोस्टें "इरफ़ान भाई (कार्टूनिस्ट) से एक मुलाकात रायपुर में!!..." और "कहीं ये दोनों मेले में बिछड़े हुए भाई तो नहीं है?" अनिल पुसदकर जी का मूड खराब होता है और बन जाती है पोस्ट "आज मूड़ बहुत खराब है!"

तो दोस्तों! बस अपने आस पास के दृश्य, वातावरण, घटनाएँ आदि पर निगाह बनाये रखिये और मिल ही जायेगा आपको लिखने के लिये कुछ ना कुछ मैटर और आप भी कहेंगे "मैं पोस्ट लिखता नहीं पोस्ट बन जाती है"