Saturday, January 9, 2010

संगीता पुरी जी का सराहनीय कार्य ... 5 दिन में 45 लेख दिये गूगल के 'है बातों में दम?' प्रतियोगिता को

यह देखकर मुझे अपार हर्ष हुआ कि संगीता पुरी जी ने 5 दिन में 45 लेख दिये हैं गूगल के 'है बातों में दम?' प्रतियोगिता को! प्रतियोगिता में उनके द्वारा डाले गये लेखों की लिस्ट आप यहाँ क्लिक करके देख सकते हैं।

संगीता जी ने 4 जनवरी 2010 को प्रतियोगिता में भाग लेना आरम्भ किया मात्र 5 दिन में 45 लेख समर्पित कर दिया प्रतियोगिता को। नेट में हिन्दी के विस्तार के लिये यह अत्यन्त सराहनीय कार्य है उनका! मैं आशा करता हूँ कि उनका यह कार्य आपके लिये भी प्रेरणा बनेगी और आप भी बढ़ चढ़ कर इस प्रतियोगिता में अवश्य ही भाग लेंगे।

आपके इस कार्य के लिये हार्दिक धन्यवाद संगीता जी!

आज नेट में हिन्दी के जानकारीयुक्त अच्छे लेखों की अधिक से अधिक संख्या में जरूरत है और इस जरूरत को पूरा करने में आप सभी का सहयोग बहुत ही महत्वपूर्ण है।

नये ब्लागवाणी में बार बार लागिन करने की जरूरत नहीं है

नये साल में ब्लागवाणी ने भी अपना नया रूप पेश किया। अब नये ब्लागवाणी में यदि आपको किसी पोस्ट को पसंद करना हो तो पहले लागिन करना पड़ता है। बहुत से लोगों को परेशानी आ रही है कि उन्हें बार बार लागिन करना पड़ता है। किन्तु यह कोई बहुत बड़ी परेशानी नहीं है और इसे बहुत ही आसानी के साथ दूर किया जा सकता है। सबसे पहले ब्लागवाणी को अपने कम्प्यूटर में खोलिये और सीधे हाथ की तरफ सबसे ऊपर में "लागिन" को क्लिक करिये। क्लिक करते ही एक बॉक्स खुलता हे जिसमें आपको अपना ईमेल और पासवर्ड डालना होता है। उस बॉक्स में पासवर्ड के लिये दिये गये स्थान के नीचे लिखा होता है "मुझे याद रखना"। बस आपको इस बॉक्स को चेक कर देना है और बार बार लागिन करने की परेशानी से मुक्त हो जाना है। स्नैपशॉट देखें:

अब जब भी आप अपना कम्प्यूटर खोलेंगे, स्वयं को ब्लागवाणी में लागिन ही पायेंगे जब तक कि आप स्वयं लाग आउट नहीं होंगे तब तक आपका कम्प्यूटर आपके लागिन को याद रखेगा।

चलते-चलते

शाम का धुंधलका छा गया था और हल्की बारिश हो चुकी थी। मेकेनिकल इंजीनियर साहब की कार का पहिया पंचर हो गया। उन्होंने गाड़ी रोकी और जैक लगाकर पहिया बदला किन्तु जब पहिये को कसने के लिये नटों को देखा तो पता चला कि चारों नट ढुलक कर खो गये हैं। अब बड़े परेशान हो गये वे। माथा ठोंक लिया और उनके मुँह से निकल पड़ा, "हे भगवान! अब क्या करूँ।"

पास ही पागलखाना था जहाँ एक खिड़की पर बैठा हुआ पागल यह सब देख रहा था। उसने वहीं पर से पुकार कर कहा, "साहब! परेशान क्यों हो रहे हो? कार के बाकी तीन पहियों से एक एक नट निकाल कर चौथा पहिया कस लो। घर या गैराज तक तो पहुँच ही जाओगे।"

इंजीनियर साहब ने वैसा ही किया और खुश होकर बोले, "यार! किसने तुझे पागलखाने में भेज दिया है? भाई! तू जरा भी पागल नहीं है!!"

पागल ने गम्भीर स्वर में कहा, "नहीं साहब! पागल तो मैं हूँ, पर बेवकूफ नहीं हूँ।"

तीन देवियाँ

मैं फिल्म "तीन देवियाँ" की बात नहीं कर रहा हूँ। मैं तो उन तीन देवियों की बात कर रहा हूँ जो कि नेता, साहब, थानेदार, क्लर्क, छात्र, महिलाएँ, गृहस्थ, पत्नी, मुन्ना और कुत्ता के साथ पाई जाती हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि ये बुड्ढा आज जरूर सठिया गया है तभी कुछ भी ऊल-जलूल बके जा रहा है। हो सकता है कि मैं सठिया गया होऊँ पर साहब मैं ऊल-जलूल बक नहीं रहा हूँ। मैं तो बात कर रहा हूँ जनाब स्माइल 'जगदलपुरी' की रचना "तीन देवियाँ" की। लीजिये आप भी पढ़ियेः

तीन देवियाँ

स्माइल 'जगदलपुरी'

नेता

खादी नित पहना करें, सूरत है मनहूस।
तीन देवियाँ साथ हैं, चंदा, थैली, घूस॥

साहब

रिश्वत खाकर बढ़ गया, बड़े साब का पेट।
तीन देवियाँ साथ हैं, चाय, पान सिगरेट॥

थानेदार

छात्र पुलिस संघर्ष में, टूट गई है टाँग।
तीन देवियाँ साथ हैं, व्हिस्की, गाँजा, भाँग॥

क्लर्क

बहे पसीना देह से, तनिक न आवे चैन।
तीन देवियाँ साथ हैं, फाइल, चिट्ठी, पैन॥

छात्र

पीट दिया आचार्य को, करी खोपड़ी ठूँठ।
तीन देवियाँ साथ हैं, हाकी, पत्थर, बूट॥

महिलाएँ

फिल्म देखने को चली, महिलाओं की टीम।
तीन देवियाँ साथ हैं, रूज़, पाउडर, क्रीम॥

गृहस्थ

दर्जन भर बच्चे हुये, किस्मत का है खेल।
तीन देवियाँ साथ हैं, राशन, लकड़ी, तेल॥

पत्नी

घर आने में रात को, पति हो जायें लेट।
तीन देवियाँ साथ हैं, चिमटा, बेलन, प्लेट॥

मुन्ना

भाग गये स्कूल से, देख पिता जी दंग।
तीन देवियाँ साथ हैं, मंझा, डोर, पतंग॥

कुत्ता

मेम साब को देखकर, फौरन पूँछ हिलाय,
तीन देवियाँ साथ हैं, हलवा, रोटी, चाय॥

Friday, January 8, 2010

सोच रहा हूँ कि टिप्पणियों की एक दूकान खोल ही लूँ

"क्या बात है टिप्पण्यानन्द जी? किस सोच में डूबे हुए हैं?"

"भाई लिख्खाड़ानन्द जी! क्या बतायें हाथ बहुत तंग है आज कल। कुछ कमाई-धमाई की जुगत में लगा हुआ हूँ। सोच रहा हूँ कि टिप्पणियों की एक दूकान खोल ही लूँ।"

"टिप्पणियों की दूकान?"

"हाँ भई, टिप्पणियों की दूकान! आजकल हिन्दी ब्लॉगजगत में खूब माँग है टिप्पणियों की। वहाँ पर हाल यह है कि लोग यही चाहते हैं कि पोस्ट को भले ही कोई मत पढ़े पर टिप्पणी अवश्य कर दे। होड़ मची है हमारे ब्लोगरों में अधिक से अधिक टिप्पणी पाने के लिये। करोड़ों हिन्दीभाषी इंटरनेट यूजरों के होते हुए भी हिन्दी ब्लोगों के पाठकों की संख्या मात्र कुछ सौ तक ही सीमित है इससे साफ है कि हिन्दी ब्लोगर को हिन्दी ब्लोगर लोग ही पढ़ते हैं। अब जब पाठक ही नहीं हैं तो पाठकों की संख्या को भला पोस्ट की लोकप्रियता और गुणवत्ता का पैमाना कैसे माना जाये? इसलिये टिप्पणियों की संख्या ही इस पैमाने का काम करती हैं। इसीलिये आपस में एक दूसरे के पोस्ट पर टिप्पणी करने का चलन हो गया है। यदि एक ब्लोगर ने किसी दूसरे ब्लोगर के पोस्ट पर टिप्पणी किया है तो दूसरे ब्लोगर का कर्तव्य बनता कि कि वह भी जाकर पहले ब्लोगर के पोस्ट में टिप्पणी करे। टिप्पणियाँ पाने के लिये बहुत से गुट बन गये हैं। जैसे नेता लोग भीड़ बढ़ाने के लिये रुपये देकर ट्रकों में लोगों को लाते हैं उसी प्रकार से टिप्पणियाँ पाने के लिये एक से बढ़कर एक हथकंडे अपनाये जाते हैं, लोग ईमेल और फोन कर के एक दूसरे को बताते हैं कि मेरी पोस्ट लग गई है और अब आपको टिप्पणी करना है। पर बहुत से ऐसे ब्लॉगर भी हैं जो लिखते तो बहुत अच्छे हैं पर उनके पोस्ट में टिप्पणियाँ ही नहीं आती। हम तो ऐसे ब्लोगरों को ही अपना ग्राहक बनायेंगे। जोरदार चलेगी अपनी दूकान। उचित दाम लेकर सही टिप्पणी देंगे तो भला कोई क्यों नहीं खरीदेगा हमसे टिप्पणियाँ?"

"विचार तो आपका बहुत अच्छा है! सच में खूब चलेगी आपकी दूकान। पर यह तो बताइये कि आपने ऐसे कैसे कह दिया कि लोग यही चाहते हैं कि पोस्ट को भले ही कोई मत पढ़े पर टिप्पणी अवश्य कर दे?"

"अरे आप किसी पोस्ट और उसकी टिप्पणियों को पढ़ कर तो देखिये! आप को खुद पता चल जायेगा कि हमने ऐसा क्यों कहा। पोस्ट गम्भीर है तो उसमें टिप्पणी हँसी-मजाक और नोंक-झोंक वाली मिलेंगी। ऐसी टिप्पणियाँ मिलेंगी जिनका पोस्ट के विषय से दूर-दूर का भी कोई सम्बन्ध नहीं है। तो ऐसी टिप्पणी पोस्ट को पढ़ने के बाद तो नहीं की जा सकती ना? और यदि पोस्ट को पढ़ने के बाद की गई होंगी तो स्पष्ट है कि टिप्पणी करने वाला या तो गम्भीर पोस्ट लिखने वाले की खिल्ली उड़ाना चाहता है या फिर उसे नीचा दिखा कर उसका कद छोटा कर देना चाहता है। भाई टिप्पणी करके किसी का सहयोग करने का यह अर्थ तो नहीं है ना कि हमारे ही सहयोग से सामने वाले का कद हमसे भी ज्यादा ऊँचा हो जाये?

"अच्छा अब यह बताइये कि रेट क्या रखेंगे आप टिप्पणियों के?"

"रेट तो टिप्पणी की क्वालिटी के अनुसार रखेंगे। "nice", "वाह! वाह!!", "बेहतरीन!", "बहुत सुन्दर!", "क्या खूब!" जैसी एक दो शब्दों वाली टिप्पणियों के रेट रहेंगे मात्र दस रुपये प्रति टिप्पणी! "गहरी बात कह गये!", "बहुत अच्छा लिखा है!" जैसी एक वाक्य वाली टिप्पणियों के रेट होंगे बीस रुपये प्रति टिप्पणी!"

"इतने कम रेट टिप्पण्यानन्द जी? भाई माना कि ये टिप्पणियाँ छोटी हैं पर लोगों के ब्लोग में जाने और टिप्पणी करने में समय तो लगता ही है। इतना अधिक समय गवाँ कर इतने सस्ते में कैसे टिप्पणियाँ बेच पायेंगे आप?"

"दिक्कत की कोई बात नहीं है लिख्खाड़ानन्द जी! हमें कौन सा किसी ब्लॉग में जाना है, पोस्ट को पढ़ना है और टिप्पणी करना है? ऐसी टिप्पणियों के लिये ऑटोमेटेड टिप्पणी करने वाली सॉफ्टवेयर आती है ना, बस वही खरीद लेंगे। एक बार उसमें टिप्पणियों और ब्लोगों के यूआरएल को फीड भर कर देना है। फिर तो अपने आप ही टिप्पणियाँ होती रहेंगी। हाँ टिप्पणी खरीदने वाले के लिये शर्त सिर्फ यही रहेगी कि कम से कम एक हजार रुपये की टिप्पणी खरीदना होगा उसे, क्योंकि मात्र पाँच दस टिप्पणियों के लिये तो हम ऑटोमेटेड साफ्टवेयर में बार बार ब्लोगों के यूआरएल तो बदलने से रहे।"

"वाह! तब तो खूब कमाई होगी आपकी!"

"बिल्कुल होगी जी! और फिर किसी की टाँगें खींचने, गाली गलौज करने जैसी स्पेशल टिप्पणियाँ करवाने वाले भी बहुत लोग मिलेंगे। इस प्रकार की स्पेशल टिप्पणियों के रेट भी स्पेशल रखेंगे हम। हमारे नियम के अनुसार टिप्पणियों के दाम मिल जाने के बाद चौबीस घंटे के भीतर टिप्पणियाँ की जायेंगी और यदि कोई तुरन्त टिप्पणी करवाना चाहेगा तो फिर अर्जेंट चार्जेस अलग लगेंगे।"

"अच्छा यदि कोई लंबी टिप्पणी खरीदना चाहे तो?"

"तब तो उनके रेट भी तगड़े रहेंगे, कम से कम एक हजार रुपये प्रति टिप्पणी क्योंकि ऐसी टिप्पणियों के लिये तो ऑटोमेटेड टिप्पणी करने वाली सॉफ्टवेयर से तो काम लिया नहीं जा सकता, खुद ब्लोग में जाकर पोस्ट को पढ़ना पड़ेगा।"

"तो चलिये जल्दी खोलिये अपनी टिप्पणियों की दूकान। हम भी कुछ टिप्पणियाँ खरीद लिया करेंगे आपसे।"

"अरे आपको भला टिप्पणियाँ खरीदने की क्या क्या जरूरत है, आप तो महान और धुरन्धर लिख्खाड़ हैं! लोग तो आपके पोस्ट का इंतजार करते बैठे रहते हैं। इधर पोस्ट प्रकाशित हुई नहीं कि टिप्पणियाँ आनी चालू हो जाती हैं।"

"हाँ भाई, टिप्पणियाँ तो खूब मिल जाती हैं हमें! पर ऐसे ही थोड़े मिल जाती हैं हमें ये टिप्पणियाँ। खूब मेहनत करनी पड़ती है हमें इनके लिये। हजारों ब्लोगों में जा जा कर टिप्पणी करते हैं हम तब कहीं जाकर सौ-पचास टिप्पणी मिल पाती है। हाँ तो हम कह रहे थे कि टिप्पणियाँ तो जरूर खरीदेंगे हम आपसे। टिप्पणियाँ जितनी अधिक मिले उतना ही ज्यादा अच्छा होता है।"

"फिर तो लिख्खाड़ानन्द जी हम भी आपके लिये डिस्काउंटेड रेट लगायेंगे। आखिर आप हमारे मित्र जो हैं।"

"तो कब खुल रही है आपकी टिप्पणियों की दूकान?"

"बहुत ही जल्दी! ऑटोमेटेड टिप्पणी करने वाली सॉफ्टवेयर के लिये ऑर्डर दे रखा है। बस सॉफ्टवेयर आई कि दूकान खुली।"


(मेरे लिये हर्ष की बात है कि यह धान के देश में ब्लोग का 401वाँ पोस्ट है!)

टिप्पणी करना है याने कि करना है भले ही उस टिप्पणी से पोस्ट की गम्भीरता ही खत्म हो जाये

पता नहीं और किसी और को लगता है या नहीं, पर मुझे तो बहुत अजीब सा लगता जब मैं किसी गम्भीर विषय वाले पोस्ट पर हँसी मजाक वाली टिप्पणी देखता हूँ। बहुत बार मुझे कई पोस्टों में कुछ ऐसी ही टिप्पणियाँ दिखाई पड़ती हैं जो कि किसी गम्भीर विषय को, जो कि एक स्वस्थ चर्चा के उद्देश्य से लिखी गई हो, महज हास्य बना कर रख देती हैं। मेरे इस कथन को पढ़कर अब आप मुझसे लिंक्स माँगेंगे मुझसे। पर मैं कोई भी लिंक नहीं देने वाला हूँ क्योंकि मैं समझता हूँ कि जो कुछ मुझे दिखाई देता है वह आप लोगों को भी दिखाई देता होगा या फिर मैं ही मूर्ख हूँ।

आज मैं कुछ और पोस्ट लिखना चाहता था किन्तु कुछ देर पहले कुछ ऐसी ही टिप्पणियाँ मुझे दिखाई पड़ीं तो मैंने अपने मन में जो विचार उठा उसे यहाँ पर एक माइक्रोपोस्ट के रूप में आपके समक्ष रख दिया। मेरा किंचित मात्र भी यह अभिप्राय नहीं है कि आप लोगों को भी वैसा ही लगे जैसा कि मुझे लगता है। आपको यदि ऐसी टिप्पणियाँ अच्छी लगती हैं तो बहुत ही अच्छी बात है।

Thursday, January 7, 2010

न खुद किसी का सम्मान करेंगे और न ही किसी को करने देंगे

"नमस्कार लिख्खाड़ानन्द जी!"

"नमस्काऽऽर! नमस्कार, टिप्पण्यानन्द जी!!"

"सुना है कि कोई ब्लॉगर सम्मान आयोजित किया जा रहा था पर उसे स्थगित कर दिया गया।"

"अजी काहे का ब्लॉगर सम्मान? हम क्या सम्मान और रुपये के भूखे हैं? क्या हमारा साहित्यिक कद सम्मान, पुरुस्कार वगैरह का मोहताज है? हम क्या समझते नहीं हैं कि ये सम्मान करने वाले तो अपनी प्रसिद्धि के लिये टोटके अपना कर चिरकुटयाई कर रहे हैं। ना जाने कैसे कैसे अजीब लोग आ गये हैं हिन्दी ब्लोगिंग में। चले हैं सम्मान करने। आज के जमाने में क्या कोई किसी एक ब्लॉगर के सम्मान को सभी ब्लॉगरों का गौरव समझ सकता है क्या? कुछ ऐरे गैरे ब्लॉगरों की लिस्ट बना दिया वोटिंग के लिये। क्या बाकी ब्लॉगर मूर्ख हैं? अजी ये तो एक चाल थी एक का सम्मान कर के सौ का अपमान करने की, एक को आगे बढ़ा कर सौ को पीछे कर देने की। चाल चलना क्या सम्मान करने वाले ही जानते हैं? हम भी जानते हैं चाल चलना! इसीलिये हमने ऐसी चाल चली कि दाँतों पसीने आ गये सम्मान करने वाले की। पोल खोल कर रख दिया सम्मान करने वाली की टिप्पणियाँ करवा करवा के! बच्चू अब फिर कभी ब्लॉगर सम्मान जैसा कोई आयोजन के पहले सत्रह सौ साठ बार सोचेगा!"

"आपने बहुत ठीक किया लिख्खाड़ानन्द जी! भला हिन्दी ब्लोगिंग भी कोई सम्मान कमाने, रुपया कमाने के लिये है क्या? हिन्दी ब्लॉगिंग तो है दिल की भड़ास निकालने के लिये, नर नारी और धर्म सम्बन्धी विवाद करने के लिये, एक दूसरे की टाँग खींचने के लिये, कोई यदि अच्छा काम करे तो उसका वाट लगाने के लिये और ज्यादा से ज्यादा टिप्पणी पाने के लिये। हिन्दी ब्लोगर को रुपये या किसी सम्मान की कोई जरूरत है क्या? उसकी जरूरत तो मात्र अधिक अधिक से अधिक टिप्पणी पाना है। जिसका सम्मान करना है उसकी पोस्ट पर जाकर अधिक से अधिक टिप्पणियाँ कर दो और देखो कि कितना सम्मानित अनुभव करता है वह अपने आप को।"

"भाई टिप्पण्यानन्द जी! हमारा तो सिद्धान्त है कि न खुद किसी का सम्मान करेंगे और न ही किसी को करने देंगे!"

"बहुत अच्छा सिद्धान्त है जी आपका! अच्छा तो अब चलता हूँ, नमस्कार!"

"नमस्काऽऽऽर!"

Wednesday, January 6, 2010

कमाई कम हो तो काम कैसे चले?

इस हिन्दी ब्लोगिंग ने एक लंबे समय से हमारे अंग्रेजी लेखन को बिल्कुल बंद करा दिया और नतीजा यह हुआ कि हमें एडसेंस से हर महीने मिलने वाला चेक अब तीन तीन महीनों के बाद मिलने लगा याने कि कमाई कम हो गई। अब कमाई कम हो तो काम कैसे चले? इसलिये हमने सोचा कि कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा। वैसे भी नये साल में कुछ ना कुछ नया करना भी चाहिये।

तो हमने एक जुगत लगाई। दो रोज पहले अंग्रेजी का एक नया ब्लोग Indian Images बनाया। अब ये नया ब्लोग है तो अंग्रेजी का पर अंग्रेजी उसमें नाममात्र को ही है और विज्ञापन चकाचक रहे हैं। याने कि "हींग लगे ना फिटकरी और रंग आये चोखा"!


तो लगे हाथों आप भी जरा घूम आइये ना हमारे इस नये ब्लोग के दो चार पेजों में! आप वहाँ घूमेंगे तो ये आपकी मेहरबानी होगी हम पर क्योंकि आपके वहाँ जाने का मतलब है ट्रैफिक बढ़ना याने कि सर्च इंजिनों के नजदीक पहुँचना। यदि आप साइट और एड प्लेसमेंट के विषय में अपनी राय हमें देंगे तो और भी बड़ी मेहरबानी होगी आपकी हम पर।

चलिये अब कुछ आपके फायदे की बात भी कर लेते हैं। आप चाहें तो आप भी एडसेंस से इस प्रकार से कुछ कमाई कर सकते हैं। इसके लिये सबसे पहले तो आप जीमेल में अपना एक नया ईमेल बना लीजिये। जी हाँ, आप जीमेल में आप जितने चाहें उतने ईमेल बना सकते हैं, गूगल को इस पर कोई ऐतराज नहीं है।

अब आप अपने इस नये जीमेल वाले आईडी से ब्लोगर खाते में लागिन कीजिए। लागिन कर लेने के बाद एक नया अंग्रेजी ब्लोग बना लें। घबराइये नहीं, मैं आपको अपने अंग्रेजी ब्लोग के लिए अंग्रेजी लेख लिखने के लिए नहीं कह रहा हूँ पर आप एक दो लाइन तो अंग्रेजी लिख ही सकते हैं, एक शीर्षक तो बना ही सकते हैं। अंग्रेजी लिखने के नाम से बस आपको इतना ही करना है। बाकी काम आपके चित्र, व्हीडियो आदि के संग्रह कर देंगे। याने कि आपको अपने संग्रह के किसी चित्र, या व्हीडियो के लिए अंग्रेजी में एक फबता सा शीर्षक देना है और अपने ब्लोग में उस चित्र या व्हीडियो को पोस्ट कर देना है। हो सके तो चित्र से मेल खाता एकाध अंग्रेजी का वाक्य भी जोड़ दें, यह सोने में सुगन्ध का काम करेगा।

हाँ अंग्रेजी ब्लोग बनाने के पहले आप सुनिश्चित कर लें कि आपके ब्लोगर खाते की डिफॉल्ट भाषा अंग्रेजी ही है क्योंकि यदि यह हिन्दी होगी तो आपको एडसेंस विज्ञापन नहीं मिलेंगे। इसके लिए आप ब्लोगर खाते के डैशबोर्ड को एकदम नीचे तक स्क्रोल करें। वहाँ आपको लेंग्वेज आप्शन दिखाई देगा। उसे क्लिक करने पर आपको पता चल जायेगा कि आपका डिफॉल्ट लेंग्वेज क्या है। वहाँ यदि पहले से ही अंग्रेजी है तब तो कोई बात नहीं है और यदि वहाँ हिन्दी है तो उसे बदल कर अंग्रेजी कर लें। निश्चिंत रहिए, इससे आपके हिन्दी ब्लोग में कोई भी फर्क नहीं पड़ने वाला है।

अब यदि पहले से ही आपका एडसेंस खाता बना हुआ है तो चार पाँच पोस्ट कर लेने के बाद मोनेटाइज कर लीजिये, एडसेंस के विज्ञापन आने शुरू हो जायेंगे। और यदि अब तक आपका एडसेंस खाता नहीं खुला है तो आपको इसके लिये छः माह प्रतीक्षा करनी होगी क्योंकि एडसेंस विज्ञापन मिलने के लिये किसी भी ब्लोग को कम से कम छः माह तक सक्रिय रहना जरूरी है। तो अपने अंग्रेजी ब्लोग में रोज एक पोस्ट लगाना जारी रखें और छः महीने बाद मोनेटाइज बटन को क्लिक करें और वहाँ जो भी जानकारी मांगा जाए देते जाइये। बस आपका एडसेंस खाता खुल जायेगा।

Tuesday, January 5, 2010

मुझे वही पोस्ट अधिक पसंद आता है जो कि आम पाठकों के लिये लिखी गई हो

रोज ही मैं हिन्दी ब्लोगों के अधिकतर पोस्टों को पढ़ता हूँ किन्तु मुझे वही पोस्ट अधिक पसंद आता है जो कि आम पाठकों के लिये लिखी गई हो। आम पाठकों के लिये लिखी गई पोस्ट से मेरा मतलब है जिसे पढ़ने से किसी की कुछ जानकारी मिले, उसे कोई सार्थक सन्देश मिले या फिर उसका स्वस्थ मनोरंजन हो। मिसाल के तौर पर ललित शर्मा जी की पोस्ट दीवारें भी चमकेंगी नई रौशनी से! "एक नया अविष्कार" बेहद पसंद आई। इस पोस्ट से एक नई जानकारी मिलती है। हो सकता है कि कुछ लोग इसमें बताई गई बात को पहले से ही जानते हों किन्तु मैं समझता हूँ कि अधिकतर लोगों के लिये यह बिल्कुल ही नई जानकारी है। इसी प्रकार से महफ़ूज अली के पोस्ट "जानना नहीं चाहेंगे आप संस्कार शब्द का गूढ़ रहस्य..." भी एक अच्छी जानकारी देने वाला पोस्ट है। ऐसे और भी उदाहरण अवश्य हैं किन्तु वे अपेक्षाकृत कम हैं। मैं तो समझता हूँ कि अच्छी जानकारी वाले पोस्ट हर किसी को पसंद आयेंगे ही।

प्रत्येक व्यक्ति की अपनी कुछ न कुछ विशेष रुचि होती ही है और अपनी रुचि वाले विषय में वह इतना अधिक खोज-बीन करता है कि उसके पास अच्छी जानकारियों का भण्डार हो जाता है। आप भी किसी न किसी क्षेत्र में अवश्य ही महारत रखते होंगे तो फिर क्यों न उस क्षेत्र की अच्छी जानकारी दूसरों को उपलब्ध करवायें?

इसी प्रकार से आप अपने खट्टे-मीठे अनुभव भी लोगों को बाँट सकते हैं। यदि आप अपने पोस्ट में बताते हैं कि क्यों और कैसे आप किसी विपत्ति में फँस गये थे और उससे कैसे छुटकारा मिला तो वह भी पाठक के लिये एक जानकारी ही होती है और आपका पाठक आपके अनुभव से लाभ उठा सकता है। याने कि आपके खट्टे-मीठे अनुभव भी अच्छी जानकारी है पाठकों के लिये। इसी प्रकार से आपके संस्मरण भी लोगों को ज्ञान बाँटने तथा मनोरंजन देने के साधन हो सकते हैं। तो जब भी कुछ लिखें तो ऐसा लिखें जिससे कि लोगों को एक सार्थक सन्देश प्राप्त हो।

यदि आप अपने ब्लोग में अच्छी जानकारी से युक्त पोस्ट देंगे तो न केवल हिन्दी की सेवा होगी बल्कि हिन्दी ब्लोग की पाठक संख्या भी दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ेगी।

Monday, January 4, 2010

क्या टिप्पणियाँ ही किसी पोस्ट की गुणवत्ता का मापदंड हैं?

टिप्पणियों के मोह से आज कोई भी हिन्दी ब्लोगर अछूता नहीं है। टिप्पणियों का मोह कोई अस्वाभाविक बात नहीं है किन्तु जिस प्रकार से हिन्दी ब्लोगजगत में टिप्पणियाँ पा लेने का मोह है उससे तो लगता है कि टिप्पणियाँ ही किसी पोस्ट की गुणवत्ता का मापदंड है। याने कि जिस पोस्ट में जितनी अधिक टिप्पणियाँ वह उतना ही अच्छा पोस्ट! इस लिहाज से तो विवादास्पद पोस्ट ही सबसे अच्छे हैं जहाँ पर बहुत सारी टिप्पणियाँ मिलती हैं, भले ही उन टिप्पणियों में गाली-गलौज तक शामिल हो।

टिप्पणी आखिर है क्या? एक प्रतिक्रिया मात्र तो है यह। यह मानव स्वभाव है कि जब कभी भी वह किसी के विचार को पढ़ता या सुनता है तो उसके अंदर भी प्रतिक्रिया स्वरूप कुछ न कुछ विचार अवश्य उठते हैं। जब लोग अपने भीतर उठने वाले इन विचारों को व्यक्त कर देते हैं तो वह टिप्पणी की संज्ञा प्राप्त कर लेती है। प्रतिक्रियात्मक विचार तो सभी पाठकों के भीतर उठते हैं किन्तु यह जरूरी नहीं है कि वे सभी अपने विचारों को व्यक्त ही करें। विचारों की अभिव्यक्ति के लिये लेखन क्षमता भी चाहिये।

मैं तो समझता हूँ कि किसी पोस्ट की गुणवत्ता तय करने वाले वास्तव में उसके पाठकगण हैं न कि टिप्पणियाँ। नेट में आम पाठकों में एक बड़ा वर्ग ऐसे पाठकों का भी होता है जिनमें लेखन क्षमता नहीं होती और इसी लिये वे पोस्ट पढ़ कर भी टिप्पणी नहीं करते। ऐसे पोस्टों की कमी नहीं है जिनमें टिप्पणियाँ तो नहीं के बराबर हैं किन्तु पढ़े बहुत अधिक लोगों के द्वारा गये हैं और बहुत अधिक पसंद भी किये गये हैं। डिग.कॉम में जाकर देखें तो सैकड़ों की संख्या में डिग (पसंद) प्राप्त करने वाले पोस्टों में टिप्पणी ही नहीं है या है भी तो नहीं के बराबर।

ऐसा लगता है कि हिन्दी ब्लोगजगत में पाठक के ब्लोगर भी होने के कारण उसमें लेखन क्षमता भी होती ही है और वे अच्छी प्रकार से टिप्पणी कर लेते हैं इसीलिये यह भ्रान्ति बन गई है कि टिप्पणियाँ ही पोस्ट का मापदंड है। शायद इसीलिये यहाँ पर टिप्पणी मोह भी अधिक है।

जब हिन्दी ब्लोगों को आम पाठक मिलने शुरू हो जायेंगे तो टिप्पणी मोह अपने आप कम हो जायेगा और लोग अधिक से अधिक पाठक तैयार करने में ही अपनी सफलता मानना शुरू कर देंगे।

Sunday, January 3, 2010

महापण्डित रावण के बारे में कितना जानते हैं आप?


रावण का नाम सुनते ही हमें लगने लगता है कि उसमें मात्र अवगुण ही अवगुण थे। किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। जिस प्रकार से किसी सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार से सभी के गुण और अवगुण दोनों ही होते हैं। संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जिसमें गुण ही गुण हों या अवगुण ही अवगुण हों। आपको जान कर शायद आश्चर्य हो कि रावण में अवगुणों से कहीं अधिक गुण थे। रावण वेद तथा समस्त पुराणों का ज्ञाता महापण्डित था। वह अपने काल के अदम्य शक्तिशाली दुर्घर्ष वीरों में अग्रणी था। सीता का हरण कर लेने के बाद भी रावण ने उनसे विवाह के लिये स्वीकृति हेतु उन्हें एक वर्ष का समय सोचने के लिये दिया था। इससे सिद्ध होता है कि रावण सदाचरण वाला तथा नारी को सम्मान देने वाला था।

रावण भगवान शिव का अनन्य भक्त था। रावण की भक्ति तथा स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उसे चन्द्रहास नामक खड्ग भी दिया था।

दस सिर होने के कारण लंका के राजा रावण को दशानन के नाम से भी जाना जाता है। रावण में अवगुण अवश्य थे किन्तु उनके पास अपने अवगुणों से अधिक संख्या में गुण भी थे।

हिन्दुओं के आराध्य देव श्री राम के चरित्र को उज्ज्वल बनाने में सर्वाधिक सहयोग रावण का रहा है। श्री राम का रावण पर विजय को अधर्म पर धर्म का विजय की संज्ञा दी जाती है किन्तु यदि अधर्म ही ना रहे तो धर्म की विजय किस पर होगी?

रावण का उल्लेख पद्मपुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, कूर्मपुराण, रामायण, महाभारत, आनन्द रामायण, दशावतारचरित आदि ग्रंथों में आता है। रावण के आविर्भाव के विषय में विभिन्न ग्रंथों में विभिन्न प्रकार के उल्लेख मिलते हैं।

  • पद्मपुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण में उल्लेख है कि हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु दूसरे जन्म में रावण औरकुम्भकर्ण के रूप में पैदा हुए।
  • वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण पुलस्त्य मुनि के पुत्र विश्वश्रवा का पुत्र था। विश्वश्रवा की पहली पत्नीवरवर्णिनी ने जब कुबेर को जन्म दिया तो उनकी दूसरी पत्नी कैकसी को सौतिया डाह हो गया और उसने कुबेला मेंगर्भ धारण किया। यही कारण था कि उसके गर्भ से रावण तथा कुम्भकर्ण जैसे क्रूर स्वभाव वाले भयंकर राक्षसउत्पन्न हुये।
  • तुलसीदास जी रचित रामचरितमानस में बताया गया है कि रावण का जन्म शाप के कारण हुआ था। तुलसीदासजी नारद के द्वारा श्री विष्णु को शाप एवं प्रतापभानु की कथाओं को रावण के जन्म कारण बताते हैं।
दिति के पुत्र मय दानव की कन्या मन्दोदरी, जो कि हेमा नामक अप्सरा के गर्भ से उत्पन्न हुई थी, से रावण का विवाह हुआ था। रावण का पुत्र मेघनाद भी महापराक्रमी था। देवराज इन्द्र पर विजय पा लेने के कारण मेघनाद को इन्द्रजित के नाम से भी जाना जाता है।

महाज्ञानी एवं अनेक गुणो का स्वामी होने के बावजूद भी रावण अत्यन्त अभिमानी था। सत्ता के मद में उच्छृंखल होकर वह देवताओं, ऋषियों, यक्षों और गन्धर्वों पर नाना प्रकार के अत्याचार करता था। इसीलिये श्री राम ने उसका वध करके उसके अत्याचार का अन्त किया।

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