Saturday, January 16, 2010

सर्वाधिक कमाई करने वाले ब्लोग्स

हिन्दी ब्लोग्स से तो फिलहाल कमाई का कुछ अवसर नजर नहीं आ रहा है किन्तु अंग्रेजी तथा अन्य भाषा के ब्लोग्स भरपूर कमाई कर रहे हैं। शायद आपको जानकर आश्चर्य होगा कि सबसे अधिक कमाई करने वाले ब्लोग की मासिक आय $200,000 प्रतिमाह है। प्रस्तुत है सबसे अधिक कमाई करने वाले 30 ब्लोग्स ब्लोग्स का विवरण सहित सूचीः














































































































































































































































RankWebsiteOwnerMonthly EarningsMain Income


1


TechcrunchMichael Arrington$200,000Advertising Banners


2


MashablePete Cashmore$180,000Advertising Banners

3

Timothy SykesTimothy Sykes$150,000Affiliate Sales

4


Perez HiltonMario Lavandeira$140,000Advertising Banners

5

GothamistJake Dobkin$80,000Pay Per Click
6Venture BeatMatt Marshall$62,000Pay Per Click
7Slash GearEwdison Then$60,000Pay Per Click
8Life HackerNick Denton$60,000Advertising Banners

9

Smashing MagazineVitaly Friedman$58,500Advertising Banners
10Tuts PlusCollis Taeed$55,000Advertising Banners
11DooceHeather B. Armstrong$50,000Pay Per Click

12

Steve PavlinaSteve Pavlina$45,000Pay Per Click

13

TPMJosh Marshall$45,000Pay Per Click

14

Car AdviceAlborz Fallah$42,000Advertising Banners


15

ProbloggerDarren Rowse$40,000Advertising Banners

16

JohnChow John Chow$35,000Affiliate Sales

17

KotakuNick Denton$32,000Advertising Banners

18

ShoemoneyJeremy Schoemaker$30,000Private Advertising

19

Coolest GadgetsAllan Carlton$30,000Advertising Banners
20JoystiqAOL$18,000CPM Advertising
21PC MechDavid Risley$16,000Affiliate Sales
22Freelance SwitchCollis Ta’eed$13,000Membership Area

23

AbduzeedoFabio Sasso$11,000Advertising Banners

24

SizlopediaSaad Hamid$9,000Pay Per Click

25


Retire at 21Michael Dunlop$5,000Affiliate Sales

26

NoupeNoupe$4,930Advertising Banners

27

Uber AffiliatePaul Bourque$4,500Second Tear Affiliates

28

Click For NickNick Skeba$3,900Pay Per Click

29

Tyler CruzTyler Cruz$3,200Advertising Banners
30Just Creative DesignJacob Cass$3,000Services







सौजन्यः http://www.incomediary.com/top-earning-blogs/

यदि अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं के ब्लोग्स से कमाई हो रही है तो हिन्दी के ब्लोग्स से भला कमाई क्यों नहीं हो सकती? यदि हम सभी मिलकर हिन्दी ब्लोग्स में अच्छे कंटेन्ट्स देने और हिन्दी का एक विशाल पाठक वर्ग तैयार करने के लिये ठान लें तो वह दिन दूर नहीं होगा जब कि आप अपने हिन्दी ब्लोग से कमाई कर रहे होंगे।

चलिये आपको घर बैठे ही मजे दिलवाते हैं रामोजी फिल्म सिटी के!

ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि आप रामोजी फिल्म सिटी के बारे में न जानते हों। यह दुनिया का सबसे बड़ा फिल्म स्टूडियो है जिसका परिसर 2,000 एकड़ (8.1 km2) में फैला हुआ है। हैदराबाद भ्रमण करने के लिये जाने वाला हर पर्यटक के लिये यह एक बहुत बड़ा आकर्षण का केन्द्र है क्योंकि एक फिल्म स्टुडियो होने के साथ ही यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थाल तथा मनोरंजन केंद्र भी है। यहाँ पर प्राकृतिक और कृत्रिम दोनों ही प्रकार के आकर्षक रमणीक उद्यान हैं। रामोजी फिल्म सिटी हैदराबाद - विजयवाड़ा राजमार्ग (NH9) पर हैदराबाद लगभग 25 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।

रामोजी फिल्म सिटी में आप घर बैठे गूगल अर्थ के जरिये घूम सकते हैं। पर यहाँ पर आपके लिये हम एक इमेजरी प्रस्तुत कर रहे हैं जो आपको रामोजी फिल्म सिटी के अधिक मजे देगा।

तो आइये आपको घर बैठे ही रामोजी फिल्म सिटी का मजा दिलवाते हैं हम गूगल अर्थ में!

मजे लेने के लिये क्लिक करें:

Google Earth Logo गूगल अर्थ (Google Earth) - रामोजी फिल्म सिटी के मजे

यदि मजा आया हो तो अपनी टिप्पणी में अवश्य बताइयेगा ताकि हम आपको ऐसे ही और अन्य स्थानों की सैर करा सकें।

Friday, January 15, 2010

मेरे पोस्ट मात्र चौबीस घंटे ही प्रभावशाली रहते हैं

मैंने अनुभव किया है कि मेरे पोस्टों का प्रभाव मात्र चौबीस घंटे तक ही रहते हैं। प्रायः चौबीस घंटे तक ही उन्हें पढ़ा जाता है और उसके बाद वे न जाने अन्धकार के किस गर्त में खो जाते हैं। लगता है कि संकलकों के आगे वाले पृष्ठों में रहने तक ही उनका प्रभाव रहता है, ज्यों-ज्यों वे संकलक के पीछे की पृष्ठों में जाते जाते हैं त्यों-त्यों उनका प्रभाव कम होते जाता है। याने कि जिन्दा तो रहते हैं वे पोस्ट पर कोमा की स्थिति में।

बहुत ही क्षोभ होता है मुझे अपने आप पर। सोचने लगता हूँ कि मैं क्यों कुछ ऐसा नहीं लिख पाता जो हमेशा हमेशा के लिये लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन जायें, लोग खोज-खोज कर उन्हें पढ़ने आयें।

इस सत्य को जानने के बाद भी लाचार हूँ मैं। आत्मतुष्टि के लिये बेशर्मी के साथ हर रोज एक वैसा ही पोस्ट फिर कर दिया करता हूँ जिनका प्रभाव मात्र चौबीस घंटे तक ही रहे।

Thursday, January 14, 2010

क्या आप जीमेल का प्रयोग करते हैं? ... तो उसका बेहतर प्रयोग करें ना!

क्या आप जीमेल का प्रयोग करते हैं? यदि आपका उत्तर "हाँ" में है तो क्या आप जानते हैं कि जीमेल का बेहतर प्रयोग कैसे किया जा सकता है?

जीमेल में आपके लिये बहुत सारी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। आइये देखें कि जीमेल की सुविधाओं का प्रयोग करके कैसे जीमेल का बेहतर प्रयोग किया जा सकता है।

सितारे stars का प्रयोग करें: यदि कोई मेल आपके लिये विशेष है और बार

बार उस मेल को आपको खोलना है तो उसके लिये आप उस सितारे का प्रयोग कर सकते हैं। इससे आपको उस मेल को खोजने की जहमत बच जायेगी। स्टार प्रयोग करने के लिये बस आपको मेल के आगे बने सितारे को मात्र क्लिक कर देना है जिससे सफेद रंग का सितारे का चिह्न रंगीन हो जायेगा और वह मेल स्टार्ड फोल्डर में पहुँच जायेगी।

मेल का जवाब चैट से दें: किसी मेल का जवाब देने से पहले उसके फूटर तक स्क्रोल कर के देख लें कि क्या मेल भेजने वाला उस समय ऑनलाइन है। यदि वह उस समय ऑनलाइन रहे तो आप मेल का जवाब उससे चैटिंग कर के दे सकते हैं। इससे आपके बहुमूल्य समय की बचत होगी।

लेबल्स का प्रयोग करें: लेबल्स का प्रयोग करके आप अपने मेल सन्देशों को वर्गीकृत करके व्यवस्थित कर सकते हैं। इससे विशेष वर्ग याने कि लेबल्स वाले मेल तक आप बहुत ही आसानी के साथ पहुँच सकते हैं।

"Move to" का प्रयोग करें: मेलबॉक्स को साफ सुथरा रखने के लिये आप "Move to" क प्रयोग करके किसी भी मेल को किसी भी फोल्डर में पहुँचा सकते हैं।

सर्चबॉक्स का प्रयोग करें: किसी मेल को खोजने के लिये आप जीमेल में दिये गये सर्चबॉक्स का प्रयोग कर सकते हैं।

आर्चिव्हस का प्रयोग करें: ऐसे मेल को जिन्हें कि आप समझते हैं कि वर्तमान में इनका उपयोग नहीं है किन्तु भविष्य में शायद काम के हों में डाल दें। इससे मेल डिलीट भी नहीं होगा और आपका मेलबॉक्स साफ सुथरा रहेगा। आर्चिव्हस में डाले गये मेंल आपको "All Mail" फोल्डर में मिल जायेंगे।


थीम्स का प्रयोग करें: अपने जीमेल को सुन्दर बनाने के लिये थीम्स का प्रयोग करें। इसके लिये सेटिंग्स|थीम्स में जाकर पसंदीदा थीम का चयन कर लें।

Wednesday, January 13, 2010

यदि कोई कहता है कि मुझे गुस्सा नहीं आता तो वह बिल्कुल गलत कहता है

गुस्सा सभी को आता है। बहुत से लोग तो गुस्से से आग-बबूला हो जाते हैं। यदि कोई कहता है कि मुझे गुस्सा नहीं आता तो वह बिल्कुल गलत कहता है। गुस्से का आना उतना ही स्वाभाविक है जितना किसी पर प्यार आना। संसार में कोई भी ऐसा मनुष्य नहीं होगा जिसे गुस्सा न आता हो, मनुष्य तो क्या संसार में जितने प्राणी हैं उन सभी को क्रोध आता है।

हर्ष, दुःख, भय आदि के जैसे ही क्रोध भी प्राणीमात्र की एक मूलभावना है और प्राणियों के जीवित रहने के लिये ये मूल भावनाएँ अत्यन्त आवश्यक हैं। इन मूलभावनाओं के बगैर जिंदा रहा ही नहीं जा सकता। क्या आप बिना क्रोध किये किसी हमलावर से अपना बचाव कर सकते हैं? क्या कोई देशभक्त सैनिक क्रोध किये बिना शत्रु सैनिक का वध कर सकता है? सत्य तो यह है कि बुराइयों का नाश क्रोध किये बगैर हो ही नहीं सकता। क्रोध हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

गीता में श्री कृष्ण ने भी अर्जुन को शत्रु का वध करने का उपदेश दिया है। अब किसी का वध भला बिना क्रोध किये कैसे किया जा सकता है? स्पष्ट है कि श्री कृष्ण ने परोक्ष रूप से अर्जुन को क्रोध करने का ही उपदेश दिया है क्योंकि क्रोध जीवन के लिये आवश्यक है। हाँ अकारण या स्वार्थवश क्रोध करना अवश्य बहुत बड़ी बुराई है।

कई बार तो दया, करुणा जैसी भावनाएँ भी क्रोध का रूप धारण कर लेती हैं। क्रौञ्च पक्षी की मृत्यु के कारण वास्तव में महर्षि वाल्मीकि के हृदय में करुणा ही उत्पन्न हुई थी जो कि बहेलिये को शाप देने के रूप में क्रोध में परिवर्तित हो गई। किसी निर्बल या मासूम बच्चे पर किसी दुष्ट के अत्याचार के परिणामस्वरूप हमारे हृदय में दया की ही उत्पत्ति होती है किन्तु वह दया ही दुष्ट को सजा देने के लिये क्रोध का रूप धारण कर लेती है उदाहरण के लिये देखें यह पोस्ट

मेरे कहने का आप यह आशय मत निकाल लीजियेगा कि मैं क्रोध को अच्छा बता रहा हूँ। मैं तो आपको यह बताना चाहता हूँ कि यद्यपि क्रोध में बहुत सारी बुराइयाँ हैं किन्तु क्रोध की अपनी अच्छाइयाँ भी हैं और जीवन निर्वाह के लिये क्रोध आवश्यक है। याने कि गुस्सा आना भी उतना ही जरूरी है जितना कि गुस्से पर काबू पाना!

जब भी किसी को किसी पर किसी को क्रोध आता है तो क्रोध करने वाले का सबसे बड़ा उद्देश्य बन जाता है उस व्यक्ति को व्यथा पहुँचाना जिस पर क्रोध किया गया है। मारना-पीटना, शारीरिक या मानसिक चोट लगाना, अपमानित करना आदि व्यथा पहुँचाने के तरीके हैं। क्रोध में आकर आदमी सामने वाले को गाली-गलौज से लेकर उसकी हत्या तक भी कर सकता है। कभी-कभी तो सामने वाले को व्यथित करने के तरीके भी विचित्र होते हैं। आपने देखा होगा कि कई बार कोई आदमी क्रोध में आकर स्वयं को पीटने लगता है, खाना खाना छोड़ देता है। किन्तु स्वयं को पीटना या भोजन त्याग देना आदमी तभी करता है जब उसे किसी अपने प्रियजन पर क्रोध आता है। स्वयं को पीट कर भी वह सामने वाले को व्यथित करता है क्योंकि वह जानता है कि स्वयं को पीड़ा पहुँचाने पर वह प्रियजन अवश्य ही व्यथित होगा। किसी दूसरे आदमी पर क्रोध आने पर कभी भी कोई स्वयं को पीड़ा नहीं पहुँचाता।

जहाँ किसी की हत्या कर देना क्रोध का उग्र रूप है वहीं किसी को मात्र चिढ़ा देना क्रोध का एक छोटा रूप है। किसी को चिढ़ाने में आदमी का उद्देश्य मात्र स्वयं तथा अन्य लोगों का मनोरंजन करना होता है याने कि मात्र मनोरंजन के भी मनुष्य क्रोध करता है।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी ने बैर को क्रोध का अचार या मुरब्बा बताया है। जिस प्रकार से किसी फल का अचार या मुरब्बा बनाकर उसे दीर्घकाल के लिये सुरक्षित रखा जाता है उसी प्रकार से क्रोध को बैर बना कर दीर्घकालीन बना दिया जाता है अन्यथा क्रोध अल्पकालीन और अनेक बार क्षणिक ही होता है। शुक्ल जी ने क्रोध का एक बहुत ही अनूठा उदाहरण दिया है जिसके अनुसार एक ब्राह्मण बहुत ही भूखा था। उसने खाना बनाने के लिये चूल्हा जलाया। लकड़ियाँ गीली थी इसलिये जलने के स्थान पर मात्र धुआँ ही कर रही थी। ब्राह्मण देवता जब चूल्हा फूँकते-फूँकते थक गये तो अन्त में क्रोध में आकर बाल्टी भर पानी चूल्हे में डाल दिया और भूखे रह गये। इस प्रकार से क्रोध में आदमी प्रायः स्वयं को भी कष्ट पहुँचाता है।

क्रोध या गुस्सा या रोष पर नियन्त्रण करना "क्रोध प्रबन्धन" (anger management) के अन्तर्गत् आता है जो कि मनोवैज्ञानिक चिकित्सा प्रणाली का एक तकनीक है। इस प्रणाली का प्रयोग करके क्रोध पर नियन्त्रण रखा जा सकता है या फिर गुस्से को कम किया जा सकता है। क्रोध को नियन्त्रित करना बहुत अच्छी बात है किन्तु ऐसा करने के पहले यह जान लेना भी आवश्यक है कि हम किस प्रकार के क्रोध का नियन्त्रण कर रहे हैं। अच्छे प्रकार के क्रोध का या बुरे प्रकार के क्रोध का? पूरे क्रोध को नियन्त्रित करने के बजाय सिर्फ अतिरिक्त क्रोध को ही नियन्त्रित किया जाना चाहिये। हमेशा हानिकर क्रोध को ही नियन्त्रित किया जाना चाहिये। यदि आप अपने किसी प्रियजन की भलाई के उद्देश्य से उस पर गुस्सा करते हैं तो वह आपका बिल्कुल जायज गुस्सा है। इस प्रकार के गुस्से को नियन्त्रि कर के आप अपने प्रियजन का अहित ही करेंगे।

दूसरी ओर कुंठा, धमकी, उल्लंघन, या नुकसान की प्रतिक्रिया स्वरूप उत्पन्न क्रोध का हमेशा नियन्त्रण किया जाना चाहिये क्योंकि इस प्रकार का क्रोध हमें कई प्रकार की समस्याओं की ओर धकेल सकता है तथा हमारे भीतर अनेक मानसिक रोगों को जन्म दे सकता है।

कहा जाता है कि निम्न उपाय करने से अतिरिक्त क्रोध पर नियन्त्रण पाया जा सकता हैः

जोरदार गुस्सा आने पर गहरी गहरी साँसे लेना शुरू कर दें।

क्रोध एक मानसिक स्थिति होती है अतः गुस्सा आने पर अपने विचारों को किन्हीं अन्य विषयों की ओर मोड़ने का प्रयत्न करें।

गुस्सा आने पर 1 से 100 सौ तक गिनती गिनें, ऐसा करने से गुस्सा अपने आप ही शान्त होने लगेगा।

चलते-चलते

जीवन का उद्देश्य आनन्द प्राप्त करना है। - दलाई लामा

(The purpose of our lives is to be happy. - Dalai Lama)

Tuesday, January 12, 2010

अब ब्लागवाणी में किसी पसंद बटन को दोबारा क्लिक करने का मतलब है अपनी पसंद वापस लेना

क्या आपने कभी नये ब्लागवाणी में किसी पोस्ट को दो बार क्लिक कर के देखा है?

नये ब्लागवाणी में नई बात यह है कि यदि आपने भूलवश किसी पोस्ट के पसंद बटन को क्लिक कर दिया है तो आप फिर से उसे क्लिक करके अपनी पसंद वापस भी ले सकते हैं। किसी पोस्ट के पसंद बटन को दुबारा क्लिक करने का मतलब है अपने पसंद को वापस लेना। और तीसरी बार फिर से पसंद बटन को क्लिक करने का मतलब है वापस लिये गये पसंद को फिर से वापस देना।

इस व्यवस्था का अर्थ यह है कि नये ब्लागवाणी में अब किसी पोस्ट को केवल एक बार पसंद किया जा सकता है। यह नये ब्लागवाणी की एक बहुत बड़ी विशेषता है। पुराने ब्लागवाणी में थोड़ा सा तिकड़म करके किसी लेख को बार बार पसंद किया जा सकता था क्योंकि उसमें पसंद का आधार आईपी एड्रेस था जो कि आसानी के साथ बदला जा सकता है किन्तु नये ब्लागवाणी में पसंद का आधार लागिन है इसलिये इसमें किसी पोस्ट की पसंद संख्या बढ़ाने के लिये पहले जैसा तिकड़म भिड़ाने की सम्भावना समाप्तप्राय हो गई है।

इतनी सुन्दर व्यवस्था करने के लिये ब्लागवाणी को कोटिशः धन्यवाद!

चलते-चलते

यदि कोई छोटी-छोटी बातों में सच को गंभीरता से नहीं है लेता है तो बड़ी-बड़ी बातों में भी उसका भरोसा नहीं किया जा सकता. - अल्बर्ट आइंस्टीन

(Anyone who doesn't take truth seriously in small matters cannot be trusted in large ones either. - Albert Einstein)

Monday, January 11, 2010

पोस्ट लिखना कौन सा कठिन काम है, कोई भी लिख सकता है

"नमस्कार लिख्खाड़ानन्द जी!"

"नमस्काऽऽर! आइये आइये टिप्पण्यानन्द जी!"

"सुनाइये क्या चल रहा है?"

"चलना क्या है? अभी अभी एक पोस्ट लिखकर डाला है अपने ब्लॉग में और अब हम ब्लागवाणी पर अन्य मित्रों के पोस्टों को देख रहे हैं।"

"अच्छा यह बताइये लिख्खाड़ानन्द जी, आप इतने सारे पोस्ट लिख कैसे लेते हैं? भइ हम तो बड़ी मुश्किल से सिर्फ टिप्पणी ही लिख पाते हैं, कई बार तो कुछ सूझता ही नहीं तो सिर्फ nice , बहुत अच्छा, सुन्दर, बढ़िया लिखा है जैसा ही कुछ भी लिख देते हैं। पोस्ट लिखना तो सूझ ही नहीं पाता हमें।"

"अरे टिप्पण्यानन्द जी! पोस्ट लिखना कौन सा कठिन काम है, कोई भी लिख सकता है।"

"कैसे?"

"बताता हूँ पर पहले आप यह बताइये कि दया करना पुण्य और क्रोध करना पाप होता है कि नहीं?"

"जी हाँ, ऐसा ही है, बिल्कुल सही कह रहे हैं आप!"

"अब मान लीजिये कि आप कहीं जा रहे हैं और रास्ते में देखते हैं कि एक आदमी किसी मासूम बच्चे को पीट रहा है और बहुत से लोग चुपचाप देख रहे हैं। आपके पूछने पर लोग बताते हैं कि बच्चे को मारने वाला वह आदमी बच्चे से भीख मँगवाता है। आज बच्चे ने भीख में कुछ भी नहीँ लाया इसीलिये वह बच्चे को मार रहा है। ऐसे में आप क्या करेंगे? आप तो हट्टे-कट्टे आदमी हैं, क्या आप उस आदमी को छोड़ देंगे?"

"अजी, मैं तो फाड्डालूँगा स्साले को। मार मार कर कचूमर निकाल दूँगा। इतना मारूँगा स्साले को कि फिर कभी बच्चे को पीटना ही भूल जायेगा।"

"क्यों मारेंगे उसे आप? क्योंकि उस मासूम बच्चे पर दया आई आपको इसीलिये ना?"

"जी हाँ!"

"तो बच्चे पर दया करके आपने पुण्य किया कि नहीं?"

"बिल्कुल किया जी!"

"अच्छा अब बताइये उस आदमी को मारने के लिये क्रोध भी किया था ना आपने? बिना क्रोध किये तो किसी को मारा नहीं जा सकता!"

"हाँ जी, बहुत गुस्सा आया मुझे।"

"तो क्रोध करके आपने पाप किया कि नहीं?"

"अजी आप फँसाने वाली बात कर रहे हैं।"

"आप तो बस इतना बताइये कि क्रोध करके आपने पाप किया कि नहीं?"

"हाँ जी किया?"

"तो मुझे बताइये कि वास्तव में आपने क्या किया? दया किया कि क्रोध? पुण्य किया कि पाप?"

"अब मैं क्या बताऊँ जी! मेरा तो दिमाग ही घूम गया।"

"देखिये टिप्पण्यानन्द जी! वास्तव में आपने बच्चे पर दया किया किन्तु सिर्फ दया करके आप उस बच्चे को बचा नहीं सकते थे। उसे बचाने के लिये आपको बच्चे को उस दुष्ट आदमी से छुटकारा नहीं दिला सकते थे, बच्चे को उस जालिम से बचाने के लिये उसको मारना भी जरूरी था जो कि बिना क्रोध किये हो ही नहीं सकता। है कि नहीं?"

"जी, बिल्कुल!"

"तो इसका मतलब यह हुआ कि दया करने के लिये क्रोध का सहारा लेना जरूरी है। पुण्य करने के लिये पाप भी करना पड़ता है। पाप और पुण्य का एक दूसरे के बिना काम ही नहीं चल सकता। याने कि पाप और पुण्य एक दूसरे के पूरक हैं।"

"आप की बात सुनने के बाद मुझे भी ऐसा ही लगने लगा है कि पाप और पुण्य एक दूसरे के पूरक हैं।"

"अब हम दोनों के बीच अभी जो बातें हुई हैं उसी को यदि मैं 'पुण्य करने के लिये पाप भी करना पड़ता है' शीर्षक देकर अपने ब्लोग में डाल दूँ तो बन गई ना एक पोस्ट?"

"बिल्कुल बन गई जी!"

"तो जब मैं कहता हूँ कि 'पोस्ट लिखना कौन सा कठिन काम है, कोई भी लिख सकता है' तो क्या गलत कहता हूँ?"

"बिल्कुल सही कहते हैं जी आप!"

"चाय पियेंगे आप? मँगवाऊँ?"

"नहीं लिख्खाड़ानन्द जी, फिर कभी पी लूँगा, आज जरा जल्दी में हूँ। चलता हूँ, नमस्कार!"

"नमस्कार!"

Sunday, January 10, 2010

भारतीय सिनेमा का स्वर्णिम काल - सन् 1950 से 1980 ... लिस्ट कुछ लोकप्रिय फिल्मों की

भारत में फिल्मों के निर्माण आरम्भ होने के बाद भारतीय सिनेमा विकास के रास्ते पर निरंतर आगे बढ़ता ही गया और उसने मुड़कर कभी पीछे नहीं देखा। किंतु सन् 1950 से उसका स्वर्णिम काल प्रारंभ हुआ। रोचक कथानकों और सुमधुर गीत संगीत के मेल होने के कारण अद्वितीय फिल्में बनने लगीं।

राज कपूर, महबूब खान, गुरु दत्त, व्ही. शांताराम और बिमल राय जैसे महान निर्माताओं ने बूट पालिश, श्री 420, जागते रहो, आन, मदर इंडिया, प्यासा, कागज के फूल, दो आँखें बारह हाथ, नवरंग, दो बीघा जमीन और मधुमती जैसी सुंदर, सशक्त एवं अविस्मरणीय चलचित्रों का निर्माण किया जो कि आज भी लोकप्रिय हैं। सन् 1955 में सत्यजित राय, जो कि विश्व के जाने माने निर्देशकों में से एक हैं, द्वारा निर्देशित फिल्म पाथेर पांचाली ने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की।

भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम काल में विभिन्न निर्माण संस्थाओं के द्वारा बनाई गई लोकप्रिय फिल्मों का विवरण इस प्रकार हैः

महबूब खान के 'महबूब प्रोडक्शन्स' के द्वारा बनाई गई लोकप्रिय फिल्में हैं हुमायु (1945), अनमोल घड़ी (1946), अनोखी अदा (1948), अंदाज (1949), झाँसी की रानी (1952), आन (1952), अमर (1954), आवाज (1956), मदर इंडिया (1957), सन आफ इंडिया (1962)।

बिमल राय के 'बिमल राय प्रोडक्शन्स' के द्वारा बनाई गई लोकप्रिय फिल्में हैं दो बीघा जमीन (1953), नौकरी (1954), देवदास (1955), अमानत (1955), परिवार (1956), मधुमती (1958), सुजाता (1959), उसने कहा था (1960), परख (1960), काबुलीवाला (1961), प्रेम पत्र (1962), बंदिनी (1963), बेनज़ीर (1964), दो दूनी चार (1968)।

राज कपूर के 'आर.के. फिल्म्स' के द्वारा बनाई गई लोकप्रिय फिल्में हैं आग (1948), बरसात (1949), आवारा (1951), बूट पालिश (1954), श्री 420 (1955), जिस देश में गंगा बहती है (1961), संगम (1964), मेरा नाम जोकर (1970), धरम करम (1975), सत्यं शिवं सुंदरम् (1978)।

राज कपूर अपने समय के सबसे कम उम्र वाले निर्देशक थे। संगीत की उन्हें खूब समझ थी इसीलिये उनकी फिल्मों के गाने आज तक लोकप्रिय हैं, खास कर बरसात का गाना 'हवा में उड़ता जाये.....', आवारा का गाना 'घर आया मेरा परदेशी.....', बूट पॉलिश का गाना 'नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है.....', श्री 420 का गाना 'मेरा जूता है जापानी.....' एवं 'प्यार हुआ इकरार हुआ.....', जिस देश में गंगा बहती है का गाना 'ओ बसंती पवन पागल.....', संगम का गाना 'ओ मेरे सनम ओ मेरे सनम.....' आदि।

देव आनंद के 'नवकेतन इंटरनेशनल' के द्वारा बनाई गई लोकप्रिय फिल्में हैं अफसर (1950), टैक्सी ड्राइव्हर (1954), हाउस नं.44 (1955), फंटूश (1956), नौ दो ग्यारह (1957), काला पानी (1958), काला बाजार (1960), हम दोनों (1961), तेरे घर के सामने (1963), गाइड (1965), ज्वेल थीफ (1967), प्रेम पुजारी (1970), हरे राम हरे कृष्ण (1971), शरीफ़ बदमाश (1973), छुपा रुस्तम (1973), इश्क इश्क इश्क (1974), जानेमन (1976), लूटमार (1980)।

देव आनंद सदाबहार हीरो रहे। ग्रैगरी पैक के अंदाज में अभिनय किया करते थे और खूब लोकप्रिय हुये। उनके दोनों भाई चेतन आनंद और विजय आनंद भी गजब के प्रतिभा के धनी थे। फिल्म गाइड के निर्देशन के लिये विजय आनंद को सभी लोगों से बहुत प्रशंसा मिली थी।

गुरु दत्त के 'गुरुदत्त फिल्म्स' के द्वारा बनाई गई लोकप्रिय फिल्में हैं बाज़ी (1951), प्यासा (1958), कागज के फूल (1959), साहेब बीबी और गुलाम (1962)।

वैसे तो गुरु दत्त की बनाई सभी फिल्में लाजवाब थीं पर फिल्म प्यासा की तारीफ सबसे अधिक की गई थी। आपको शायद पता हो कि उनके द्वारा बनाई गई फिल्म कागज के फूल हिंदी की पहली सिनेमास्कोप फिल्म है।

जेमिनी प्रोडक्शन्स के द्वारा बनाई गई लोकप्रिय फिल्में हैं चंद्रलेखा (1948), निशान (1949), संसार (1951), मिस्टर संपत (1952), बहुत दिन हुये (1954), इंसानियत (1955), राज तिलक (1958), पैगाम (1959), घराना (1961), औरत (1967), तीन बहूरानियाँ (1968), शतरंज (1969)।

ए.व्ही.एम. प्रोडक्शन्स के द्वारा बनाई गई लोकप्रिय फिल्में हैं बहार (1951), लड़की (1953), चोरी चोरी (1956), भाई भाई (1956), भाभी (1957), मिस मेरी (1957), बरखा (1959), बिंदिया (1960), छाया (1961), मैं चुप रहूँगी (1962), मुनीम जी (1962), पूजा के फूल (1964), लाडला, मेहरबान, दो कलियाँ (1968)।

जेमिनी प्रोडक्शन्स तथा ए.व्ही.एम. प्रोडक्शन्स दक्षिण भारत की फिल्म निर्माण संस्थाएँ थीं पर सामाजिक कथाओं पर आधारित लोकप्रिय हिंदी फिल्मे भी बनाया करती थीं।

बी.आर. चोपड़ा के 'बी.आर. फिल्म्स' के द्वारा बनाई गई लोकप्रिय फिल्में हैं एक ही रास्ता (1956), नया दौर (1957), साधना (1958), धूल का फूल (1959), कानून (1961), धर्मपुत्र (1962), गर्ल्स हॉस्टल (1962), गुमराह (1963), वक्त (1965), हमराज़ (1967), इत्तिफाक (1969), हम एक हैं (1970), आदमी और इंसान (1970), जवाब (1970), छाटी सी बात (1976), इंसाफ का तराजू (1980)।

बी.आर. चोपड़ा जाने माने निर्माता निर्देशक रहे हैं। उनकी बनाई टी.व्ही. सीरयल महाभारत की आज भी प्रशंसा होती है।

एस. मुखर्जी के 'फिल्मालय प्रोडक्शन्स' के द्वारा बनाई गई लोकप्रिय फिल्में हैं दिल दे के देखो (1959), हम हिंदुस्तानी (1960), लव्ह इन शिमला (1960), प्यार का सागर (1961), एक मुसाफिर एक हसीना (1962), आओ प्यार करें (1964), तू ही मेरी जिंदगी (1965)।

सुबोध मुखर्जी के 'सुबोध मुखर्जी प्रोडक्शन्स' के द्वारा बनाई गई लोकप्रिय फिल्में हैं जंगली (1961), एप्रिल फूल (1964), शागिर्द (1967), अभिनेत्री (1970), शर्मीली (1971), मि. रोम्यो (1974)।

ताराचंद बड़जात्या के 'राजश्री प्रोडक्शन्स' के द्वारा बनाई गई लोकप्रिय फिल्में हैं आरती (1962), दोस्ती (1964), महापुरुष (1965), तकदीर (1967), जीवन मृत्यु (1970), उपहार (1971), मेरे भैया (1972), पिया का घर (1972), सौदागर (1973), हनीमून (1973), तूफान (1975), गीत गाता चल (1975), तपस्या (1976), चितचोर (1976), पहेली (1977), दुल्हन वही जो पिया मन भाये (1977), अलीबाबा मरजीना (1977), एजेंट विनोद (1977), अँखियों के झरोखे से (1978), सुनयना (1979), शिक्षा (1979), सावन को आने दो (1979), साँच को आँच नहीं (1979), नैया (1979), गोपाल कृष्ण (1979), राधा और सीता (1979), तराना (1979), मनोकामना (1980), मान अभिमान (1980), एक बार कहो (1980), हमकदम (1980)।

रामानंद सागर के 'सागर आर्ट' के द्वारा बनाई गई लोकप्रिय फिल्में हैं जिंदगी (1964), आरजू (1965), आँखें (1968), गीत (1970), ललकार (1972), चरस (1976)।

रामानंद सागर के बनाये टी.व्ही. सीरियल रामायण के प्रसारण के समय ट्रेनों को भी स्टेशन में रोक दिया जाता था जिससे कि यात्री उसे देख सकें। प्रसारण समाप्त हो जाने के बाद ही ट्रेनें आगे बढ़ती थी।