Friday, February 11, 2011

संस्कृत को कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग के लिए सर्वाधिक सुविधाजनक भाषा बनाने वाले प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य - पाणिनि (Panini)

पाणिनि के विषय में कुछ लिखने के पहले यह बताना अधिक उचित होगा कि जुलाई 1987 में फोर्ब्स पत्रिका (Forbes magazine) ने एक समाचार प्रकाशित किया था जिसके अनुसार “कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग के लिए संस्कृत सर्वाधिक सुविधाजनक भाषा है”।

प्रश्न यह उठता है कि आखिर संस्कृत क्यों कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर के लिए सबसे अधिक उपयुक्त भाषा है?

और उत्तर है कि कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग और संस्कृत व्याकरण में चमत्कारिक रूप से समानता पाई जाती है। इस चमत्कार के पीछे “अष्टाध्ययी” ग्रंथ की महत्वपूर्ण भूमिका है जिसकी रचना संस्कृत के महान व्याकरणाचार्य पाणिनि ने की थी। इस चमत्कार का एक परिणाम यह भी है कि नासा के शोधकर्ता भी संस्कृत को सम्भावित कम्प्यूटर भाषा के रूप में देखने लगे हैं (लिंक) ।

संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित पाणिनि के विषय में हम इतना ही जानते हैं कि उनका जन्म सिन्धु नदी के तट पर स्थित शालातुला नामक स्थान में हुआ था जो कि वर्तमान पाकिस्तान के एटॉक के पास का कस्बा है। उनके जन्म के काल के विषय में हमें निश्चित जानकारी नहीं मिलती क्योंकि विभिन्न इतिहासकार उन्हें ई.पू. चौथी से सातवीं शताब्दी तक का बताते हैं। पाणिनि ने भाषा के उच्चारण तथा आकृतियों के लिए अत्यन्त ही सूक्ष्म किन्तु वैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया और उनके यही सिद्धान्त आज संस्कृत भाषा को कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग के लिए सर्वाधिक उपयुक्त भाषा होने का श्रेय प्रदान कर रहे हैं। पाणिनि के अष्टाध्ययी के 4000 सूत्रों ने संस्कृत भाषा को अन्य समस्त भाषाओं से अधिक समृद्ध बना दिया है जिससे कि संस्कृत का वैज्ञानिक महत्व बढ़ गया है। संस्कृत के इसी वैज्ञानिक महत्व ने कई हजार वर्ष पूर्व भारत में गणित का विकास किया।

विडम्बना यह है कि, आज जबकि पूरे विश्व के कम्प्यूटर वैज्ञानिक संस्कृत में विशाल वैज्ञानिक सम्भावनाएँ देख रहे हैं, हमारे अपने ही देश में संस्कृत एक गौण भाषा बनकर रह गई है और उसके पुनरुत्थान के विषय में न तो सरकार सोचती है और न ही सामान्य जन।

Thursday, February 10, 2011

भारत के विषय में रोचक तथ्य (Interesting facts about India)

भारत ने अपने एक लाख वर्ष के इतिहास में कभी किसी अन्य देश पर आक्रमण नहीं किया।

पुरातात्विक अनुसन्धानों के अनुसार आज से पाँच हजार वर्ष पूर्व, जब विश्व की अनेक संस्कृतियाँ कन्दराओं और घने जंगलों में निवास करती थीं, सम्पूर्ण भारत, विशेषतः सिन्धु घाटी, में एक अत्यन्त विकसित सभ्यता का आविर्भाव हो चुका था। वाल्मीकि रामायण में पाए जाने वाले अयोध्या, विशाखा, मिथिला, मलदा, करूप आदि विशाल अट्टालिकाओं, सुरम्य वाटिकाओं, साफ सुथरे चौड़े मार्गों वाले नगरों के वर्णन सिद्ध करते हैं कि भारत में इससे भी पूर्व नगरीय सभ्यता का विकास हो चुका था।

बौद्धिक खेल शतरंज का आविष्कार भारत में हुआ, शतरंज को प्राचीन भारत में चतुरंग के नाम से जाना जाता था।

बीजगणित (Algebra), त्रिकोणमिति (Trigonometry), चलन कलन (Calculus) आदि गणित के विभागों का उद्गम भारत में हुआ।

स्थान मूल्य प्रणाली (Place Value System) और दशमलव प्रणाली (Decimal System) का विकास भारत में ई.पू. 100 में हुआ।

विश्व का प्रथम गणतन्त्र वैशाली भारत में था।

संसार का पहला विश्वविद्यालय भारत के तक्षशिला में ई.पू. 700 में स्थापित हुआ जहाँ पर विश्व भर के 10,500 से भी अधिक विद्यार्थी 60 से भी अधिक विषयों का अध्ययन करते थे। चौथी शताब्दी में स्थापित नालंदा विश्वविद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में भारत का महानतम उपलब्धि रही।

चिकित्सा के क्षेत्र में चिकित्सा की प्राचीनतम पद्धति आयुर्वद भारत की ही देन है। शल्य चिकित्सा का आरम्भ भारत से ही हुआ।

पृथ्वी के द्वारा सूर्य का एक चक्कर लगाने में लगने वाले समय की गणना हजारों साल पहले भास्कराचार्य ने कर लिया था। उनके अनुसार यह अवधि 365.258756484 दिन हैं।

बोधायन ने हजारों साल पहले "पाई" का मान ज्ञात कर लिया था।

सन् 1896 तक पूरे विश्व में भारत ही हीरे का अकेला स्रोत था।

17वीं शताब्दी तक भारत विश्व का सर्वाधिक धनाड्य देश रहा।

Tuesday, February 8, 2011

क्यों हृदय हर्षोल्लास से भर उठता है वसन्त पंचमी के दिन

पता नहीं क्यों वसन्त पंचमी का दिन मेरे हृदय में वसन्त ऋतु के स्वागत् के लिए ललक उत्पन्न करती है। लगने लगता है कि अकस्मात ही हवा में सुगन्ध भर गया है। मुझे आज भी याद है कि स्कूल के दिनों में मैं वसन्त पंचमी के दिन ब्राह्म मुहूर्त में ही निद्रा त्यागकर उठ जाया करता था। सुबह साढ़े सात बजे के पहले स्कूल जो पहुँचना होता था। स्कूल पहुँचने के पहले नहा-धोकर तैयार भी तो होना पड़ता था न! स्कूल में माता सरस्वती की पूजा होती थी, सरस्वती वन्दना गाया जाता था -

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्दैवै:सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा॥

(कुन्द, चन्द्र, तुषार के हार के समान गौरवपूर्ण शुभ्र वस्त्र धारण करने वाली, वीणा के सुन्दर दण्ड से सुशोभित हाथों वाली, श्वेत कमल पर विराजित, ब्रहा, विष्णु महेश आदि सभी देवों के द्वारा सर्वदा स्तुत्य, समस्त अज्ञान और जड़ता की विनाशनी देवी सरस्वती मेरी रक्षा करे।)

सरस्वती पूजा के बाद स्कूल से छुट्टी दे दी जाती थी। छुट्टी पाते ही मैं तेजी के साथ घर की ओर चल पड़ता था क्योंकि मुहल्ले में भी तो होली जलने के स्थान पर अरंड पूजा देखना जरूरी होता था। अरंड का एक पेड़ काटकर लाया जाता था और उसे मुहल्ले में होली जलने वाले स्थान पर गाड़ दिया जाता था तथा उसकी पूजा की जाती थी। नारियल फोड़कर प्रसाद बाँटा जाता था। और उसके बाद मुहल्ले के सारे रसिकजन इकट्ठे हो जाया करते थे। चौक में दरियाँ बिछा दी जाती थीं और नगाड़े, ताशे, झाँझ, मंजीरे के साथ फाग गायन शुरु हो जाता था। वक्रतुण्ड महाकाय भगवान गणेश की वन्दना से फाग आरम्भ होता था -

माँगत हौं बर दुइ कर जोरे
देहु सिद्धि कछु बुधि अधिकाय।
गणपति को मनाय प्रथम चरण गणपति को मनाय॥

गणपति को मनाने के बाद छत्तीसगढ़ के त्रिवेणी में स्थित राजीव लोचन को फाग गाकर प्रसन्न किया जाता था -

भजु राजिम लोचन नाथ हमारे पतित उधारन तुम आए।
लोक लोक के भूपति आए
तोरे चरण में सर नाए।
भजु राजिम लोचन नाथ हमारे पतित उधारन तुम आए॥

इसके बाद पूरे दिन फाग गाकर राम, कृष्ण, माता शारदा आदि विभिन्न देवी देवताओं को प्रसन्न किया जाता था।

आज बचपन की वो बातें नहीं रही हैं किन्तु वसन्त आज भी मेरे भीतर उन्माद उत्पन्न करता है और नवपल्लवित पौधों पर लदे हुए सुन्दर पुष्पों तथा आम के बौर की महक हृदय को आन्दोलित करने लगती है।

Monday, February 7, 2011

भारत में जासूसी लेखन (Detective Writing in India)

जिस प्रकार से पाश्चात्य देशों में जासूसी लेखन (Detective Writing) को अत्यधिक रुचि लेकर पढ़ा जाता रहा है उसी प्रकार से भारतीय साहित्य में भी जासूसी लेखन (Detective Writing) की लोकप्रियता रही है। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसने सर आर्थर कानन डायल (Arthur Conan Doyle) के मशहूर पात्र "शरलॉक होम्स" के बारे में न सुना हो। आगाथा क्रिस्टी (Agatha Christie) के जासूसी उपन्यास आज भी अत्यन्त लोकप्रिय हैं। जासूसी उपन्यास के इन लेखकों की लोकप्रियता जाहिर करती है कि पाश्चात्य देशों में जासूसी लेखन (Detective Writing) को साहित्य में स्थान मिला है किन्तु भारत में जासूसी लेखन (Detective Writing) का स्थान हमेशा ही गौण रहा है। इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है बाबू देवकीनन्दन खत्री के उपन्यास "चन्द्रकान्ता" और चन्द्रकान्ता सन्तति", जिन्हें पढ़ने के लिए लाखों की संख्या में लोगों ने हिन्दी सीखा, को हिन्दी साहित्य में आज भी गौण स्थान ही प्राप्त है।

माना जाता है कि जासूसी लेखन (Detective Writing) का आरम्भ सन् 1841 में एडगर एलन पो की कहानी  (short story) "द मर्डर्स इन द रुये मोर्ग (The Murders in the Rue Morgue) से हुई। भारत में जासूसी लेखन (Detective Writing) का आरम्भ, यद्यपि वह लेखन अपरिष्कृत रूप में था, उन्नीसवीं शताब्दी में हुई। सन् 1888 में बाबू देवकीनन्दन खत्री ने "चन्द्रकान्ता" नामक उपन्यास लिखा जिसे कि जासूसी लेखन (Detective Writing) के अन्तर्गत माना जा सकता है और जहाँ तक यही भारत में जासूसी लेखन (Detective Writing) की शुरुवात थी। उन्हीं दिनों "शरलॉक होम्स" और "चन्द्रकान्ता सन्तति" से प्रभावित अनेक रचनाओं का प्रकाशन हिन्दी, मराठी, बंगाली, तेलुगु, तमिल आदि भाषाओं में हुआ जो कि बहुत ही लोकप्रिय हुए।

बीसवीं शताब्दी पचास और साठ के दशक में इब्ने सफी के उपन्यासों ने जासूसी लेखन (Detective Writing) के राजा रजवाड़े से सम्बन्धित रूप को बदलकर एक आधुनिक रूप दिया। इब्ने सफी मूलतः उर्दू में लिखा करते थे जिनका "जासूसी दुनिया" नामक मासिक पत्रिका में उर्दू और हिन्दी दोनों ही भाषाओं में प्रकाशन हुआ करता था। उन दिनों सफी जी जासूसी उपन्यासों के सर्वाधिक लोकप्रिय लेखक थे और उनकी लोकप्रियता भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों में बहुत अधिक थी। ओमप्रकाश शर्मा और वेदप्रकाश काम्बोज भी उन दिनों के लोकप्रिय जासूसी लेखक थे।

कालान्तर में जेम्स हेडली च़ेज के डिटेक्टिव्ह नावेल्स की लोकप्रियता बढ़ती गई। बहुत से लेखकों ने उनके उपन्यासों का हिन्दी अनुवाद किया किन्तु सुरेन्द्र मोहन पाठक जी सफलतम अनुवादक रहे। बाद में पाठक जी ने स्वयं जासूसी लेखन (Detective Writing) का कार्य आरम्भ कर दिया और हिन्दी के सफलतम जासूसी लेखक की श्रेणी उनका स्थान बन गया। आज भी पाठक जी के उपन्यास बहुत अधिक लोकप्रिय हैं।