Wednesday, August 31, 2011

छत्तीसगढ़ में तीजा - सुयोग्य वर की प्राप्ति तथा अखण्ड सौभाग्य की कामना का त्यौहार

महिलाओं के लिए उत्तर भारत में जो महत्व करवा चौथ का है वही महत्व छत्तीसगढ़ की महिलाओं के लिए तीजा का है। भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की तृतीया का दिन छत्तीसगढ़ में "तीजा" के नाम से जाना जाता है। इस दिन छत्तीसगढ़ की समस्त महिलाएँ, चाहे वे कुमारी हों या विवाहित, निर्जला व्रत रख कर रात्रि जागरण और गौरी-शंकर की पूजा करती हैं। इस व्रत-पूजन का उद्देश्य होता है - विवाहित महिलाओं का अपने लिए अखण्ड सौभाग्य की कामना करना और कुमारियों के लिए अपने हेतु सुयोग्य वर की प्राप्ति। मान्यता है कि आज के दिन ही शिव-पार्वती का विवाह हुआ था। छत्तीसगढ़ में तीजा व्रत की अत्यधिक मान्यता है। इस व्रत को मायके में ही आकर रखा जाता है। यदि किसी कारणवश मायके आना नहीं हो पाता तो भी व्रत तोड़ने के लिये मायके से जल और फलाहार का आना आवश्यक होता है क्योंकि इस व्रत को मायके के ही जल पीकर तोड़ा जाता है।

महिलाएँ रात भर जागरण करके भजन-पूजन करती हैं और भोर होने के बाद अपना व्रत तोड़ती हैं।

Tuesday, August 30, 2011

घन घमंड नभ गरजत घोरा

भादों का महीना है किन्तु पिछले तीन-चार दिनों से सावन-सी झड़ी लगी हुई है। इन तीन-चार दिनों में तीन-चार बार भगवान भास्कर ने उज्जवल-श्यामल मेघों के आवरण से झाँक तो अवश्य लिया है किन्तु आज प्रातःकाल से सायंकाल तक एक भी बार दर्शन नहीं दिया है। चहुँ ओर काले काले घन छाए हुए हैं। क्या सुबह, क्या दोपहर, हर वक्त शाम जैसा ही प्रतीत हो रहा है। कल मध्यरात्रि से आज अपराह्न तक मेघ गरज-गरज कर अनवरत रूप से बरस रहे हैं, कभी मूसलाधार वर्षा की मोटी-मोटी बूँदें बरसती हैं तो कभी कपास के रेशों जैसी फुहार पड़ती है। वर्षा की मोटी-मोटी बूँदों के धरा पर टपकने की लयबद्ध ध्वनि, सीमेंट और कंक्रीट के जंगल जैसे शहर में आज भी अपने अस्तित्व को बनाए रखे हुए कुछ पुराने घरों के खपरैलों से गिरते पानी की आवाज तथा सीमेंट के लैंटर वाले छतों से पानी निकासी वाले पाइपों से गिरने वाली मोटी धार के भूमि से टकराने का नाद व्यक्ति को एक मनमोहक संगीत के सागर में डुबा देता है और उसका मन-मयूर नाचने लगता है। शायद किसी संगीत ने 'सेनापति' को "अंबर अडंबर सौ उमड़ि घुमड़ि छिन छिछके छछारे छिति अधिक उछारे हैं" पंक्ति की रचने के लिए विवश किया रहा होगा। बादलों के बीच बिजली की तड़प से क्षण भर के लिये सम्पूर्ण धरा चौंधिया जाती है और उसके कुछ क्षणों बाद गगनभेदी गर्जन से काँप उठती है। दामिनी की इस दमक, मेघों की गर्जना और अनवरत मूसलाधार वर्षा को देखकर विरहिन नायिका बरबस गुनगुना उठती है "बादल तो आए लहरा के छाये, ओ आने वाले पर तुम तो न आए" (फिल्म दिल्लगी के लिए गीतकार योगेश द्वारा लिखे गए गीत की पंक्ति)। राम जैसे अवतारी पुरुष भी पावस से अप्रभावित नहीं रह पाते और कह उठते हैं "घन घमंड नभ गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा॥"

चलते-चलते

'सेनापति' का पावस ऋतु वर्णन:

दामिनी दमक, सुरचाप की चमक, स्याम
घटा की घमक अति घोर घनघोर तै।
कोकिला, कलापी कल कूजत हैं जित-तित
सीतल है हीतल, समीर झकझोर तै॥
सेनापति आवन कह्यों हैं मनभावन, सु
लाग्यो तरसावन विरह-जुर जोर तै।
आयो सखि सावन, मदन सरसावन
लग्यो है बरसावन सलिल चहुँ ओर तै॥